कोसीनामा-1

कोसी की गाथा या यों कहें दु-गाथा की कई कहानियां हैं। क्योंकि इसे 'बिहार का शोक' कहा जाता है। इसकी कोई मुख्य धारा नहीं है।


उत्तर बिहार के समूचे इलाके के विस्तृत भूभाग से होकर यह गुजरती है। इलाके के लोग इसे 'धार" कहते हैं। बिहार के सहरसा, मधेपुरा, पूर्णिया, कटिहार, अररिया आदि जिलों के तमाम इलाकों में घूम आइये, कोसी किसी न किसी रूप में आपको 'ठाम-ठाम" पर मिल जाएगी। बड़े-बड़े नालों की तरह दीखने वाली कोसी की 'धार" आपको कभी सूखी मिलेगी तो कभी पानी से लबालब। कहीं इस पर सरकार के द्वारा बनाया गया 'पुलिया" दीख जाएगा तो कहीं ग्रामीणों द्वारा बांस, लकड़ी
या फिर सीमेंट के पोल से बनाया गया पुल। अनोखी दास्तां है कोसी की और कोसी के दामन में रहने वाले लोगों की। 
         कोसी कभी सूखती नहीं। इसकी आंखों में आंसू हमेशा रहते हैं। अपने अल्हड़पन से लोगों को त्रस्त करने के बाद इसे काफी पछतावा भी होता है। क्योंकि बरसात के मौसम के बाद जब यह शांत होती है तो पूरे इलाके में कोसी के दर्द को देखा जा सकता है। छोटे-बड़े नालों के रूप में बहने वाली कोसी में पानी तो जरूर रहता है लेकिन वह उसके विराट स्वरूप में सिर्फ आंसू की तरह नजर आता है।


उस वक्त न वह अल्हड़पन दिखाई देता है और न ही औघड़पन। शांत, निर्मल। इतना निर्मल कि आप यदि एक 'चुरू" पानी भी भी लें तो आपकी आत्मा 'तिरपित" हो जाएगी। आपको विश्वास नहीं होगा कि यह वही कोसी है, जिसके गुस्सैल स्वभाव ने इलाके को जलमग्न कर दिया और सभी को खुद में समाहित कर चुकी है। यह हाल बरसात के मौसम के बाद पूरे साल कोसी की रहती है। 

जब आप कुरसेला से होकर गुजरेंगे, वह चाहे रेल मार्ग हो या फिर सड़क मार्ग। कुरसेला पुल से गुजरते हुए आपको साफ-साफ दीख जाएगा कि किसी तरह कोसी गंगा से मिल रही है। एक तरह 'तामस" रखने वाली कोसी वहीं दूसरी तरफ शांत-निर्मल गंगा। दोनों के पानी में अंतर। रंग में अंतर। पानी की धारा में अंतर। नदी की 'चक्करघिन्नी" में भी अंतर। लेकिन कोसी अपने इलाके में क्यों न कितनी भी झटपटाहट रखती हो, करवट बदलती हो लेकिन जब उसे गंगा 'हग" करती है तो फिर क्या मजाल कि कोसी का मन शांत न हो। जो कोसी हर साल पूरे इलाके में जानमाल से लेकर लाखों की संपत्ति लील जाती है उसी कोसी का मन गंगा से मिलकर गंगा में ही विलीन हो जाती है। कोसी मैया है और गंगा भी मैया। लेकिन गंगा को कोसी की 'पैग" बहन कहा जाता है। गंगा तो गंगा लेकिन कोसी जब गंगा के आंचल में आती है तो उसे 'माय के आंचर" जैसा सुकून मिलता है। लोग कहते हैं कि जब कोसी लहलहाती है तो उसके सामने कोई भी ठहर नहीं पाता लेकिन वह जब गंगा में मिलती है तो उसके तीव्र वेग कहां चला जाता है, कोई नहीं जानता। 

कोसी में एक विक्षोभ है, वही विक्षोभ आपको यहां की मिट्टी में पले लोगों में मिलेगा। कोसी में एक सन्यास भाव है, वह न किसी से प्रेम करती है और न ही विरक्ति का भाव ही रखती है। कोई मोह नहीं, कोई माया नहीं। एक औघड़पन है, एक अल्हड़पन है कोसी में। जब जिधर मूड किया, उसी करवट में चलती रहती है। गांव का गांव डूब गया, कोई अपनत्व नहीं दिखाती तो कोई परायापन भी नहीं है इसमें। कोसी लोगों को जीना सिखाती है। कोसी संदेश देती है कि यह जीवन क्षणभंगुर है। न किसी से मोह रखो और न ही किसी से द्वेष ही। कोसी की नजर में सब एक है, बिलकुल 'सूफी" की तरह। सूफीनामा अंदाज में वह पूरे इलाके में घूमती रहती है। गंगा से उसे जबर्दस्त लगाव है। वह बंधे नहीं रह पाती लेकिन गंगा से मिलने के बाद अपने वजूद को भूल जाती है।
 --विनीत उत्पल,नई दिल्ली
कोसीनामा-1 कोसीनामा-1 Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on August 06, 2011 Rating: 5

2 comments:

  1. suprb......shayad yahi karan hai ki mai aisa hun.

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  2. Vinit aap " Maithili" ke sabdon ka sundarta ke sath Hindi mein upyog karte hain.

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