
उन्होंने कहा था कि गाड़ी विश्वविद्यालय की विभिन्न प्रक्रियाओं को
पूरा करके खरीदी गयी है, जिसमें प्रति कुलपति के रूप में उनकी कोई भूमिका नहीं है। उन्होंने दावा किया
था कि गाड़ी फर्स्ट हेंड है और इसका एक ही बार निबंधन हुआ है। परिवहन पदाधिकारी
(डीटीओ) की महत्वपूर्ण रिपोर्ट में भी टीएमबीयू के तत्कालीन प्रति कुलपति के इस
दावे की पुष्टि हुई है।
डीटीओ के पत्रांक 8, दिनांक 4 जनवरी 2018 में स्पष्ट कहा गया है कि स्कार्पियो फर्स्ट हेंड ही है।
इस पत्र में बताया गया है कि वाहन संख्या 10 पीए-8591 का निबंधन 4 अगस्त 2016 को हुआ था और उसके मालिक के रूप में कुलसचिव,
टीएमबीयू, भागलपुर हैं। गाङी के चेसिस नंबर एवं इंजन नंबर के मुताबिक
यह निबंधन का पहले एवं एकमात्र मामला है। इससे पहले या बाद कोई रजिस्ट्रेशन नहीं
हुआ है। डीटीओ ने यह भी स्पष्ट किया है कि विभाग में निबंधन का काम 2.0 साफ्टवेयर के माध्यम से होता है और इसमें एक चेसिस नंबर के
एक ही वाहन का निबंधन होता है। इस साफ्टवेयर में एक ही चेसिस नंबर के दो वाहनों का
निबंधन संभव नहीं है।
मालूम हो कि विश्वविद्यालय की विभिन्न प्रक्रियाओं के बाद विश्वविद्यालय
इंजिनीयर अरूण कुमार और कुलपति के ड्राइवर नकुल कुमार ने विश्वविद्यालय के लिए
अप्रैल 2016 में वत्स आॅटोमोबाइल से एक स्कार्पियो गाड़ी खरीदी और गाङी
में एसेसरिज भी लगाई। साथ ही इस आशय का प्रमाण-पत्र दिया कि गाङी बिल्कुल सही हालत
में है। विश्वविद्यालय आने के बाद यह गाङी करीब 40 दिनों तक कुलपति के यहाँ रही। फिर कुलपति के आदेश से गाड़ी
प्रति कुलपति को आवंटित की गयी।
बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम के अंतर्गत प्रति कुलपति को विश्वविद्यालय की ओर
से एक गाङी, ड्राइवर
एवं उसे चलाने हेतु इंधन देने का प्रावधान है। तद्नुसार जब डाॅ. अवध किशोर राय ने 3 फरवरी 2014 को तिलकामान्झी भागलपुर विश्वविद्यालय,
भागलपुर के प्रति कुलपति के रूप में योगदान दिया,
तो उन्हें भी ये सुविधाएं मिलीं। गाड़ी पुरानी थी और अक्सर
खराब होती थी।
जनवरी 2016
में प्रति कुलपति के आप्त सचिव ने उन्हें बताया कि गाङी अत्यधिक खराब है। तदुपरांत
प्रति कुलपति ने कुलपति को इसकी जानकारी
दी। कुलपति ने नयी गाङी खरीदने की प्रक्रिया जानी और इसके लिए प्रस्ताव बढ़ाने का
मौखिक आदेश दिया।
तदुपरांत प्रति कुलपति के आप्त सचिव ने 14 जनवरी 2016 को एक नई गाङी खरीदी जा सकती है। इस आशय का एक प्रस्ताव
बढ़ाया। इस प्रस्ताव को प्रति कुलपति ने वित्त पदाधिकारी को अग्रसारित किया। वित्त
पदाधिकारी ने क्रय-विक्रय समिति के सचिव के रूप में स्टोर को लिखा कि गाङी खरीदने
का प्रस्ताव क्रय-विक्रय समिति में रखा जाए। तदनुसार समिति में एक प्रस्ताव रखा
गया कि विश्वविद्यालय के लिए एक स्कार्पियो या जाइलो गाङी खरीदी जाए।
19 जनवरी 2016 को आयोजित क्रय-विक्रय समिति की बैठक में यह प्रस्ताव
स्वीकृत किया गया। पुनः इस प्रस्ताव को 11 फरवरी 2016 को सिंडीकेट की बैठक में भी अनुमोदित किया गया।
मालूम हो कि बिहार विश्वविद्यालय अधिनियम में प्रति कुलपति को कोई वित्तीय
अधिकार नहीं है। प्रति कुलपति क्रय-विक्रय समिति एवं वित्त समिति के सदस्य भी नहीं
होते हैं। प्रति कुलपति के जिम्मे स्नातक
स्तर तक की परीक्षाओं के संचालन की जिम्मेदारी है। साथ ही उन्हें कुलपति से
प्राप्त आदेशों का पालन करना होता है।
इसके
बावजूद तत्कालीन प्रति कुलपति डाॅ. अवध किशोर राय को एक साजिश के तहत फंसाने का
प्रयास किया गया। आरोप लगाने वालों ने उनके पक्ष को नहीं देखा और न तो बिहार
विश्वविद्यालय अधिनियम की संबंधित धाराओं को ही देखने की जरूरत समझी। ऐसे में डाॅ.
राय और उनके समर्थकों को गहरा आघात लगा। लोगों ने
महामहिम कुलाधिपति से इस मामले में हस्तक्षेप करने की गुहार लगाई।
मधेपुरा में सभी वर्ग के लोग मुखर होकर डाॅ. राय के पक्ष में सामने आ रहे हैं।
2
जनवरी को प्रतिष्ठित टी. पी. काॅलेज,
मधेपुरा में बीएनएमयू के कुलपति डाॅ. राय का भव्य सम्मान
समारोह आयोजित किया गया। इसमें उपस्थित सैकड़ों शिक्षकों,
कर्मचारियों, विद्यार्थियों एवं अभिभावकों ने गाङी खरीद मामले में डाॅ.
राय को फंसाने का कड़ा विरोध किया। सबों ने मिलकर डाॅ. राय के पक्ष में आवाज बुलंद
की। कई अन्य संस्था एवं संगठन ने भी डाॅ. राय के समर्थन में आगे आए।
डीटीओ की रिपोर्ट से कुलपति कॊ मिली क्लीन चिट
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 08, 2018
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