|राकेश सिंह|22 फरवरी 2013|
ट्रेड युनियन की दो दिनों की हड़ताल. चारों तरफ
त्राहिमाम. बैंक वालों ने भी खूब नारे लगाये. लगा जिंदगी आज से पहले निरर्थक थी,
आज सार्थक हो गई. एटीमएम में पैसे खतम. बैंक के ग्राहक मारे-मारे फिरने लगे. एक
संपन्न भाई साहब ने कहा, ‘कैसा बुड़बक, आदमी सब है. जब पता था कि हड़ताल हो रही है तो
क्यों नहीं पैसे पहले ही निकाल लिया.” पर भाई साहब को ये पता नहीं कि इसी तरह ज्यादा करके पैसे
निकाल लेने की वजह से ही एटीएम खाली हो गया होगा और अचानक मजबूरी आये हुए लोगों की
जिंदगी बर्बाद होनी शुरू हो गई. बीमारी और लाचारी बताकर तो नहीं आती. आपके जेब में
माल है, आप ग़रीबों का मजाक उड़ाते रहिये.
स्टेट
बैंक की मुख्य शाखा के पास मोबाइल पर चिल्लाता शंकरपुर का प्रभाकर सिंह. “अरे, जल्दी आओ...लेबर
मिस्त्री..मारके बर्बाद कर देगा..पैसा अभी नहीं दिया तो...कहीं से इंतजाम करो.
साला एटीएम बंद है...” पास
खड़ा एक दूसरा बूढ़ा.. “पुतोहू
के तबियत अचानक खराब भए गेले...ऐलिए रहै..एटीमएम से पैसा निकाइल के दवाय खरीदे
ले...बंद छै...आज जे हुए..मरे कि बचे..”
पता
नहीं सरकार बैंक या कम से कम एटीएम को ‘एस्मा’ के तहत रखी है या नहीं. भैया..आप को तो हैंडसम सैलरी मिलती
है और फैसिलिटी भी...आपको क्या पता ग़रीबों की लाचारी क्या होती है. संवेदनहीन हो
चुके हो..करो खूब हड़ताल अपनी सुविधाओं को बढाने के लिए...भांड में जाए बेबस और ‘सारे जहाँ से अच्छा..हिन्दोस्तां
हमारा..
बैंक वालों को खबर क्या बेबसी क्या चीज है....
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 22, 2013
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Madhepura mein private bank nahi hai kya ..kyun faltu mein log sarkari logon ke chakkar mein fanse hain
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