बदलते दौर ने डिलीवरी की प्रक्रिया को भी प्रभावित किया है.चिकित्सा जगत से जुड़े जानकारों का मानना है कि सीजेरियन आवश्यक नही होता है,परिस्थितिजन्य होता है और रेयर होता है.
मरीज एनीमिक हो और कोई अन्य चिकित्सीय उलझन हो तो सीजेरियन जरूरी होता है.लेकिन डॉक्टर परिजनों को वाक्-जाल में उलझाकर और परिस्थिति का हवाला देकर सीजेरियन के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव डालते हैं.मरता क्या न करता की तर्ज पर परिजन सीजेरियन के लिए तैयार हो जाते हैं.जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं वे सुविधा के नाम पर और जोखिम से बचने के लिए भी सहर्ष तैयार हो जाते हैं.अब तो पंचांग के अनुसार मुहूर्त देखकर भी लोग सीजेरियन के द्वारा बच्चे निकलवाने लगे हैं.कुछ लोगों का मानना है कि आजकल महिलायें काम-काज से दूर रहती हैं,इसलिए ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है.हालांकि चिकित्सक इस बात से सहमत नही हैं.सरकारी अस्पताल से उलट यहाँ ७०-८० फीसदी डिलीवरी सीजेरियन होती है.प्राइवेट नर्सिंग होम में नोर्मल डिलीवरी ईद का चाँद सरीखा ही होता है.
मरीज एनीमिक हो और कोई अन्य चिकित्सीय उलझन हो तो सीजेरियन जरूरी होता है.लेकिन डॉक्टर परिजनों को वाक्-जाल में उलझाकर और परिस्थिति का हवाला देकर सीजेरियन के लिए मनोवैज्ञानिक दबाव डालते हैं.मरता क्या न करता की तर्ज पर परिजन सीजेरियन के लिए तैयार हो जाते हैं.जो आर्थिक रूप से समृद्ध हैं वे सुविधा के नाम पर और जोखिम से बचने के लिए भी सहर्ष तैयार हो जाते हैं.अब तो पंचांग के अनुसार मुहूर्त देखकर भी लोग सीजेरियन के द्वारा बच्चे निकलवाने लगे हैं.कुछ लोगों का मानना है कि आजकल महिलायें काम-काज से दूर रहती हैं,इसलिए ऐसी परिस्थिति उत्पन्न होती है.हालांकि चिकित्सक इस बात से सहमत नही हैं.सरकारी अस्पताल से उलट यहाँ ७०-८० फीसदी डिलीवरी सीजेरियन होती है.प्राइवेट नर्सिंग होम में नोर्मल डिलीवरी ईद का चाँद सरीखा ही होता है.
वास्तव में प्राइवेट नर्सिंग होम शोषण होम का काम करते हैं.आप सुविधा के नाम पर लुटने को तैयार हैं तो आपका प्राइवेट नर्सिंग होम में स्वागत है.क्योंकि यहाँ आपको परिस्थिति के नाम पर लोग लूटने के लिए तैयार बैठे हैं.पापा बनना नि:संदेह एक सुखद एहसास होता है लेकिन नर्सिंग होम से छुट्टी पाने के समय जब 'बिल' चुकाने की बारी आती है तो लोग खुद को ठगा हुआ महसूस करते हैं.मधेपुरा जैसे शहर में एक सीजेरियन के बाद न्यूनतम १५-२० हजार रूपये की वसूली की जाती है.मरीज की दवा और खाने-पीने के लिए अलग से खर्च करना होता है.इसके अलावे बीते नौ महीने में पैथोलोजिकल जाँच, कम से कम तीन अल्ट्रासाउंड, दवाई के खर्च के लिए पहले ही जेब ढीली हो जाती है.अब बच्चे पैदा हुए कि उसे 'जांडिस' होना तय है,जिसके लिए शिशु रोग विशेषज्ञ की अलग से व्यवस्था होती है.जाहिर है एक बार फिर से फीस देने के लिए तैयार रहिए.कुल मिलकर यहाँ जिंदगी हर कदम एक नई जंग होती है.
(पंकज भारतीय/१४ दिसंबर २०१०)
(पंकज भारतीय/१४ दिसंबर २०१०)
स्टेटस सिंबल है सीजेरियन डिलीवरी : प्राइवेट नर्सिंग होम है शोषण होम
Reviewed by Rakesh Singh
on
December 14, 2010
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Very good news.Government should take necessary action against these type of private clinics.
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