अपराधियों को न आश्रय दें, न प्रोत्साहन

दुनिया में आजकल दो तरह के अपराधी मुख्य हैं। एक वे हैं जो विभिन्न प्रकार के अपराधों में सीधे जुड़े हुए हैं और दूसरे वे हैं जो समाजकंटकों और अपराधियों, छद्म चेहरे वाले निकम्मे, भ्रष्ट और बेईमान लोगों की हरकतों और हलचलों को आँखें मूँद कर देखते रहने तथा कानों में तेल डालकर नहीं सुनने का बहाना बनाकर चुपचाप बैठे हुए सारा माजरा देख रहे हैं। पहली किस्म के लोगों की हरकतों से स्पष्ट दिख जाता है कि वे किस किस्म के अपराधी या समाजकंटक हैं। लेकिन दूसरी प्रजाति के लोगों के चेहरों और वेशभूषा से आम आदमी अंदाज नहीं लगा पाते कि ये किस सीमा तक अपराधी हैं।
उदासीनता को त्यागना जरूरी: अपराध करना और अपराध को प्रश्रय देना, अपराधियों को संरक्षण देना और आपराधिक प्रवृत्तियों को चुपचाप देखते, सुनते और सहते रहना भी अपराधों से कम नहीं है। आजकल अपराधियों को संरक्षण और संबल देने वालों के प्रति समाज की उदासीनता बढ़ना ही वह मुख्य कारण है जिसकी वजह से समाज में अपराधों का ग्राफ बढ़ता जा रहा है।
इसे कोई स्वीकार करे या न करे लेकिन ये सारे विषय समाजशास्ति्रयों के लिए शोध के विषय हैं जिन पर आज नहीं तो कल गंभीरता के साथ सभी को सोचना ही पड़ेगा। समाज में अपराधों और असामाजिक हरकतों को मूक होकर देखते रहने वालों और पशुओं में क्या अंतर है? इस बात का उत्तर मिल जाने पर यह संशय अपने आप मिट जाता है।
पशुओं की तरह व्यवहार न करें: आज हर तरफ लोग अपने स्वार्थों और ऎषणाओं को पूरा करने के लिए दिन-रात ऎसे-ऎसे कामों में लगे हुए हैं जिनकी चर्चा करना भी मानवता का अपमान है। ये लोग अपनी सारी मानवता को छोड़कर उन सभी रास्तों को अपना रहे हैं जिनसे जंगल की ओर लौटने के तमाम द्वार खुले हुए हैं।
इस मामले में हमने पशुओं को भी पीछे छोड़ दिया है। पशुओं को इस बात की कोई समझ नहीं होती कि क्या अच्छा और क्या बुरा, क्या अपराध है और क्या नहीं। इसलिए वे न कुछ समझ पाते हैं और न ही प्रतिक्रिया व्यक्त कर पाते हैं। लेकिन मनुष्य के पास मस्तिष्क है, सब कुछ सोचने और समझने का सामथ्र्य है तथा भला-बुरा और अच्छा-खराब आदि सब जानने और इसके अनुरूप प्रतिक्रिया व्यक्त करने को स्वतंत्र है।
अपना भला-बुरा समझें: इन सबके बावजूद आज लोगों की स्थिति पशुओं से भी बदतर होती जा रही है और हम हमारे आस-पास, अपने क्षेत्र में तथा देश-दुनिया में जो कुछ हो रहा है उस पर न अपनी कोई राय बना पा रहे हैं और न ही यह सोच समझ पाने की स्थिति में हैं कि क्या हमारे समाज और देश के लिए अच्छा है और क्या बुरा।
जाने कैसी उदासीनता और निकम्मेपन को हम ओढ़े हुए हैं कि हमारे अपने स्वार्थ सामने न हों तो हमारी हलचल और हरकतें सब स्तब्ध दिखती हैं। कभी हम अधमरे होकर चुपचाप सब सुनते-देखते रहते हैं, कभी किसी के भय या प्रलोभन के मारे आँखें और कान बंद कर लेते हैं और कभी ऎसे धड़ाम हो जाते हैं जैसे किसी ने आत्मा ही निकाल दी हो।
प्रतिक्रिया जरूर करें
समाज को आज सबसे बड़ी आवश्यकता प्रतिक्रियाओं की है जो सच्चाई से भरपूर हों तथा इनका प्रभाव भी चतुर्दिक व्याप्त हो जाए। हमारे अपने घर-परिवार तक आँच के पहुँचने का जो लोग इंतजार करते रहते हैं उनके लिए सब कुछ असुरक्षित है।
हमारा क्षेत्र, देश और परिवेश सुरक्षित और स्वस्थ होने पर ही हम स्वस्थ और मस्त रह सकते हैं। आज जो घटनाएं बाहर हो रही हैं, उनका रुख धीरे-धीरे हमारी ही तरफ हो रहा है यह हम किसी को समझ में आज नहीं आ रहा। कल जैसे ही समझ में आने लगेगा तब तक बहुत देर हो चुकी होगी और उस समय संभलने तक का वक्त नहीं मिलने वाला।
समाज और देश के अपराधियों को जानें: आज सबसे बड़ी जरूरत यही है कि समाज के भीतर और बाहर के, देश के भीतर और बाहर के अपराधियों को जानें, पहचानें तथा आने वाले समय को सुरक्षित तथा संरक्षित रखने के लिए अपनी स्पष्ट भूमिकाएं सुनिश्चित करें और अपने व्यक्तिगत स्वार्थों तथा ऎषणाओं को छोड़ें, समाज हित और राष्ट्र हित को देखें तथा आगे आएं वरना आने वाली पीढ़ियां न हमें माफ करेंगी, न जमाने के उन लोगों को जिनके जिम्मे समाज और देश को आगे बढ़ाने और संरक्षण-पल्लवन एवं विकास की जिम्मेदारी है।
हर फिक्र की चर्चा जरूर करें: अपनी ग्रंथियों और पशुत्व, मूकत्व को छोड़े बगैर न हमारा भला हो सकता है, न देश का। हालात कैसे भी सामने हों, न समझौते करें, न चुपचाप देखें-सुनें। जो कुछ अपने साथ होता है या हो सकता है उसके बारे में कुछ भी मन में न रखें बल्कि हर फिक्र का जिक्र जरूर करें, इससे समानधर्मा लोगों की वैचारिक परमाण्वीय ऊर्जाओं का एक नवीन आभामण्डल तैयार होता है और अपराधियों तथा समाजकंटकों के विरूद्ध माहौल तैयार अवश्य होता है लेकिन जो लोग अपने स्वार्थों और भोग-विलास को ही प्रधान मानते हैं उनके लिए पूरी जिन्दगी स्वाभिमान और आत्माभिमान की प्राप्ति नहीं हो पाती है और वे लोग जीते जी मरे हुओं की तरह औरों के इशारों पर भूत-प्रेतों की तरह नाचते रहते हैं।
अपना इलाका ही देख लें तो हमें अच्छी तरह पता चल जाएगा कि अपने यहाँ कितने लोग भूत-प्रेतों की तरह औरों के इशारों पर नंगे होकर नाच में जुटे हुए हैं और मृत्यु के बाद ये लोग किस योनि को प्राप्त होने वाले हैं।
निकम्मों की भीड़ का हिस्सा न बनें: लेकिन इसके साथ ही यह भी गंभीरता से सोचना न भूलें कि हमारी सोच और वृत्तियाँ तो कहीं ऎसी नहीं हैं जिनकी वजह से कहीं हम भी तो इन उदासीनों और निकम्मों या स्वार्थों के लिए कुछ भी कर लेने वाले लोगों की भीड़ में तो शामिल नहीं हैंं।
बुद्धि और सामथ्र्य का पूरा उपयोग करें: जो कुछ हो रहा है उस पर नज़र रखें और समाज हित एवं राष्ट्र हित को सर्वोपरि मानकर बिना किसी भय, लोभ या लालच के अपने फर्ज अदा करें। अन्यथा आने वाले समय में जो कुछ विषमताएं संभावित होंगी उनके लिए भावी पीढ़ियाँ हमें दोषी ठहराने में कोई संकोच नहीं करने वाली। इसलिए संभलें और मनुष्य के रूप में ईश्वर प्रदत्त बुद्धि और सामथ्र्य का उपयोग करें।


- डॉ. दीपक आचार्य (9413306077)
अपराधियों को न आश्रय दें, न प्रोत्साहन अपराधियों को न आश्रय दें, न प्रोत्साहन Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on April 08, 2013 Rating: 5

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