मधेपुरा के कुमारखंड प्रखंड के गोपीपुर में आयोजित दो दिवसीय प्रखंड स्तरीय संतमत सत्संग का 5वां वार्षिक अधिवेशन के पहले दिन बुधवार को संतमत सत्संग का विधिवत रूप से शुरुआत भक्ति वंदना, ध्यान, योग से की गई.
मंगरवाड़ा और इसरायण कला पंचायत के सीमा पर स्थित मिड्ल स्कूल के समीप में आयोजित सत्संग में मौजूद हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संतमत के शाही स्वामी जी महाराज के विशेष कृपापात्र पूज्यपाद स्वामी योगानंद जी महाराज ने कहा कि धरा धाम पर संतों का अवतार जनकल्याण के लिए हुआ है.
बाबा योगानंद ने कहा कि संत का काम ही है जनकल्याण करना जो लोग संतो के बताए मार्ग पर चलते हैं, उनका ईश्वर उद्धार करते हैं. उन्होंने कहा कि संत, लोगों के पथ प्रदर्शक होते हैं. जिनका एक हाथ जिज्ञासु भक्त के पास रहता है तो वहीं दूसरा हाथ परमात्मा के पास रहता है. शांति को प्राप्त किए हुए महामानव को ही संत कहते हैं. संतों के मत को ही संतमत कहते हैं. झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार को त्यागने की सीख संतो के द्वारा दी जाती है. एक ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और उनकी प्राप्ति मनुष्य के अंदर में होने की सीख दी जाती है. इसके लिए दो साधन है दृष्टि योग और सुरत शब्द योग. यही साधन है. इन्हीं साधनों के द्वारा परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है. इसके अलावे और कोई रास्ता नहीं है.
वहीं अपने प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि मनुष्य को सरलता से भरा जीवन जीने का आदी होना चाहिए. जब जैसी परिस्थिति हो उसका अनुसरण करने से ही सही मार्ग मिल सकता है. उन्होंने कहा कि हमें कर्म योगी होने की आवश्यकता है. समस्त दुखों से निजात जहाँ पर जीवन में जाकर मिल जाते हैं वही पर जाकर के सही रूप में मोक्ष की प्राप्ति मिलती है. संत की वाणी का श्रवण सत्संग स्थल में आकर करने से और उसका अपने जीवन में अनुश्रवण करने से ही हर कष्टों से छुटकारा मिल सकता है.
उन्होंने कहा कि जाति धर्म से नहीं बल्कि अपने कर्म से ही मनुष्य की पहचान होती है. मनुष्य के जीवन में सदाचारिता, आत्मअनुशासन और जन कल्याण की भावना का होना अति आवश्यक है. मनुष्य अपने स्वावलंबन की जीवन से दूर रहकर समाज के उत्थान के लिए कोई कार्य कभी नहीं कर सकता है, इसलिए हर एक मनुष्य को स्वावलंबी होना चाहिए. मानव जीवन और समाज निर्माण कार्य में अपने जीवन को समर्पित करना ही सच्ची सेवा है.
सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए संतमत सत्संग के स्वामी शारदानंद जी महाराज ने कहा कि मानव जीवन के लिए अध्यात्म बहुत ही जरूरी है. संतों के बताए रास्ते पर चलने से जीवन के सही मूल्य को समझने का अवसर मिलता है. स्वामी दयानंद जी ने कहा कि मनुष्य को अपने कर्म पथ से अलग होकर कभी भी नहीं चलना चाहिए. विश्व शांति के लिए संतमत के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए स्वामी वासुदेव बाबा ने कहा कि संतमत सत्संग का उद्देश्य विश्व में शांति और सद्भाव के मार्ग को प्रशस्त करना है. सत्संग में अमृत बाबा आदि के अमृत वाणी से श्रद्धालु लाभान्वित हुए.
वहीं सत्संग स्थल पर सभी तरह की जरूरी व्यवस्था श्रद्धालुओं के लिए की गई है. आयोजन समिति ने सत्संग स्थल पर भव्य पंडाल के निर्माण के साथ ही रोशनी, शौचालय, भंडारा, पेयजल, ठहराव की व्यवस्था कर रखी है. आयोजन को सफल बनाने के लिए आयोजन समिति के अध्यक्ष दरोगी यादव, सचिव जनार्दन यादव, कोषाध्यक्ष जयकांत यादव, अरूण कुमार यादव, पैक्स अध्यक्ष ओमप्रकाश कुमार, संतोष कुमार, कृतनारायण यादव, अजय कुमार, राकेश कुमार और श्रवण कुमार सिंह, डॉ प्रभाष यादव आदि पूरे जोश और उत्साह के साथ लगे हुए हैं. मौके पर हजारों की संख्या में दूरदराज से सत्संग प्रेमी पहुंचे हुए थे.
(रिपोर्ट: मीना कुमारी)
मंगरवाड़ा और इसरायण कला पंचायत के सीमा पर स्थित मिड्ल स्कूल के समीप में आयोजित सत्संग में मौजूद हजारों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए संतमत के शाही स्वामी जी महाराज के विशेष कृपापात्र पूज्यपाद स्वामी योगानंद जी महाराज ने कहा कि धरा धाम पर संतों का अवतार जनकल्याण के लिए हुआ है.
बाबा योगानंद ने कहा कि संत का काम ही है जनकल्याण करना जो लोग संतो के बताए मार्ग पर चलते हैं, उनका ईश्वर उद्धार करते हैं. उन्होंने कहा कि संत, लोगों के पथ प्रदर्शक होते हैं. जिनका एक हाथ जिज्ञासु भक्त के पास रहता है तो वहीं दूसरा हाथ परमात्मा के पास रहता है. शांति को प्राप्त किए हुए महामानव को ही संत कहते हैं. संतों के मत को ही संतमत कहते हैं. झूठ, चोरी, नशा, हिंसा और व्यभिचार को त्यागने की सीख संतो के द्वारा दी जाती है. एक ईश्वर पर पूर्ण विश्वास और उनकी प्राप्ति मनुष्य के अंदर में होने की सीख दी जाती है. इसके लिए दो साधन है दृष्टि योग और सुरत शब्द योग. यही साधन है. इन्हीं साधनों के द्वारा परमात्मा को प्राप्त किया जा सकता है. इसके अलावे और कोई रास्ता नहीं है.
वहीं अपने प्रवचन के दौरान उन्होंने कहा कि मनुष्य को सरलता से भरा जीवन जीने का आदी होना चाहिए. जब जैसी परिस्थिति हो उसका अनुसरण करने से ही सही मार्ग मिल सकता है. उन्होंने कहा कि हमें कर्म योगी होने की आवश्यकता है. समस्त दुखों से निजात जहाँ पर जीवन में जाकर मिल जाते हैं वही पर जाकर के सही रूप में मोक्ष की प्राप्ति मिलती है. संत की वाणी का श्रवण सत्संग स्थल में आकर करने से और उसका अपने जीवन में अनुश्रवण करने से ही हर कष्टों से छुटकारा मिल सकता है.
उन्होंने कहा कि जाति धर्म से नहीं बल्कि अपने कर्म से ही मनुष्य की पहचान होती है. मनुष्य के जीवन में सदाचारिता, आत्मअनुशासन और जन कल्याण की भावना का होना अति आवश्यक है. मनुष्य अपने स्वावलंबन की जीवन से दूर रहकर समाज के उत्थान के लिए कोई कार्य कभी नहीं कर सकता है, इसलिए हर एक मनुष्य को स्वावलंबी होना चाहिए. मानव जीवन और समाज निर्माण कार्य में अपने जीवन को समर्पित करना ही सच्ची सेवा है.
सत्संग के दौरान प्रवचन करते हुए संतमत सत्संग के स्वामी शारदानंद जी महाराज ने कहा कि मानव जीवन के लिए अध्यात्म बहुत ही जरूरी है. संतों के बताए रास्ते पर चलने से जीवन के सही मूल्य को समझने का अवसर मिलता है. स्वामी दयानंद जी ने कहा कि मनुष्य को अपने कर्म पथ से अलग होकर कभी भी नहीं चलना चाहिए. विश्व शांति के लिए संतमत के सिद्धांत पर प्रकाश डालते हुए स्वामी वासुदेव बाबा ने कहा कि संतमत सत्संग का उद्देश्य विश्व में शांति और सद्भाव के मार्ग को प्रशस्त करना है. सत्संग में अमृत बाबा आदि के अमृत वाणी से श्रद्धालु लाभान्वित हुए.
वहीं सत्संग स्थल पर सभी तरह की जरूरी व्यवस्था श्रद्धालुओं के लिए की गई है. आयोजन समिति ने सत्संग स्थल पर भव्य पंडाल के निर्माण के साथ ही रोशनी, शौचालय, भंडारा, पेयजल, ठहराव की व्यवस्था कर रखी है. आयोजन को सफल बनाने के लिए आयोजन समिति के अध्यक्ष दरोगी यादव, सचिव जनार्दन यादव, कोषाध्यक्ष जयकांत यादव, अरूण कुमार यादव, पैक्स अध्यक्ष ओमप्रकाश कुमार, संतोष कुमार, कृतनारायण यादव, अजय कुमार, राकेश कुमार और श्रवण कुमार सिंह, डॉ प्रभाष यादव आदि पूरे जोश और उत्साह के साथ लगे हुए हैं. मौके पर हजारों की संख्या में दूरदराज से सत्संग प्रेमी पहुंचे हुए थे.
(रिपोर्ट: मीना कुमारी)
संतमत सत्संग का 5वां वार्षिक अधिवेशन आरम्भ
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 25, 2019
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