इस आध्यात्मिक आयोजन को संबोधित करते हुए सहरसा से आए शिव शिष्य परिवार से सुबोध बाबू व रमेश गुरु भाई ने कहा कि यह स्मरण रखना है कि शिव गुरु की दया ही शिष्य के जीवन का आधार है. शिष्य भाव के जागरण हेतु हमेशा यह स्मरण रखना चाहिए कि शिव मेरे गुरु हैं. गुरु की दया ही लौकिक पारलौकिक चारोत्कर्ष का रहस्य है. जिस तरह सूर्य का प्रकाश और पेड़ की छाया जाति धर्म संप्रदाय अमीरी गरीबी नहीं देखती है, उसी तरह भगवान शिव की दया पाने के लिए शिव की शिष्यता के अलावा मनुष्य के पास कोई विकल्प नहीं है.
कहा कि जगतगुरु का शिष्य बनने के लिए किसी जाति धर्म वर्ण लिंग उच्च नीच का कोई भेदभाव नहीं है. जगत शिव की शिष्यता ग्रहण करने के लिए इस कालखंड के प्रथम शिव शिष्य हरिन्द्रानंदन जी एवं उनकी धर्मपत्नी शक्ति स्वरूपा दीदी नीलम आनंद के द्वारा तीन सूत्र बताए गए हैं, जिसमें दया मांगना, चर्चा करना एवं अपने गुरु को नमः शिवाय से प्रणाम करने को कहा गया है । तीन सूत्र का पालन जो प्राणी प्रतिदिन मन से करता है उसपर गुरु शिव की दया नियंत्रित होती है. इसका प्रमाण शिव गुरु परिचर्चा होने वाली भीड़ को देख लगाया जा सकता है. आज शिव चर्चा में तेरह धावा वाली कहावत चरितार्थ हो रही है। इस अवसर पर स्थानीय गुरु भाई मनोज जी देवेंद्र जी बेचन जी शंभु जी सहित कई गुरु बहना उपस्थित थे।
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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January 11, 2024
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