रूद्र नारायण यादव/२२ मई २०११
पंचायत चुनाव के मतगणना का दौर जारी है,और जारी है बहुमत प्राप्त प्रत्याशियों के जीत का भी सिलसिला.प्रत्याशियों के समर्थक उनके पक्ष में परिणाम की प्रत्याशा में आख़िरी क्षण तक मतगणना पर नजर गडाए हैं ताकि किसी प्रकार की गडबडी न हो सके.पर जैसे ही परिणाम की घोषणा की जाती है,जीत की उम्मीद लगाए अधिकाँश प्रत्याशियों के चेहरे पर हवाइयां उड़ने लगती है और विजयी घोषित हो रहे हैं अधिकाँश वैसे ही
प्रत्याशी जिसने जम कर रूपये खर्च किये थे.जी हाँ, इस बार के पंचायत चुनाव में दबंग और मालदार प्रत्याशियों की बल्ले-बल्ले हो रही है.अधिकाँश वैसी महिलायें ही विजय हासिल कर रही
हैं,जिनके पति के पास पैसे के साथ-साथ दबंगई का भी सर्टिफिकेट है.वैसे लोग जो ये कह रहे थे कि जिसके पास पैसा है वही चुनाव जीतेगा, की बात अधिकाँश जगहों पर सच साबित हो रही है.खास कर मुखिया और जिला परिषद के पदों पर इस बार यह बात ज्यादातर लागू है.इन पदों के लिए ठेकेदार या पूर्व मुखिया ही ज्यादातर सटीक बैठ रहे हैं क्योंकि पिछली कई योजनाओं में काम करा कर इन्होने अच्छी खासी पूँजी जमा कर रखी थी.मनरेगा व अन्य योजनाओं के तहत पचास लाख से करोड़ का काम कराने
वाले लोग इस बार पांच से दस लाख तक भी खर्च करने में नही चूके.जिस मतदाता की जैसी औकात रही उसे उस दर पर खरीदा गया.वैसे दलाल जिनकी पकड़ सौ-पचास मतदाताओं पर थी,उसकी तो जम कर खातिर की गयी.ग़रीबों का क्या, कोई भी जीते, बिना खुशामद के किसी योजना का लाभ तो मिलने से रहा.दबंगों से दुश्मनी मोल लेना ठीक उसी तरह है जैसे पानी में रह कर मगरमच्छ से बैर.चर्चा तो यह भी है दलालों ने मतगणना के नाम पर भी प्रत्याशियों की जेबें ढीली करवाई हैं कि हमारा वहां भी जुगाड़ है.
प्रत्याशी जिसने जम कर रूपये खर्च किये थे.जी हाँ, इस बार के पंचायत चुनाव में दबंग और मालदार प्रत्याशियों की बल्ले-बल्ले हो रही है.अधिकाँश वैसी महिलायें ही विजय हासिल कर रही
हैं,जिनके पति के पास पैसे के साथ-साथ दबंगई का भी सर्टिफिकेट है.वैसे लोग जो ये कह रहे थे कि जिसके पास पैसा है वही चुनाव जीतेगा, की बात अधिकाँश जगहों पर सच साबित हो रही है.खास कर मुखिया और जिला परिषद के पदों पर इस बार यह बात ज्यादातर लागू है.इन पदों के लिए ठेकेदार या पूर्व मुखिया ही ज्यादातर सटीक बैठ रहे हैं क्योंकि पिछली कई योजनाओं में काम करा कर इन्होने अच्छी खासी पूँजी जमा कर रखी थी.मनरेगा व अन्य योजनाओं के तहत पचास लाख से करोड़ का काम कराने
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प्रशासन ने स्वच्छ चुनाव करा कर लोगों कि वाहवाहियां भले ही लूटी हों,पर चुनाव परिणाम पर उसका कोई खास असर होता नही दिख रहा है.बूथ कैप्चर कर के भी संभवतः यही जीतते जो रूपये लुटा कर जीत हासिल कर रहे हैं.जो गरीब हैं, वो निरीह भी हैं और जिन्हें दो जून की रोटी भी ठीक से नसीब नहीं, वो क्या जाने लोकतंत्र का महत्त्व.
खरीद-फरोख्त करने वाले प्रत्याशी भी हो रहे हैं विजयी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 22, 2011
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