दिवाली और जुआ: बड़े तो बड़े, बच्चे भी नहीं रह पाते दूर

दीपावली के अवसर पर देखा जाता है कि गाँव से शहर के चौक चौराहे पर जुआ खेलते बच्चे-बड़े नजर आते हैं और प्रशासन कुछ नहीं कर पाती है। जुए को लोग एक वर्ष के पर्व लक्ष्मी पूजा से जोड़ देते हैं।


अलग-अलग है मान्यता: दीपावली पर जुए का मुख्य लक्ष्य वर्ष भर के भाग्य की परीक्षा करना है। इस प्रथा के साथ भगवान शंकर तथा पार्वती के जुआ खेलने के प्रसंग को भी जोड़ा जाता है, जिसमें भगवान शंकर पराजित हो गए थे। हालांकि यह एक समाज के लिए अच्छी बात नहीं है। किन्तु कुछ लोग भगवान शंकर और पार्वती जी द्वारा द्यूत क्रीड़ा का खेला जाना शास्त्र सम्मत मान लेते हैं। उनकी दृष्टि में यह शास्त्रानुसार है। अफसोस है कि लोग शास्त्रों में बताए गए अच्छे कर्मो के संबंधी निर्देशों का पालन नहीं करते और बुराई को तुरंत अपना लेते हैं। कथा तो है कि दिवाली के दिन भगवान शिव और पार्वती ने भी जुआ खेला था, तभी से ये प्रथा दिवाली के साथ जुड़ गई है। हालांकि शिव व पार्वती द्वारा दिवाली पर जुआ खेलने का ठोस तथ्य किसी ग्रंथ में नहीं मिलता।

जुआ एक ऐसा खेल है जिससे इंसान तो क्या भगवान को भी कई बार मुसीबतों का सामना करना पड़ा है। जुआ, सामाजिक बुराई होकर भी भारतीय मानस में गहरी पैठ बनाए हुए है। जिस का जीता जगता साबुत आज चौसा प्रखंड के कई चौक चौराहा पर देखने को मिला है। बड़े तो बड़े बच्चे भी इससे दूर नहीं है।
दिवाली और जुआ: बड़े तो बड़े, बच्चे भी नहीं रह पाते दूर दिवाली और जुआ: बड़े तो बड़े, बच्चे भी नहीं रह पाते दूर Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 08, 2018 Rating: 5

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