"बचपन से ही अच्छे संस्कार और आचरण का ज्ञान देने से बनता है एक सभ्य नागरिक": साध्वी सुश्री कालिन्दी भारती
नौ दिवसीय "श्रीमद् भागवत कथा ज्ञान यज्ञ" के तीसरे दिन सर्वश्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या कथा व्यास भागवत भास्कर महामनस्विनी साध्वी सुश्री कालिन्दी भारती ने कहा कि बच्चों में बचपन से ही अच्छे संस्कार और आचरण का ज्ञान देने से "बनता है एक सभ्य नागरिक"
प्रबल संस्कार से शिक्षा पल्लवित होगी. वर्तमान समय में यह महसूस किया जा रहा है कि जैसे-जैसे शिक्षित नागरिकों का प्रतिशत बढ़ रहा है, वैसे-वैसे समाज में जीवन मूल्यों में गिरावट आ रही है. हमें मूल्यों के सौंदर्य का बोध होना चाहिए. बच्चे देश का भविष्य हैं. वे तनाव, अवसाद, बाह्य आकर्षण और अनुशासनहीनता के शिकार हैं. इसका कारण पाश्चात्य संस्कृति, विद्यालय या समाज ही नहीं, बल्कि संस्कारों के प्रति हमारी उदासीनता है. परिवार बालक की प्रथम पाठशाला है तो माता-पिता प्रथम शिक्षक. विद्यालय में हम देख रहे हैं कि जो माता-पिता अपने बच्चों में अच्छे संस्कार आरोपित करते हैं वे बाह्य वातावरण से प्रभावित हुए बिना शिक्षक द्वारा दी गई विद्या को फलीभूत करते हैं. अत: परिवार में प्रत्येक सदस्य का दायित्व है कि बच्चों में भौतिक संसाधनों के स्थान पर संस्कारों की सौगात दें.
संस्कारों और संस्कारों की सुन्दरता के महत्व की पहली कड़ी घर से शुरू होती है. घर से ही बच्चों के संस्कार की शुरूआत होती है. अभिभावकों को इसका विशेष ध्यान रखना चाहिए. जो बच्चों के अच्छे संस्कारों का बोध कराते हैं. सिर्फ संस्कार ही नहीं, बल्कि इसके बारे में जानकारी भी होनी चाहिए. हमारे संस्कार अच्छे हैं और हमें अच्छे या खराब की जानकारी नहीं है, तो इसका महत्व नहीं रहता. लिहाजा, संस्कारों का ज्ञान और उनकी सुन्दरता ही हमें उन्नति के लिए प्रेरित करती है. यदि संस्कारों की एक कड़ी शुरू हो जाती है तो फिर इसमें निरंतरता बनी रहती है और यही अच्छा समाज बनाने में सहायक होती है.
वहीं दूसरी ओर निरंतर प्रयास, एकाग्रता, अल्पनिद्रा, अल्पहार, घरेलू बातों में अनाकर्षण इन संस्कारों से युक्त इंसान हमेशा तनाव मुक्त रहता है. अगर बच्चों में बचपन से ही अच्छे संस्कार और नियम के सामाजिक आदर्शों पर चलने की शिक्षा दी जाए तो एक कुशल नागरिक का निर्माण अवश्य होता है.
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