बिहार में शिक्षा की बदहाली के पीछे कई कारण हो सकते हैं, पर दुर्गति के लिए सरकारी व्यवस्था भी कम जिम्मेवार नहीं.इसका जीता जागता सबूत मधेपुरा जिले के सुदूर प्रखंड चौसा अंतर्गत दर्जनों ऐसे स्कूल हैं जिसमें शिक्षकों की भारी कमी देखने को मिलती है । सरकार द्वारा सिर्फ स्कूलों की उन्नति कर दी गई है, शिक्षा की उन्नति अब भी नहीं हो पा रही है. प्राथमिक विद्यालय को उत्क्रमित मध्य विद्यालय बना दिया गया लेकिन शिक्षक वहीं के वहीं है। उनकी तादाद भी वहीँ के वही हैं।
मधेपुरा टाइम्स की टीम चौसा प्रखंड अंतर्गत उत्क्रमित उर्दू मध्य विद्यालय ठाकुरगंज चंदा गई तो वहां की व्यवस्था देख आश्चर्य हुआ कि प्रभारी प्रधानाध्यापक समेत कुल तीन शिक्षकों के सहारे वर्ग एक से आठ तक की पढ़ाई हो रही है।देखा गया कि एक ही क्लास में छह सात और आठ वर्ग तक के बच्चों का पठन-पाठन हो रहा है. ऐसे में बच्चे की पढ़ाई का क्या होगा । प्रभारी प्रधानाध्यापक शहबाज अहमद फिरदौसी से बात की गई तो उन्होंने कहा मेरे स्कूल में कुल पांच शिक्षक हैं जिनमें दो शिक्षक दो वर्ष के लिए ट्रेनिंग कर रहे हैं और मुझे प्रभारी प्रधानाध्यापक होने की वजह से अक्सर ऑफिशियल कार्य से बीआरसी बैंक का चक्कर लगाना पड़ता है। बचा हुआ समय में रजिस्टर का अवलोकन और बच्चों के पठन पाठन में देते हैं। वर्ग 1 से 8 तक के बच्चों की जिम्मेदारी तीन शिक्षकों पर है। जबकि प्रत्येक क्लास के अलग अलग शिक्षक होने चाहिए. शिक्षक की कमी की वजह से मजबूरन एक ही क्लास में दो तीन वर्गों के बच्चों का पठन पाठन किया जाता है।
बताते चलें कि ऐसा स्कूल सिर्फ ठाकुरगंज चंदा में ही नहीं बल्के दर्जनों ऐसे स्कूल हैं, जहाँ इस तरह बच्चों का भविष्य का निर्माण किया जा रहा है जो बच्चे देश का भविष्य हैं ।
कैसे हो पढ़ाई, क्या कर रही है सरकार? :आठ कक्षाओं के लिए महज तीन शिक्षक
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
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July 23, 2018
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