वकालत के मामले में मधेपुरा ने कई दिगज अधिवक्ताओं को देखा है. उनमें से एक बेहतरीन 02 फरवरी 1945 को जन्मे हीरा बाबू के नाम से प्रसिद्ध हीरा प्रसाद सिंह हिमांशु ने सिविल (जमीन-जगह/ दीवानी) मामलों के वकालत में पाँच दशकों से अपना झंडा गाड़ रखा था. मधेपुरा प्रखंड के शकरपुरा निवासी हीरा बाबू ने 05 नवम्बर 1971 को उस समय वकालत शुरू की थी, जब मधेपुरा में सिविल कोर्ट नहीं था और यहाँ के महत्वपूर्ण मामलों की सुनवाई सहरसा में हुआ करती थी. वर्ष 1986 में मधेपुरा में जब सिविल कोर्ट की स्थापना हुई तो फिर उन्होंने यहीं से लोगों को न्याय दिलाना शुरू किया. पिछले 50 सालों में उनके द्वारा पीड़ितों को जीत दिलाने के मुकदमों की संख्या हजारों में है और इलाके के हजारों लोगों की जेहन में न्यायालय में उनके बहस करने के बेहतरीन तरीके घूम रहे होंगे. न्यायालय में जब वे कोट और गाउन पहनकर चलते थे तो उनके मुवक्किलों की भीड़ उनसे समय लेने के लिए उनके पीछे होती थी.
वर्ष 1967 में उनका विवाह सुभद्रा देवी के साथ हुआ और जीवनसंगिनी के रूप में सुभद्रा देवी ने भी पिछले 56 वर्षों से उनका पूरा साथ निभाया. हीरा बाबू को न सिर्फ वकालत पेशे में ही महारथ हासिल थी, बल्कि उनका पारिवारिक जीवन भी सफलताओं से भरा है. उनके दोनों बेटे मुंबई व नोइडा में अच्छे पद पर अपनी सेवा दे रहे हैं. बड़े बेटे चितरंजन हिमांशु (49 वर्ष) UPL (United phosphorous group of companies) Mumbai में जेनरल मैनेजर (ऑपरेशन) के पद पर हैं जबकि छोटे बेटे प्रीतिरंजन हिमांशु (उम्र 46 वर्ष) Lakshya group of companies Noida में सीनियर मैनेजर (बिजनेश डेवेलपमेंट) के पद पर हैं. पत्नी, बेटे-बहू, पोते-पोतियों से भरे-पूरे परिवार के लिए अब सिर्फ उनकी यादें ही सहारा हैं.
मधेपुरा में विद्यापुरी वार्ड नं. 18 स्थित उनके आवास पर सन्नाटा पसरा है और कई अलमारियों में सजी कानून की हजारों किताबें जो पुस्तकालय की तरह ही दीखती हैं, मानो कह रही हों, ‘तुम मुझे यूँ भुला न पाओगे....’
(Report: R.K. Singh)

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