एक रेलवे स्टेशन/हॉल्ट बनने की कहानी: डॉ. श्रीमंत जैनेन्द्र

आज कारू खिरहर हॉल्ट का जन्मदिन है। आज से ठीक 20 साल पहले 2004 ईस्वी में देश के तत्कालीन रेल मंत्री नीतीश कुमार ने इसका उद्घाटन किया था। 

सहरसा से मधेपुरा, पूर्णियाँ, कटिहार रेलवे रूट पर सहरसा से ट्रेन खुलने के बाद यह बैजनाथपुर से पहले पड़ता है। यह सहरसा शहर के अंदर ही है। यह कुछ दिनों में दिल्ली, पटना से नार्थ ईस्ट जाने का वैकल्पिक रूट भी बनने वाला है। अभी भी एकमात्र मानसी-कटिहार रूट पर दिक्कत होने पर राजधानी सहित अन्य ट्रेन को भी इसी रूट से गुजारा जाता है। 

12 जनवरी 2004 को जब देश के रेल मंत्री माननीय नीतीश कुमार जी इसका उद्घाटन किया था तो उद्घाटन की थाली, कैंची, फूल, फीता लेकर पूरी तैयारी मैंने ही की थी। इसलिए आज भी जब मैं इस हॉल्ट पर जाता हूँ तो एक गर्वबोध से भर जाता हूँ।

आइये अब आपको इस स्टेशन/हॉल्ट के बनने की रोचक कहानी सुनाता हूँ। क्योंकि यह हॉल्ट लम्बे संघर्ष के बाद बना था। साथ ही इसका नामकरण भी रोचक है।

नब्बे के दशक में सहरसा के पॉलिटेक्निक इलाके में हॉल्ट की माँग शुरू हुई थी। एक तर्क था कि इलाका सुनसान है और सहरसा रेलवे स्टेशन से रात-बिरात आने-जाने में दिक्कत होती है, इसलिए यहाँ हॉल्ट बने। इंजीनियर रमेश सिंह, प्राचार्य गणेश मेहता, वार्ड कमिश्नर दिनेश यादव, मायानन्द मिश्र के बड़े पुत्र विद्यानंद मिश्र, रेलवे पदाधिकारी रुद्रा बाबू, वार्ड कमिश्नर कलीम, MLC इजराइल राइन सहित कई गणमान्य लोग इस माँग का नेतृत्व कर रहे थे। मेरे पापा भी इसकी बैठक में नियमित जाते थे। 

इसी बीच पता चला कि तत्कालीन रेल राज्य मंत्री दिग्विजय सिंह सहरसा के रेलवे कॉलोनी मैदान पर आ रहे हैं। चर्चित साहित्यकार मयानंद मिश्र के बड़े बेटे विद्यानंद मिश्र जेएनयू में दिग्विजय सिंह के बैचमेट थे। स्थानीय सांसद दिनेश चंद्र यादव और विद्यानंद मिश्र के प्रयास से दिग्विजय सिंह ने खुले मंच से पॉलिटेक्निक इलाके में हॉल्ट बनाने का आश्वासन दिया है। 

संयोग से इस बीच देवनारायण यादव ऊर्फ नुनू यादव और इंदेसर यादव पापा के संपर्क से इस माँग के साथ जुड़े। दोनों मेरे मामा लगते हैं। नुनू मामा कारू खिरहरी विकास परिषद के अध्यक्ष थे। मेरे घर के आँगन में रणनीति बनती। चंदा का प्रारूप तैयार होता। दिन भर चाय बनती रहती। लोगों का जमावड़ा होता। ठंड में अलाव जलता। रात तक लोग बैठे रहते। कई साल ऐसा ही चला। हॉल्ट के समर्थन में दो बार भगैत महासम्मलेन का आयोजन किया गया। तब माँग ने जोर पकड़ लिया।

अब नामकरण के बारे में चर्चा शुरू हुई। पापा ने कारू खिरहर के नाम पर हॉल्ट का नाम रखने का प्रस्ताव दिया। कुछ लोगों ने इस पर आपत्ति की और कहा कि इस इलाके से कारू खिरहर का क्या सम्बन्ध है?

संयोग से यह इलाका नया था और इसका कोई नाम नहीं था। वार्ड कमिश्नर जीतेन्द्र यादव और नगरपालिका की तत्कालीन चेयरमैन रेणु सिन्हा के प्रयास से इस मुहल्ले का नाम आधिकारिक नाम कारू खिरहरी नगर रखा गया।

अब सांसद दिनेश चंद्र यादव इस प्रस्ताव को लेकर तत्कालीन रेल मंत्री ममता बनर्जी के पास गए। ममता बनर्जी ने इस नाम के साथ हॉल्ट की स्वीकृति दे दी। इसके बाद रेलवे के अधिकारियों ने आकर जमीन की नापी की और भविष्य को ध्यान रखकर हॉल्ट बनने की जगह निर्धारित की।

बाद में ममता बनर्जी की जगह नीतीश कुमार रेल मंत्री बने। उनके सहरसा आने का कार्यक्रम बना। वे परमिनिया और भैरोपट्टी में हॉल्ट का उद्घाटन करने आने वाले थे। सांसद दिनेश चंद्र यादव भी उनके साथ आ रहे थे। संभावित उद्घाटन को ध्यान में रखकर श्रमदान से मिट्टी भराई का काम शुरू हो गया।

लेकिन एक आशंका थी कि शायद रेलमंत्री हॉल्ट का उद्घाटन न करे। इसलिए जैसे ही रेल मंत्री का सैलून दूर से ही दिखा लोग पटरी के आगे लेट गए।  रेल मंत्री का सैलून हॉल्ट के प्रस्तावित स्थल से थोड़ा पहले ही धीमा हो गया। डीजल इंजन पर लम्बे-लम्बे बूट में सुरक्षाकर्मी दोनों तरफ से खड़े थे। गाड़ी रुकी और नारा लगा तो सहरसा के सांसद दिनेश चंद्र यादव के साथ-साथ नीतीश कुमार भी सैलून से उतरे।

हॉल्ट के नाम पर सिर्फ मिट्टी भराई हुई थी। मिट्टी कच्ची थी और उसपर हजारों लोग चढ़े हुए थे। सुरक्षा की दृष्टि से सुरक्षाकर्मियों ने धक्का देकर सबको नीचे धकेल दिया। एक भी व्यक्ति को हॉल्ट पर नहीं रहने दिया। मुझे भी सुरक्षाकर्मियों ने धक्का दिया तो मैंने कहा कि मुझे उद्घाटन करवाना है। मैंने कैंची, फीता और प्लेट दिखाया। उन्होंने न चाहते भी मुझे दुबारा धक्का नहीं दिया और वहीं रहने दिया। हॉल्ट के नीचे की जमीन पर तम्बू लगाकर भगैत गायन हो रहा था। रेल मंत्री को देखकर गायक लोग भी जोर-जोर से चीख कर भगैत गा रहे थे।

सांसद साहब लोगों से बातचीत करके उनसे शांत रहने को कह रहे थे। नारों से हॉल्ट गूँज रहा था। इतने में नीतीश कुमार अकेले मेरी तरफ बढ़े। मैं हॉल्ट के बीचोंबीच उद्घाटन के साजों-समान के साथ अकेला खड़ा था। मैं भी टुकुर-टुकुर नीतीश कुमार को ही देख रहा था। उन्होंने मेरे पास आकर मुझे कहा कि लाओ फीता काट ही देते हैं। मैंने पूरी तैयारी कर रखी थी। उन्होंने कैंची उठायी और फीता काट दिया। 

भगैत गाने वाले से लेकर नीचे खड़े लोग सबलोग एक साथ उछलने लगे। कोलहल मच गय। किसी को विश्वास ही नहीं हो रहा था कि अब कल से अपने मुहल्ले में ट्रेन रुकने लगेगी। नीतीश कुमार का जोरदार अभिनन्दन किया गया। मोहन यादव के लिखे अभिनन्दन पत्र को पापा ने पढ़ा।

नीतीश कुमार जिंदाबाद के नारों और हॉल्ट की ताजा मिट्टी की धूल में रेल मंत्री का सैलून आगे बढ़ गया । अब उनको आगे भैरोपट्टी हॉल्ट का भी उद्घाटन करना था।

जब हॉल्ट का उद्घाटन हुआ तो टिकट लेने के लिए पापा सबसे पहले लाइन में लगे। प्राचार्य सियाराम मेहता उनके ठीक पीछे लाइन में लगे थे। उन्होंने अनुरोध किया कि मैं बुजुर्ग हूँ पहला टिकट मुझे लेने दीजिये तो पापा ने उनको आगे आने दिया। तब दूसरा टिकट पापा ने खरीदा।

हॉल्ट पर टिकट काटने के लिए एक झा जी को नियुक्त किया गया था। टिकट काटने के लिए संसाधन नहीं था इसलिए पापा ने एक टेबुल झा जी को दिया। शुरुआती महीने में उसी पर टिकट कटा। आज भी वह टेबुल मेरे घर में है।

बाद में टिकट काटने की ठिकेदारी मदन यादव को मिली। उनकी तरफ से चौबे यादव टिकट काटते थे। चारों तरफ हल्ला था कि हॉल्ट पर अगर टिकट ज्यादा नहीं कटा तो हॉल्ट कैंसिल हो जाएगा। शुरू में तो मुहल्ले के लोग खड़ा होकर सबसे टिकट कटवाते थे। टिकट की खूब बिक्री होने लगी।

लेकिन कुछ लोग ऐसे थे जो टिकट नहीं खरीदते थे। उनको पकड़ने के लिए चौबे यादव का तरीका बड़ा शानदार था। उन्होंने ऐसे लोगों को चिन्हित कर लिया था जो टिकट नहीं लेते थे। अधिकतर लोग ट्रेन के गेट पर ही खड़े होकर सफर करते थे। जब ट्रेन खुलने को होती थी तब चौबे उनके पैर में लटक जाते थे और उनको खींच लेते थे। वह गुहार लगाता था कि मुझे छोड़ दीजिए अगली बार से टिकट ले लूंगा लेकिन चौबे नहीं मानते थे और उसकी ट्रेन छुड़ा कर ही दम लेते थे।

सब लोगों की मेहनत का यह परिणाम है कि आने वाले समय में यहां से सहरसा स्टेशन के लिए एक बायपास रूट शीघ्र बनने वाला है। भविष्य में यह स्टेशन भी बन जाएगा। जैसे-जैसे सहरसा स्टेशन पर दबाव बढ़ेगा तो हो सकता है कि लंबी दूरी की ट्रेन यहां से भी खुले।

इस स्टेशन पर मेरा भी लगाया एक पेड़ है। पेड़ भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है और स्टेशन भी धीरे-धीरे बढ़ रहा है। जब भी मैं स्टेशन पर बैठता हूं तुम मुझे ऐसा लगता है कि जैसे मैं अपने दरवाजे पर बैठा हूं। शहर में सार्वजनिक  जगहों की संख्या कम है। कुछ पार्क बने हैं तो वह इस जगह से दूर हैं। इसलिए यह मोहल्ले के लोगों के लिए एक पार्क भी है। सुबह शाम यहां बहुत सारे बुजुर्ग  टहलते और बैठकर गप्प मारते दिखाई पड़ते हैं। 






डॉ. श्रीमंत जैनेन्द्र
असिस्टेंट प्रोफेसर
हिन्दी विभाग, पश्चिमी परिसर पी.जी. सेंटर, सहरसा
भूपेन्द्र नारायण मंडल विश्वविद्यालय, मधेपुरा
मोबाइल- 9250321601
मेल- shrimant.jainendra22@gmail.com
एक रेलवे स्टेशन/हॉल्ट बनने की कहानी: डॉ. श्रीमंत जैनेन्द्र एक रेलवे स्टेशन/हॉल्ट बनने की कहानी: डॉ. श्रीमंत जैनेन्द्र Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on January 12, 2024 Rating: 5

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