यहाँ कमाता है महमूदबा खाता है मक़सूदबा

संतोष सिंह तोमर/02 जुलाई 2012
बिहार में मजदूरों के कल्याण के लिए कई कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं लेकिन उनका लाभ उन्हीं मजदूरों को मिलता है जो सरकारी मुलाजिमों के करीब हैं या जो मिल रहे राशि में से आधा बिचौलिए और छुटभैये नेताओं में बाँट देते हैं.यह जानकर आश्चर्य होता है कि मजदूरों के हक के लिए लड़ने वाले लोग ही उनके हिस्से की खा जाते हैं.बिहार में विकास तो जरूर हो रहा है लेकिन उन्हीं लोगों के जो या तो सरकार के करीब हैं या दबंग हैं.बोलने वाले के पेट में निवाला और नहीं बोलने वालों के चूल्हे में पानी या यूं कहें कमाता है महमूदबा और खाता है मक़सूदबा. मजदूर दिवस पर उनके अधिकार की जानकारी देने का काम तो दूर की कौड़ी हो गया है.यह अलग बात है कि उनके नाम पर राजनीति कर जेबें जरूर भर रहे हैं.मजदूर दिवस के मौके पर कभी कभी मजदूरों के गोलबंद होने के नारे जरूर बुलंद होते हैं.
     जानकारों का कहना है कि मजदूरों के कल्याण हेतु कई संगठन बने हैं लेकिन वे सिर्फ कागज पर हैं या फिर उसके नाम पर राजनीति की रोटी सेंक रहे हैं.सरकार सिर्फ मजदूरों के नाम पर कल्याणकारी योजना चला दी है लेकिन मजदूरों को उनके अधिकार की जानकारी देने हेतु सरकारी एवं गैरसरकारी स्तर पर जागरूकता कार्यक्रम चलाना जरूरी नहीं समझा गया जिसका नतीजा यह है कि हर रोज बिहारव से मजदूरों का पलायन जारी है.सरकार का यह कहना कि बिहार से मजदूरों का पलायन रुक गया है कैसे मान लिया जाय.जबकि बिहार से दूसरे प्रदेश में जाने वाली रेलगाड़ियों में मजदूर भेड़-बकरियों की तरह भर कर जा रहे हैं.रेल मंत्रालय के आलाधिकारी का कहना है कि पिछले पांच सालों में बिहार ने रेलवे को रिकॉर्ड राजस्व दिया है.जब उनसे पूछा गया कि यह राजस्व कैसे बढा तो उनका कहना था कि मजदूरों का पलायन तेजी से हुआ है.
   इस समय बिहार सरकार के द्वारा बिहार राज्य प्रवासी मजदूर दुर्घटना अनुदान योजना, बाल श्रम अधिनियम, न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, बिहार राज्य भवन एवं अन्य सन्निमार्ग कर्मकार अधिनियम, राष्ट्रीय स्वास्थ्य बीमा योजना मजदूरों के लिए जिलों में चलाये जा रहे हैं.प्रवासी मजदूर दुर्घटना अनुदान योजना अंतर्गत कई जिलों में आवेदन पत्र बोरों में सड़ रहे हैं.प्रवासी मजदूरों के आश्रितों को अबतक अनुदान नहीं दिए गए हैं.जो भी दिए गए हैं वो अधिकारियों की दया पर दिए गए हैं.इसी प्रकार बाल श्रम अधिनियम अंतर्गत श्रमिकों को विमुक्त किये गए राशि जरूरतमंदों तक नहीं पहुँच पा रहे हैं.
     मतलब साफ़ है कि यहाँ के लोग कल भी भगवान भरोसे थे, आज भी हैं.हाँ, यह बात अलग है कि मीडिया के सामने सरकार विकास की गंगा बहाने में लगी है.अगर चंद सडकें चमका देना और चंद लोगों में विकास की रोशनी पहुंचा देना ही विकास है तो अब भी बिहार को दुर्भाग्य के सहारे जीना पड़ेगा.
यहाँ कमाता है महमूदबा खाता है मक़सूदबा यहाँ कमाता है महमूदबा खाता है मक़सूदबा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 02, 2012 Rating: 5

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