राकेश सिंह/२९ जून २०११
दूसरों को खुश देखकर आपका खुश होना, दूसरों को गम में देखकर आपका गमगीन होना, शायद ये एक अच्छे मनुष्य के गुण हैं.पर क्या आपने गौर किया है कि आपके इस स्वभाव को जानकर आपको ‘उल्लू’ बनाकर अपना ‘उल्लू’ सीधा करने वाले लोगों की भी इस समाज में कमी नही है?
हमारे आसपास कुछ ऐसे भी लोग मौजूद हैं जो आपसे भावनात्मक सम्बन्ध सिर्फ इसलिए बनाते है ताकि वे आपसे अपना काम निकलवाते रहें.संकोचवश किसी को ‘न’ कहने की आपकी आदत आपको लगातार घाटे में डाल सकती है.दरअसल बात-बात में मदद करने का आपका स्वभाव आपको ऐसे व्यक्ति के सामने सम्मानजनक स्थिति में नही लाता है, बल्कि मन ही मन वो आपको ‘बकरा’ समझते रहते हैं.आपसे काम निकालना बंद न हो इसके लिए वे आपकी तारीफ़
भी कुछ इस अंदाज में कर सकते हैं, ‘कितना अच्छा स्वभाव है आपका, आज के जमाने में बहुत कम ही लोग आप जैसे हेल्पिंग नेचर के होते हैं’.चिकनी-चुपड़ी बातों से ऐसे लोग आपकी भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाते रहते हैं.और जब उनसे लाभ लेने की बारी आपकी आती है तो फिर देखिये ये बहानेबाजी में कितने उस्ताद होते हैं.कभी-कभी तो पड़ोस की कोई महिला अपने बच्चों के प्रति आपका मोह जगाने का भी प्रयास करती है ताकि अक्सर वे अपने बच्चे को आपकी गोद में डालकर अपना काम करती रहें.
भी कुछ इस अंदाज में कर सकते हैं, ‘कितना अच्छा स्वभाव है आपका, आज के जमाने में बहुत कम ही लोग आप जैसे हेल्पिंग नेचर के होते हैं’.चिकनी-चुपड़ी बातों से ऐसे लोग आपकी भावनात्मक कमजोरी का फायदा उठाते रहते हैं.और जब उनसे लाभ लेने की बारी आपकी आती है तो फिर देखिये ये बहानेबाजी में कितने उस्ताद होते हैं.कभी-कभी तो पड़ोस की कोई महिला अपने बच्चों के प्रति आपका मोह जगाने का भी प्रयास करती है ताकि अक्सर वे अपने बच्चे को आपकी गोद में डालकर अपना काम करती रहें.
आपकी भावुकता आपकी कमजोरी न बन जाए, इस बात का ध्यान रखना आवश्यक है.दूसरों को मदद करने की प्रवृति आपका एक विशेष गुण है, ये बरकरार रहनी चाहिए.पर ये तब ही होना चाहिए जब दूसरा वास्तव में आपकी आवश्यकता महसूस कर रहा हो न कि आपको उल्लू बनाकर अपना काम निकालना चाह रहा हो.खासकर जब आप इस बात पर निश्चित हैं कि सामने वाला आप पर ‘इमोशनल अत्याचार’ कर रहा है और आप संकोचवश उसे ‘ना’ नहीं कर पा रहे हैं तो याद रखिये आपका ये स्वभाव आपको कभी बड़ी मुसीबत में डाल सकता है.
निष्कर्ष में, खुद को बेबस और लाचार न बनने दें.बहुत सारे मामलों में ‘ना’ कहने की आदत अच्छी साबित हो सकती है.अगर आप अपने व्यक्तित्व को प्रभावशाली बनाना चाहते हैं तो सिर्फ ‘हाँ’ कहने की आदत से बचिए. ‘हाँ’ और ‘ना’ का संतुलन ही आपको एक मजबूत इंसान बना सकता है.
कहीं आप ‘इमोशनल अत्याचार’ का शिकार तो नही हो रहे?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 29, 2011
Rating:
Very true.!
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