|वि० सं०|03 मार्च 2013|
इतिहास के पन्नों को पलट कर देख लें. जहाँ धर्म
जितना अधिक है, पाप भी उतना ही है. जिले का सिंघेश्वर मंदिर जो बिहार का सबसे बड़ा
धर्मस्थल माना जाता है इनदिनों राजनीतिक अखाड़ा जैसा दीखता है. मालूम हो कि
सिंघेश्वर मंदिर की देखरेख के लिए न्यास की एक समिति बनी है और इसके प्रबंधन में
जिले के कई महत्वपूर्ण पद पर आसीन व्यक्ति शामिल हैं.
यहाँ
पहले यह बता देना चाहिए कि न्यास के पास चल संपत्ति के अतिरिक्त अचल संपत्ति भी
है. न्यास के स्थायी आय के स्रोत हैं- मंदिर में चढ़ावा, मुंडन न्योछावर, विवाह
न्योछावर, चढ़ावा में दिए गए पाड़ा एवं बाछा के मूल्य, मवेशी हाट, गुदरी हाट (मंदिर
परिसर में), जोत की जमीन के ठेका से, फलकर एवं जलकर, धर्मशाला का भाड़ा, दूकान का
भाड़ा, अस्थायी दूकान भाड़ा, वार्षिक शिवरात्रि मेला एवं विविध.
पर ऊपर
से धर्मस्थल दिखने वाला सिंघेश्वर मंदिर इन दिनों अधर्मी माफियाओं के चंगुल से निकलने के
लिए फडफडा रहा है. मैनेजमेंट यदि बेहतर काम करना चाहती है तो उसे पूर्व से ट्रस्ट
को लूट खाए कथित धर्म को पैदा करने वाले बदनाम करने की साजिश रचने लगते हैं. सूत्र
बताते हैं कि कारण उनकी ‘मोनोपॉली’ का टूटना है. दरअसल ये वो अधार्मिक तत्व हैं जो मानते हैं
कि मंदिर, ट्रस्ट और धर्म उन्हें तो विरासत में हासिल थी, तो फिर उसे संवारें या
लूट खाएं, उनकी मर्जी.
बता दें
कि न्याय के आय के स्रोत हम ‘शिवधाम सिंघेश्वर स्थान, स्मारिका-1999’ से उद्धृत कर आपके सामने रख रहे
हैं, जिस स्मारिका को तत्कालीन जिला पदाधिकारी सुनील बर्थवाल ने जारी किया था. इसके
अनुसार वार्षिक शिवरात्रि मेला भी सिंघेश्वर मंदिर न्यास की आमदनी का एक जरिया रहा
है.
पर इस
बार 01 मार्च को सिंघेश्वर मेला के बंदोबस्ती के लिए जो बोली लगाई गई उसमें
सिंघेश्वर मेला को न्यास के हाथ से छीन लेने के अथक प्रयास किये गए और इसी क्रम
में न्यास को अपनी इज्जत बचाने के लिए 09 लाख रूपये की बोली लगानी पड़ी, जबकि इसी
मेला की बंदोबस्ती गत वर्ष न्यास ने केवल 04 लाख 11 में हासिल किया था. न्यास के
सदस्य दिवाकर सिंह कहते हैं कि इतनी अधिक बोली लगाने के कारण इस बार मेले में
न्यास ‘नो प्रॉफिट नो लॉस’ की स्थिति में रह सकती है. यानि
मेले से होने वाली आमदनी जो मंदिर के विकास में लगाई जाती है, अबकी बार शून्य रह
सकती है.
धार्मिक
राजनीति के इस अखारे में माफिया पहलवान इतने शक्तिशाली और पहुँच वाले दीखते हैं कि
यदि इनकी चली तो मंदिर पर ये पूरी तरह कब्ज़ा कर सकते हैं और अब तक तो ट्रस्ट की
काफी जमीन पर ही इनका कब्ज़ा है, कल गर्भगृह में भी ये अपना बिस्तर लगा सकते हैं.
और इन सारे एपिसोड्स में ‘बाबा’ हैं खामोश.
सिंघेश्वर मेला: धर्म के नाम पर अधर्म की राजनीति
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 03, 2013
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