रुपौली विधानसभा उपचुनाव: टूट रहे मिथक, बदल रही सीमांचल की राजनीति, इंडिया और एनडीए को दिखाया आईना

रुपौली विधानसभा उपचुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने कड़े मुकाबले में निकटम प्रतिद्वंदी कलाधर प्रसाद मण्डल को 8253 मतों से पराजित कर दिया है। जबकि, राजद की बीमा भारती तीसरे स्थान पर रही। निर्दलीय शंकर सिंह को कुल 68067 मत, जेडीयू के कलाधर मण्डल को 59814 मत और राजद की बीमा भारती को 30613 मत प्राप्त हुए। मतगणना आरम्भ होने के बाद सातवे राउंड तक जेडीयू ने बढ़त बनाए रखी लेकिन, उसके बाद बढ़त बनाने वाले निर्दलीय ने 13 वे राउंड में जीत हासिल कर लिया।

निर्दलीय प्रत्याशी की जीत के कई मायने हैं। बड़ा सवाल यह है कि क्या सीमांचल की राजनीति बदल रही है ? यह सवाल इसलिए कि हालिया सम्पन्न पूर्णिया लोकसभा चुनाव में भी निर्दलीय पप्पू यादव ने जीत दर्ज किया था।निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह ने अपराध जगत के रास्ते ही राजनीति में दाखिला लिया है। 90 के दशक में पूर्णिया में दो आपराधिक गिरोह सक्रिय था जिसमे नार्थ बिहार लिबरेशन आर्मी का नेतृत्व शंकर सिंह तो फैजान गिरोह की सरदारी पूर्व विधायक बीमा भारती के पति अवधेश मण्डल किया करते थे। दोनों गिरोह का उद्देश्य समाज-सेवा नही वर्चस्व स्थापित करना था। बाद में दोनों राजनीतिक गिरोह का खात्मा हुआ और इससे जुड़े सदस्यों ने राजनीति और ठेकेदारी का रुख कर लिया।शंकर सिंह और अवधेश मण्डल दोनों ने अपनी-अपनी पत्नी के साथ राजनीति में कदम रखा। लेकिन,यह चुनाव परिणाम एनडीए और इंडिया दोनों के लिए किसी चेतावनी से कम नहीं है। तमाम ताकत और संसाधन झोंकने के बाद भी दोनों गठबन्धन की हार इस बात का संकेत है कि सीमांचल की राजनीति नई करवट ले रही है।खास बात जो निकल कर सामने आ रही,वह यह है कि जाति विशेष किसी खास दल की पूंजी नही रही है। क्योंकि, निर्दलीय शंकर सिंह एनडीए और इंडिया दोनों के वोटबैंक में सेंधमारी करने में सफल रहे हैं।


निर्दलीय प्रत्याशी की मेहनत लाई रंग 

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 शंकर सिंह वर्ष 2005 फरवरी में हुए विधानसभा चुनाव में लोजपा के टिकट पर बीमा भारती को पराजित कर विधानसभा पहुंचे थे। लेकिन इसी वर्ष नवम्बर में हुए दोबारा चुनाव में उन्हें बीमा भारती से हार का सामना करना पड़ा था। लेकिन, उसके बाद से भी शंकर सिंह लगातार चुनाव में उम्मीदवार बनते रहे। इसी बीच शंकर सिंह की पत्नी प्रतिमा सिंह रुपौली प्रखण्ड से जिला पार्षद चुनी गई। हार के वाबजूद श्री सिंह लगातार क्षेत्र की जनता के बीच बने रहे और समय-समय पर उनकी मदद भी करते रहे।शंकर सिंह की इस जीत में उनकी जिला पार्षद पत्नी की क्षेत्र में सक्रियता ने अहम भूमिका अदा की है।


बीमा के खिलाफ एन्टी इंकम्बनसी तो कलाधर थे नया चेहरा

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 बीमा भारती लगातार 24 वर्षों से रुपौली विधानसभा का प्रतिनिधित्व करती रही थी। हालांकि, इस इलाके में पूर्व की तुलना में काफी विकास हुआ है लेकिन क्षेत्र में बीमा के प्रति असंतोष था। उनपर आरोप था कि वे क्षेत्र विशेष की अनदेखी करती रही है। हालांकि, एन्टी इंकम्बनसी से बड़ी वजह यह रही कि बीमा और कलाधर एक ही जाति 'गंगोता' से आते हैं और इसकी सबसे अधिक आबादी इस विधानसभा में है और इस वोट का विभाजन हो गया।वहीं, कलाधर मण्डल इसी विधानसभा क्षेत्र के वासी तो हैं लेकिन उनकी पहचान पूरे क्षेत्र में नही होना उनके लिए कमजोर कड़ी साबित हुआ।


मंत्री लेशी सिंह की कोशिश और पप्पू यादव की अपील रही बेअसर

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 जेडीयू और राजद के लिए यह सीट प्रतिष्ठामूलक थी। क्योंकि, पंरपरा गत तौर पर यह जेडीयू की सीट रही है तो बीमा भारती को फिर से इस सीट पर वापस लाना राजद के लिए धर्मयुद्ध के समान था। राजद के लिए विधायकी से इस्तीफा देने वाली बीमा भारती हाल ही में लोकसभा चुनाव में बुरी तरह से पराजित हुई थी। जेडीयू की जीत के लिए बिहार सरकार की मंत्री लेशी सिंह ने एड़ी-चोटी एक कर दिया लेकिन वे अपना स्वजातीय मत भी कलाधर मण्डल को दिलाने में विफल साबित हुई। सवर्णों का अधिकांश मत शंकर सिंह के हिस्से गया। पूर्व सांसद संतोष कुशवाहा ने भी जेडीयू प्रत्याशी के लिए खूब पसीना बहाया लेकिन, जीत नही दिला सके। जबकि, खास बात यह है कि लोकसभा चुनाव में जेडीयू प्रत्याशी संतोष कुशवाहा को रुपौली से लगभग 25 हजार मतों की बढ़त मिली थी। इस चुनाव में सांसद पप्पू यादव पहले तो समर्थन को लेकर  गोल-मटोल बातें करते रहे फिर चुनाव से दो दिन पहले बीमा भारती के लिए  मतदाताओं से हाथ जोड़कर बड़ा ही भावुक अपील किए लेकिन पप्पू यादव की यह अपील भी बेअसर साबित हुई और बीमा के किसी काम नही आई।


दरक गया माय समीकरण, एनडीए की वोट में सेंधमारी 

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 बीमा के लिए तो 'दुविधा में दोनों गए, माया मिली न राम' वाली हालत हो गई। सांसदी तो मिली नही विधायकी भी चली गई। यह हार राजद के लिए चिंता का सबब इस मायने में है कि यहां माय समीकरण दरक गया। मोटे अनुमान के अनुसार अधिकांश यादव तो राजद के साथ रहा. लेकिन लगभग 50 फीसदी मुस्लिम वोटरों ने निर्दलीय के साथ जाना पसंद किया। लोकसभा चुनाव में तो मुस्लिम और यादवों ने एकमुश्त राजद की बजाय निर्दलीय पप्पू यादव को वोट दिया था। मुस्लिमों के अलग होने का कारण स्थानीय राजनीति बताई जाती है। जानकार तो यह बताते हैं कि सीमांचल में अल्पसंख्यक विधानसभा चुनाव 2020 से ही अपना स्वतंत्र अस्तित्व तलाशने में जुटे हैं, जो एआईएमआईएम की एंट्री के बाद से ही स्पष्ट है।अगर यह सच है तो राजद और जेडीयू दोनों के लिए खतरे की घण्टी है। इस उपचुनाव में लोकसभा चुनाव की तरह ही एनडीए के वोटबैंक में खूब सेंधमारी हुई। तब यह चर्चा आम थी कि भाजपा समर्थक वोटरों की बेरुखी से लोकसभा चुनाव में जेडीयू की हार हुई। इस उपचुनाव में बनिया, कैबर्ट, धानुक जैसे पिछड़ी-अतिपिछड़ी जातियों में सेंधमारी तो हुई ही सवर्णों का अधिकांश वोट निर्दलीय प्रत्याशी शंकर सिंह लेने में सफल रहे। कुल मिलाकर,यह जीत शंकर सिंह की जीत से अधिक एनडीए और इंडिया के शीर्ष नेताओं की हार है। क्योंकि, इस उपचुनाव में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार, केंद्रीय मंत्री, राज्य सरकार के मंत्री, नेता प्रतिपक्ष तेजश्वी यादव, दर्जनों सांसद और विधायक की उपस्थिति भी इंडिया और एनडीए प्रत्याशी को जीत नही दिला सकी। निश्चित रूप से अतिपिछड़ा वोट-बैंक में सेंधमारी ख़ासकर नीतीश कुमार के लिए चिंता का विषय बन गया है।





पंकज भारतीय 

(लेखक एनडीटीवी के वरिष्ठ पत्रकार हैं।)



रुपौली विधानसभा उपचुनाव: टूट रहे मिथक, बदल रही सीमांचल की राजनीति, इंडिया और एनडीए को दिखाया आईना रुपौली विधानसभा उपचुनाव: टूट रहे मिथक, बदल रही सीमांचल की राजनीति, इंडिया और एनडीए को दिखाया आईना Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on July 15, 2024 Rating: 5

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