जाओ यहाँ से...///रश्मि प्रभा

मत करो कोई प्रश्न मुझसे
जवाब बनाते बनाते
खुद को जांबांज दिखाते दिखाते
मैं एक खाली कमरे सी हो गई हूँ !
संजोये हौसले
मंद बयारें
और मासूम मुस्कुराहटें
मैं लुटाती गई
और तुम सब पूछते गए
ये कहाँ से ? ये कहाँ से ?
और मैं झूठे नाम गिनाती गई
हटो यहाँ से -
इन सबों की स्वामिनी मैं खुद हूँ
अगर कभी कोई नाम लिया
तो उसे भी अपनी सोच से धरोहर बनाया
धरोहर कुछ था नहीं !
अपने प्रश्नों के उत्तर एक दिन तुम्हें मिलेंगे ज़रूर
कि सबकुछ जानते हुए
तुम अनजान बने रहे
और मेरे आगे एंवे प्रश्न रख
मुझे उलझाते रहे ...
जानती हूँ फिर भी कोई फर्क नहीं पड़ेगा
.....
खैर ,
मेरे उत्तरदायित्व अभी पूरे नहीं हुए हैं
अपने कमरे को मुझे खजानों से भरना है
हौसले , मंद बयारें और मासूम मुस्कान !
क्योंकि इसके बगैर
मुझसे निकली शाखाएं पनपेंगी नहीं
और मैं इन शाखाओं पर
विश्वास के फल लगे देखना चाहती हूँ
तो ....
प्रश्नों के पिटारे बन्द करो
और जाओ यहाँ से ....

 --रश्मि प्रभा,पटना
जाओ यहाँ से...///रश्मि प्रभा जाओ यहाँ से...///रश्मि प्रभा Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 26, 2012 Rating: 5

1 comment:

  1. itni achhi kavita k liye dhanyawad...tarif k liye sabd kam par rahe hain..so bas ek sabd ATTIUTTAM...

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