दिल्ली में चलती बस में एक युवती के साथ सामूहिक
दुष्कर्म के बाद जहाँ पूरा देश खौल रहा है वहीं मधेपुरा के लोगों में भी ऐसी घटना
के प्रति उबाल स्पष्ट देखा जा रहा है. दुष्कर्म के मामले में मधेपुरा की स्थिति भी
बेहतर नहीं है. यहाँ भी मासूमों के साथ आये दिन बलात्कार सुनने को मिलते हैं.
बलात्कारियों को सजा के मामले में भारतीय क़ानून सक्षम नहीं दीख पड़ता है. भारतीय
दंड संहिता में बलात्कार की कई स्थितियों के अनुसार सात साल या फिर दस साल से
आजीवन कारावास तक की सजा मुकर्रर की गयी है. (देखें धारा 376)
पर जाहिर सी बात है सजा काफी नहीं है बलात्कार की घटनाओं पर लगाम लगाने के लिए.
क्या सजा होनी चाहिए बलात्कारियों के लिए ? उधर राष्ट्रीय महिला आयोग की प्रमुख
ममता शर्मा ने बलात्कारियों को नपुंसक बनाने की मांग की तो मधेपुरा टाइम्स के
पाठकों ने भी बलात्कारियों को कठोरतम सजा देने की मांग की. (सभी प्रतिक्रिया देखने के लिए यहाँ क्लिक करें)
अनिकेत
सिंह, सावन कुमार यादव, राजेश आर्या, विधान कुमार, हिमांशु यादव, अकीब उस्मानी,
कपिल रस्तोगी, मनोज कुमार आदि कई पाठकों ने ऐसे दरिंदों के लिए फांसी की सजा को
उपयुक्त माना है. वहीं सुब्रत गौतम और मनीष वर्मा आदि जैसे पाठक राष्ट्रीय महिला
आयोग की प्रमुख ममता शर्मा की मांग का समर्थन करते हुए बलात्कारियों के अंग काट
देने जैसी सजा की सलाह देते हैं. पाठक सूरज सिंह सजा के साथ क़ानून की अनदेखी पर
सरकार को विचार करने की सलाह देते हैं. वहीं अपूर्व आनन्द भारतीय क़ानून में
बलात्कार की सजा में सुधार की सलाह देते कहते हैं कि सजा ऐसी होनी चाहिए जिसे सुन
कर ही दहशत पैदा हो. वे कहते हैं कि इनका अंग भंग किया जाय और आँखें निकाल कर किसी
जरूरतमंद को दे दी जाय.
आशीष प्रकाश की सलाह है कि ऐसे अपराधियों को
गाड़ी के पीछे बाँध कर लोगों के बीच तब तक घसीटा जाना चाहिए जबतक कि इसकी जान न
निकल जाए. वहीं अमित कुमार कहते हैं कि ऐसे व्यक्ति को इण्डिया गेट के सामने नंगे
कर उस पर जंगली कुत्ते छोड़ देना चाहिए. पाठक संजय कुमार यादव भी इन्हें नपुंसक बना
कर अपाहिज कर देने की वकालत करते हैं जिससे ऐसा व्यक्ति जिंदगी भर सजा भुगत सके.
मधेपुरा
टाइम्स की पाठिका रागिनी रंजन कहती हैं कि सरकार और पुलिस कुछ नहीं कर सकती. अब
समय आ गया है कि हम सब मिलकर इस घिनौने अपराध को जड़ से खत्म करें. वहीं मधेपुरा
टाइम्स की सक्रिय पाठिका रचना भारतीय कहती हैं कि अब और कुछ नहीं महिलाओं को
आत्मरक्षा के लिए हथियार उठाना होगा. मुझे अगर इन्हें सजा देने को कहे तो मैं
इन्हें नपुंसक बना कर उनके हाथ-पैर काट डालूंगी. रचना फिर आगे कहती हैं:
“ये जो लहरें उठ रही हैं,
इन्हें सुनामी बना दें,
जुर्म की हर इमारत को
अब ढहा दें.
फ़रियाद है उनके
बेबस आंसुओं की हमसे
कि हर दरिंदे की जिंदगी
को अंगार बना दें.”
(मधेपुरा टाइम्स ब्यूरो)
बलात्कारियों को हो सजा फांसी की, या फिर बना दिए जाएँ नपुंसक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 19, 2012
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