चित्रकला और मूर्तिकला में है अपार संभावनाएं, रोजगार के साथ-साथ यश भी

वर्तमान में चित्रकला और मूर्ति कला के प्रति लोगों में उदासीनता का भाव दिखता है। लेकिन सच्चाई यह है कि अगर भटक रहे बेरोजगार युवा इस ट्रेड को अपनाते हैं तो बहुत हद तक बेरोजगारी को दूर किया जा सकता है।

 बिहारीगंज के गमैल निवासी विपीन कुमार झा के पुत्र आर्टिस्ट कृष्ण कुमार झा का कहना है कि अपनी मेहनत लगन और अभ्यास से कला में दक्षता प्राप्त की जा सकती है। निरंतर अभ्यास बहुत महत्वपूर्ण है। कला एक साधन है। कला एक आत्मिक व आंतरिक ज्ञान है। समाज में एसे बहुत सारे बच्चे होते हैं जिन्हें कला की तरफ रुझान होता है परंतु जानकारी के अभाव में वे अपनी आंतरिक कला को लेकर आगे नहीं बढ़ पाते हैं।

 कला एवं शिल्प महाविद्यालय पटना से अपना ग्रेजुएशन पूरा करने के बाद कृष्ण कुमार राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में कला का प्रदर्शन कर अच्छा खासा कमा रहें हैं। भोजपुर जिला में वन विभाग का कार्यालय हो या रांची के पावर ग्रिड हो, उन्होंने अपनी पेंटिंग और मूर्ति कला से उपरोक्त स्थलों को मनोरम व दार्शनिक बना दिया है। बिहार की राजधानी पटना रेलवे जंक्शन के बाहर स्वतंत्रता संग्राम और छठ पूजा की पेंटिंग और प्लेटफार्म पर अपनी मधुबनी चित्रकला से खुद को सिद्ध कलाकारों की सूची में स्थापित किया है। अपने क्षेत्र में भी इन्होंने अपनी कला से लोगों को प्रभावित किया है।इसके अलावे उदाकिशुनगंज के अनुमंडल कार्यालय, पुस्तकालय और  हर्बल पार्क में उनकी कलाकृति की लोग मुक्त कंठ से प्रशंसा कर रहें हैं। इसके अलावे गया में बिहार सरकार की बाला पेंटिंग की योजना में भी उन्होंने बहुत सारे काम किए हैं। उदाकिशुनगंज अनुमंडल के सरकारी विद्यालयों में उन्होंने बखूबी अपनी छाप छोड़ी है। बिहारीगंज के हथिऔंधा पंचायत स्थित प्राथमिक विद्यालय पड़ोकिया में तितली की पंखुड़िया देखकर लोग कुछ देर तक देखते रह जाते है। 

सरकारी विभागों में कलाकारों के कई पद होते हैं. पिछले दिनों शिक्षक भर्ती प्रक्रिया में भी कलाकारों के पद आवंटित किए गए थे। लेकिन यह बहुत कम था। उम्मीद है कि भविष्य में और ज्यादा रिक्तियां आएगी कला हमेशा से किसी भी सभ्यता और संस्कृति के उत्थान पतन में अहम भूमिका निभाती रही है। कला समाज को सुसंस्कृत बनाती है। कला आंतरिक और बाह्य दोनों रूपों में सात्विकता लाती है। चीजों को सुंदर से सुंदरतम बनाना और उसमें आकर्षण पैदा करना ही कला है। उनका कहना है कि जो भी इस क्षेत्र में रुचि रखते हैं, उनको जरूर इस क्षेत्र में आगे बढ़ना चाहिए। इंटरमीडिएट परीक्षा पास करने के बाद किसी भी कला महाविद्यालय में प्रवेश लिया जा सकता है। इसके लिए प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण करना आवश्यक है। हालांकि बिहार में एकमात्र कला महाविद्यालय है, लेकिन देश के और विभिन्न क्षेत्रों में भी ऐसे महाविद्यालय हैं वहां प्रवेश पाकर लोग इस दिशा में आगे बढ़ सकते हैं। आर्थिक स्थिति की बात करें या रोजगार की बात करें तो विभिन्न सरकारी पदों पर नौकरी की जा सकती है। हालांकि यह बहुत कम है लेकिन निजी सेक्टर में बहुत सारा काम है। जो कला से संबंधित है इसके अलावा फ़िल्म निर्माण में भी दृश्य कला की अहम भूमिका है। साथ ही स्वतंत्र रूप से भी कलाकार धन अर्जन कर सकते हैं। 

कृष्ण कुमार झा अपना कला गुरु श्री आनंदी प्रसाद बादल को मानते हैं। आनंदी प्रसाद बादल बिहार के वरिष्ठ कलाकार हैं। कृष्ण झा कहते हैं कि बादल कर के सानिध्य में कला की बारिकियों को जानने सीखने का मौका मिलता है। बड़े सौभाग्य की बात है कि उनका आशीर्वाद और मार्गदर्शन उन्हें मिल रहा है। आमजनों एवं खासकर रोजगार के लिए भटक रहे  बेरोजगार युवाओं के लिए कला रोजगार का बहुत बड़ा साधन बन सकता है।  अनभिज्ञ लोग उदासीनता बरत रहे हैं। लेकिन यह एक ऐसी कला है जिस माध्यम से रोजगार के साथ-साथ नाम और यश भी लोग कमा सकते हैं। 

(रिपोर्ट: रानी देवी)

चित्रकला और मूर्तिकला में है अपार संभावनाएं, रोजगार के साथ-साथ यश भी चित्रकला और मूर्तिकला में है अपार संभावनाएं, रोजगार के साथ-साथ यश भी  Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 15, 2024 Rating: 5

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