महिला जागरूकता पर बहुत सी बातें हैं जो कही जा सकती है ,लिखी जा सकती है परन्तु इनमे मुख्यतः दो ही मुद्दे ऐसे है जहा पे सभी बातें खत्म हो जाती हैं.
१.शिक्षा
२ सामाजिक अधिकार और समानता
जब कभी भी हम शिक्षा और समाज की बात करते है तो खुद को विदेशों से तुलना करते है ,कुछ बाते हैं जो हमें इनसे अलग करती है |
विदेशी समाज के खुलेपन और आधुनिक जीवनशैली से वशीभूत होकर हम हमेशा पुरुष प्रधान भारतीय समाज को महिलाओं के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार करने वाले एक रुढ़िवादी समाज की संज्ञा देते हैं. हालांकि यह कथन पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि आजादी के पश्चात जब सभी मनुष्यों को समान राजनैतिक अधिकारों से नवाजा जा चुका है, फिर भी सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से महिलाओं की स्थिति कैसी है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. आज की महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर तो हैं, लेकिन वहीं जब परिवार और समाज की बात करें तो इनकी स्थिति एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं है. जिनका उपयोग अपनी इच्छा और स्वार्थ पूर्ति के लिए किया जाता है. जहां एक ओर महिलाएं इस डर से अकेले घर से बाहर जाने के कतराती हैं कि कहीं वह किसी विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति की कुदृष्टि का शिकार ना हो जाएं, वहीं घर के भीतर भी उसे हम सुरक्षित नहीं कह सकते. हज़ारों ऐसे मामले हमारे सामने हैं जो पति द्वारा पत्नी के बलात्कार या उसके शारीरिक शोषण जैसी कड़वी सच्चाई बयां करते हैं.
इन हालातों और संकुचित मानसिकता से त्रस्त होकर आज महिलाएं पाश्चात्य जीवनशैली को एक आदर्श रूप में देखने लगी हैं. उनका मानना है कि अगर वहां लोगों की मानसिकता खुली और बोल्ड है तो यह एक सकारात्मक पक्ष ही है, क्योंकि ऐसे हालातों में शोषण और दमन जैसी चीजें कोई स्थान नहीं रखतीं. जिस समाज में महिलाएं भी बराबर महत्व और अधिकार रखती हैं वहां पुरुषों द्वारा शोषण किए जाने की बात नहीं की जा सकती.
अगर आप भी उन्हीं महिलाओं में से हैं जो विदेश में जाकर बसने के सपने देखती हैं या किसी विदेशी व्यक्ति से विवाह करने की योजना बनाती हैं तो हाल ही में हुआ एक अध्ययन आपको अपने इस निर्णय पर दोबारा सोचने के लिए विवश कर सकता है.
अमेरिका को हम अत्याधुनिक और मौज-मस्ती में डूबा देश मानते हैं. यह शहर आर्थिक रूप से इतना संपन्न है कि यहां रहने वाले व्यक्तियों को परेशानियां और मुश्किलें छू भी नहीं सकतीं. लेकिन इस शहर की घरेलू और सामाजिक हकीकत बहुत घिनौनी और अमानवीय है. यहां रहने वाली महिलाएं किसी भी रूप में सुरक्षित नहीं हैं.
अंत में मैं बस इतना कहूँगा ..........
शिक्षा मुक्ति और महिलाओं के सशक्तिकरण में एक शक्तिशाली उपकरण है. सबसे बड़ी एकल कारक है जो अविश्वसनीय रूप से किसी भी समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार कर सकते शिक्षा है. यह अपरिहार्य है कि शिक्षा महिलाओं को न केवल उसे चूल्हा और घर के बाहर की दुनिया के बारे में अधिक ज्ञान हासिल करने के लिए सक्षम बनाता है लेकिन उसकी स्थिति, सकारात्मक आत्म सम्मान और आत्मविश्वास, आवश्यक साहस और आंतरिक जीवन में चुनौतियों का सामना करने की ताकत पाने के लिए मदद करता है.............
.फिर भी आप को सनी लियोन और पूनम पांडे से जागरूकता मिलती है तो मैं कुछ नहीं बोल सकता ..
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
१.शिक्षा
२ सामाजिक अधिकार और समानता
जब कभी भी हम शिक्षा और समाज की बात करते है तो खुद को विदेशों से तुलना करते है ,कुछ बाते हैं जो हमें इनसे अलग करती है |
विदेशी समाज के खुलेपन और आधुनिक जीवनशैली से वशीभूत होकर हम हमेशा पुरुष प्रधान भारतीय समाज को महिलाओं के साथ भेदभाव और दुर्व्यवहार करने वाले एक रुढ़िवादी समाज की संज्ञा देते हैं. हालांकि यह कथन पूरी तरह गलत भी नहीं कहा जा सकता क्योंकि आजादी के पश्चात जब सभी मनुष्यों को समान राजनैतिक अधिकारों से नवाजा जा चुका है, फिर भी सामाजिक और पारिवारिक दृष्टिकोण से महिलाओं की स्थिति कैसी है, यह बात किसी से छुपी नहीं है. आज की महिलाएं शिक्षित और आत्मनिर्भर तो हैं, लेकिन वहीं जब परिवार और समाज की बात करें तो इनकी स्थिति एक वस्तु से अधिक कुछ नहीं है. जिनका उपयोग अपनी इच्छा और स्वार्थ पूर्ति के लिए किया जाता है. जहां एक ओर महिलाएं इस डर से अकेले घर से बाहर जाने के कतराती हैं कि कहीं वह किसी विकृत मानसिकता वाले व्यक्ति की कुदृष्टि का शिकार ना हो जाएं, वहीं घर के भीतर भी उसे हम सुरक्षित नहीं कह सकते. हज़ारों ऐसे मामले हमारे सामने हैं जो पति द्वारा पत्नी के बलात्कार या उसके शारीरिक शोषण जैसी कड़वी सच्चाई बयां करते हैं.
इन हालातों और संकुचित मानसिकता से त्रस्त होकर आज महिलाएं पाश्चात्य जीवनशैली को एक आदर्श रूप में देखने लगी हैं. उनका मानना है कि अगर वहां लोगों की मानसिकता खुली और बोल्ड है तो यह एक सकारात्मक पक्ष ही है, क्योंकि ऐसे हालातों में शोषण और दमन जैसी चीजें कोई स्थान नहीं रखतीं. जिस समाज में महिलाएं भी बराबर महत्व और अधिकार रखती हैं वहां पुरुषों द्वारा शोषण किए जाने की बात नहीं की जा सकती.
अगर आप भी उन्हीं महिलाओं में से हैं जो विदेश में जाकर बसने के सपने देखती हैं या किसी विदेशी व्यक्ति से विवाह करने की योजना बनाती हैं तो हाल ही में हुआ एक अध्ययन आपको अपने इस निर्णय पर दोबारा सोचने के लिए विवश कर सकता है.
अमेरिका को हम अत्याधुनिक और मौज-मस्ती में डूबा देश मानते हैं. यह शहर आर्थिक रूप से इतना संपन्न है कि यहां रहने वाले व्यक्तियों को परेशानियां और मुश्किलें छू भी नहीं सकतीं. लेकिन इस शहर की घरेलू और सामाजिक हकीकत बहुत घिनौनी और अमानवीय है. यहां रहने वाली महिलाएं किसी भी रूप में सुरक्षित नहीं हैं.
अंत में मैं बस इतना कहूँगा ..........
शिक्षा मुक्ति और महिलाओं के सशक्तिकरण में एक शक्तिशाली उपकरण है. सबसे बड़ी एकल कारक है जो अविश्वसनीय रूप से किसी भी समाज में महिलाओं की स्थिति में सुधार कर सकते शिक्षा है. यह अपरिहार्य है कि शिक्षा महिलाओं को न केवल उसे चूल्हा और घर के बाहर की दुनिया के बारे में अधिक ज्ञान हासिल करने के लिए सक्षम बनाता है लेकिन उसकी स्थिति, सकारात्मक आत्म सम्मान और आत्मविश्वास, आवश्यक साहस और आंतरिक जीवन में चुनौतियों का सामना करने की ताकत पाने के लिए मदद करता है.............
.फिर भी आप को सनी लियोन और पूनम पांडे से जागरूकता मिलती है तो मैं कुछ नहीं बोल सकता ..
(ये लेखक के निजी विचार हैं)
--रंजन कुमार, पटना
महिलाओं की शिक्षा, समाज और विदेशों से तुलना
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
February 25, 2012
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