धड़ बोतल में धंसा है उसका,
और, है सर सजदे में झुका.
जन्नत की चाह में शख्स वह,
जहन्नुम की तरफ बढ़ता दिखा.
सोच कर क्या हतभाग्य वह,
अजीब हरकत दिखाना चाहता है?
अपनी नाकामयाबी का सेहरा,
गैरों के सर बांधना चाहता है.
कैसा किस्सा गढना चाहता है?
वहमी,ख्वाब में खोकर खुद को,
कुआं में ढकेलना चाहता है.
अपनों की फ़िक्र उसे है कहाँ?
जहाँ को बदलना चाहता है.
पस्त हिम्मत खुदगर्ज वह,
मयखाने की कैद फिजा को,
हरतरफ फैलाना चाहता है,
आजादी का नापाक तराना,
बेवक्त गुनगुनाना चाहता है.
'बेधड़क' बेखबर नहीं है जनाब !
हर हरकत पर नजर रखता है.
'पाउच' में नेक सोच पैदा होती नहीं,
बस यही बतलाना चाहता है.
--पी० बिहारी 'बेधड़क'
अधिवक्ता,सिविल कोर्ट,मधेपुरा.
धड़ बोतल में धंसा
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 05, 2011
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