|राजीव
रंजन|08 अगस्त 2013|
पप्पू
की मौत वर्तमान
सामाजिक और प्रशासनिक व्यवस्था पर एक करारा चोट है. पिछले 22 जुलाई
को ही जब मधेपुरा टाइम्स ने मधेपुरा के अस्पताल परिसर में पड़े जिंदगी और मौत के
बीच लड़ रहे पप्पू को देखा तो उसके बारे में और जानने की कोशिश की.
मधेपुरा जिला
मुख्यालय के सांसद रोड के निवासी पप्पू श्रीवास्तव ने घायल, बीमार और दर्द से कराह
रहे अवस्था में बताया था कि उसके भाई हेमंत कुमार हीरा, जो बीएनएमयू में पीए के पोस्ट पर पदस्थापित है, ने उसे बुरी तरह पीटकर इस हाल में मरने
को छोड़ दिया था जहाँ वह खाने और इलाज के लिए भी लोगों की तरफ गुहार लगता था. पप्पू ने उस समय
बताया था कि उसके बेरहम भाई ने उसकी
शादी तक नहीं होने दी और जिला मुख्यालय स्थित संपत्ति को हड़पने की नीयत से उसकी
ऐसी हालत बना छोड़ी है. और कुछ दिन पहले भाई ने साढू और एक पहलवान के
साथ मिलकर उसे बुरी तरह पीटा और दाहिना हाथ ही तोड़ दिया. अस्पताल में भी पप्पू को
कोई खास राहत नहीं मिली. चिकित्सकों ने उसका एक कच्चा बैंडेज कर उसे फिर बाहर कर
दिया. घाव की न तो सफाई हो रही है और न ही कोई आगे इलाज. ऐसे में बाहर के चिकित्सक
ये भी आशंका जताते रहे थे कि कहीं पप्पू का हाथ बाद में कटाना न पड़ जाए. पुलिस को शिकायत करने
की बात पर पप्पू ने कहा था कि बिना पैसा का पुलिस नहीं सुनती है और वह इसके लिए पैसे
कहाँ से लाएगा, जब वह खाना भी भीख मांग कर
ही खा रहा है.
पप्पू की मौत के बाद भी उसकी लाश अस्पताल
परिसर में शौचालय के बगल में घंटों पड़ी रही और और पप्पू की लाश को पुलिस की मदद से
उसके भाई को दे दिया गया.
जो भी हो, इतना तो तय है कि पप्पू की मौत
मानवीय असंवेदनशीलता की उस पराकाष्ठा को दिखाता है जहाँ मानवीय रिश्ते तार-तार हैं
और भाई भाई को देखने वाला नहीं है.
और पप्पू मर गया...रिश्ता हुआ तार-तार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 08, 2013
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