उपेक्षा का शिकार हो रही हैं बुजुर्ग महिलायें

पंकज कुमार भारतीय/२३ जून २०११
नारी सशक्तिकरण का दौर है और इस दौर के शोर में बुजुर्ग महिलायें हाशिये पर हैं.ऐसा प्रतीत होता है सशक्तिकरण के दायरे में केवल युवा और प्रौढ़ महिलायें ही शामिल हैं.शर्मनाक सच यह है कि बुजुर्गों का बुढापा आज बोझ बनता जा रहा है और वे अपनों के बीच ही उपेक्षित हैं.जबकि कटु सत्य यह है कि यह समाजोपयोगी अवस्था है जिससे लोग जान बूझ कर अनजान बने हुए हैं.
      शादी और पूजा पाठ जैसे अवसरों पर बुजुर्ग महिलाओं की अहमियत को बखूबी समझा जा सकता है.युवा पीढ़ी तकनीक के मामले में भले ही ऊँची उड़ान भर्ती हो, सभ्यता एवं संस्कृति के मामले में फिसड्डी ही साबित होती रही है.छोटी-मोटी बीमारियों के मामले में तो ये बुजुर्ग किसी डॉक्टर से कम नही होते हैं.दादी माँ के नुस्खे से बीमारियों का इलाज चुटकी बजाते हो जाता है.भाग-दौर एवं आधुनिकता का
खामियाजा सर्वाधिक  बुजुर्गों को ही भुगतना पड़ता है.एकल परिवार की परंपरा में बुजुर्गों को घर में रखने का रिवाज ही समाप्त होता जा रहा है.पति, पत्नी और बच्चे के बाद परिवार की सीमा रेखा समाप्त हो जाती
है.युवा पीढ़ी अकेले रहना पसंद करती है क्योंकि वे स्वतंत्र जीवन जीना चाहते हैं.जेनेरेशन गैप की वजह
से बुजुर्गों के साथ रहना बंधन के सामान है.कई बार बुजुर्ग भी कई कारणों से बच्चे से दूर ही रहना चाहते हैं.
      बुजुर्ग महिलायें घर में चलती फिरती लाइब्रेरी होती है.चूंकि अब लैपटॉप का ज़माना है इसलिए शायद इनकी अहमियत कम होती दिखाई दे रही है.६०-७० साल की जिंदगी का विशाल अनुभव किसी धरोहर से कम नही होता है.लेकिन नई पीढ़ी इस अनुभव का लाभ लेने से चूक रही है.सच तो यह है कि परिवार के बीच ही रहकर हुनर सीखा जा सकता है.पुस्तकों में जीने के नुस्खे नही मिलते हैं.,खास यह है कि बुजुर्गों को सिखाने में भी आनन्द की अनुभूति होती है.
        परिवार में पहली और तीसरी पीढ़ी एक दूसरे के बिना अधूरी है.नए जमाने के बच्चे आत्मकेंद्रित होते जा रहे हैं.क्योंकि उनका मित्र अब कम्प्यूटर एवं टीवी होता है.दादी-नानी के गोद में बैठ कर परियों की कहानी सुनना और लोरियाँ सुनते-सुनते सो जाना अब परी कथा जैसी हो गयी है.जबकि दादी-नानी के साथ बच्चों को एक अलग किस्म का सुकून मिलता है.
    बुजुर्ग महिलायें घरेलू हिंसा एवं प्रताडना की शिकार हो रही हैं.इस देश में साठ साल से अधिक उम्र वाले लोगों की संख्यां लगभग नौ करोड है जिसमे आधे से अधिक संख्यां महिलाओं की है.हेल्प ऐज संस्था द्वारा किये गए सर्वेक्षण के अनुसार बुजुर्गों के साठ दुर्व्यवहार आम बात है, लेकिन ९८ फीसदी बुजुर्ग इसकी शिकायत दर्ज नही कराते हैं.दायाँ के नाम पर सबसे अधिक बुजुर्ग महिलायें ही प्रताडित की जाती है.खास यह है कि बुजुर्ग महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार करने वालों में उनके अपने सबसे अधिक होते हैं.
उपेक्षा का शिकार हो रही हैं बुजुर्ग महिलायें उपेक्षा का शिकार हो रही हैं बुजुर्ग महिलायें Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on June 23, 2011 Rating: 5

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