|श्रुति लवली| 03 मई 2013|
सोनी (बदला नाम) की जिंदगी आज मौत सी हो चुकी है. 32
साल की उम्र में पति ने साथ छोड़ दिया तो दो बच्चों का भार अकेले सोनी के सर पर आ
गया. पर सोनी ये नहीं जानती कि वह खुद कितने दिनों की मेहमान है.
जिले के
कुमारखंड प्रखंड के इसराइन बेला की सोनी (28 वर्ष) के पति पवन झा की मौत वर्ष 2012 के
अक्टूबर में एड्स से हो गई. पति राजस्थान में मजदूरी करते थे और वहीं से इस बीमारी
को साथ लाये थे. लगातार बीमार रहने के बाद जव पवन ने पूर्णियां में इलाज कराया टी
एचआईवी पॉजिटिव रिपोर्ट आया. फिर भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज अस्पताल
में इलाज शुरू हुआ पर पहली रिपोर्ट के तीन महीने के अंदर ही पवन ने इस दुनियां को
अलविदा कह दिया.
पति की
मौत के सदमे से जब सोनी थोड़ी उबरी तो लोगों की सलाह पर खुद की भी जांच करवाई तो
आँखों के सामने अँधेरा छा गया. एचआईवी के विषाणु पति से सोनी में भी आ चुके थे, पर
दोनों बेटे अभी सुरक्षित थे. सोनी का इलाज भी भागलपुर के जवाहरलाल नेहरू मेडिकल
कॉलेज अस्पताल में ही चल रहा है.
दस
वर्षीय श्रवण और पांच वर्षीय विक्रम का भविष्य आज सोनी को असुरक्षित लगता है.
आमदनी का कोई जरिया तो रहा नहीं पर परिजनों और पड़ोसी के द्वारा जब तक सहायता मिल
रही है जिंदगी की गाड़ी चल रही है. सपना है बेटे को रहने के लिए ढंग का घर हो जाए.
इंदिरा आवास की प्रथम किस्त मिली तो कुछ घर बनाने की कुछ सामग्री गिराया पर कुछ
खुद के इलाज में भी खर्च हो गए. हाल में गाँव के वसुधा केन्द्र में सोनी ने सहायता
की गुहार लगाई तो संचालिका श्रुति भारती ने मदद के लिए उसके आवेदन को आगे बढ़ाने का फैसला तो लिया पर वक्त बताएगा कि जिला प्रशासन सोनी की मदद कहाँ तक कर पाता है
या फिर बच्चों को मझधार में छोड़कर सोनी को पति के पास जाना होगा ???
पति की मौत के बाद अब खुद की मौत का इन्तजार, क्या होगा बच्चों का ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 03, 2013
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