मालूम हो कि डा. जवाहर पासवान दलित साहित्य एवं राजनीति के एक मजबूत स्तंभ हैं. वे जिला विधिक सेवा प्राधिकार के सदस्य और राजकीय अम्बेडकर कल्याण छात्रावास के अधीक्षक भी हैं. साथ ही महाविद्यालय एवं विश्वविद्यालय स्तर पर विभिन्न कमिटी के सदस्य सहित अन्य पदों को भी सुशोभित कर रहे हैं.
शोषण के विरुद्ध डॉ पासवान की सात पुस्तकें प्रकाशित
शोषण के विरुद्ध इनकी सात पुस्तकें भी प्रकाशित हो चुकी है. इसके अलावे भारत के दलित आंदोलन में बिहार की भूमिका, पिछड़ी जातियों का राजनीतिक अभिजन, भारतीय स्वशासन में पंचायती राज व्यवस्था, भारतीय राजनीति में नैतिक लोकतंत्र की तलाश, भूमंडलीकरण में भारतीय राजनीति का महत्व, डॉ लोहिया का समाज दर्शन : समकालीन राजनीतिक परिप्रेक्ष्य एवं अस्मिता संकट और दलित विमर्श नामक पुस्तक शामिल है. वहीं विभिन्न शोध पत्रिका में तकरीबन 60 आलेख, तकरीबन दो दर्जन सेमिनार, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं.
शोषित वर्ग के अधिकार के लिए किया आंदोलन
डा. पासवान ने शोषित वर्ग के अधिकार की समाप्ति के विरुद्ध केन्द्र सरकार एवं राज्य सरकार के नीति के विरोध में आम जन के साथ आन्दोलन में प्रमुख सहभागिता निभाई. वहीं एससीएसटी कानून बदलाव के विरुद्ध आन्दोलन का मधेपुरा में नेतृत्व किया. सीएए, एनआरसी के विरुद्ध मधेपुरा में नेतृत्व और ओबीसी आरक्षण में छेड़छाड़ के विरुद्ध आन्दोलन की सहभागिता में प्रमुख भागीदारी रही.
मैट्रिक पास करने पर मिला था जीवन का पहला पेंट-शर्ट
डा. जवाहर ने बताया कि उनका जन्म उनके गांव आदर्श ग्राम भागीपुर, आलमनगर, जिला मधेपुरा (बिहार) में हुआ. वहीं से मध्य विधालय की शिक्षा प्राप्त करते हुए नन्दकिशोर माधवानन्द उच्च विद्यालय, आलमनगर से मैट्रिक की परीक्षा पास की. तब तक इन्होंने महाविद्यालय को दूर से ही देखा था, कभी भी कैम्पस में जाने का मौका नहीं मिला था. इनके पिता छोटे किसान थे, हमेशा कहा करते थे जब तुम मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास करेगा, तब तुमको फूल पेंट शर्ट देंगे और टी.एन.बी. कॉलेज, भागलपुर में पढ़ाएँगे. वे दिन-रात कड़ी मेहनत कर मैट्रिक प्रथम श्रेणी से पास करने में सफल हो गये. इनके गाँव में पासवान समाज में पहले न तो कोई प्रथम श्रेणी से पास किया था और न ही कोई भागलपुर कॉलेज में पढ़े थे. इन्हें पेंट शर्ट तो रिजल्ट के दिन ही मिल गया, जो इनके जीवन काल का पहला पेंट शर्ट था.

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