पीएचडी करना एक उपलब्धि तो है लेकिन इतनी बड़ी भी नहीं कि अलग से रेखांकित किया
जाय । लेकिन हम एक ऐसे शख्स की बात करने जा रहे हैं जिनका पीएचडी करना एक बहुत बड़ी
उपलब्धि है । उनके समाज और परिवार को उन पर गर्व है ।
हम बात कर रहे हैं मुकेश विश्वकर्मा की जो बैजनाथपुर, सहरसा के रहने वाले हैं
। अत्यंत पिछड़ी जाति से आने वाले मुकेश के पिता नागेश्वर विश्वकर्मा की लकड़ी की एक छोटी
सी दुकान हैं । छह बहनों की शादी में परिवार की सारी जमा पूंजी खत्म हो गयी इसलिए
आगे पढ़ने के लिए मुकेश को अवर्णनीय संघर्ष का सामना करना पड़ा । पैसों की तंगी सब
दिन बनी रही । लेकिन मुकेश के अंदर आगे बढ़ने का जुनून सब दिन से था इसलिए वे कहीं रुके
नहीं । मनोहर हाई स्कूल, सहरसा से मैट्रिक करने के बाद इंटर
टीएनबी भागलपुर से किया और फिर भाग कर दिल्ली आ गए । यहाँ डीयू से बी.ए. किया और इग्नू
से एम.ए. ।
उनके जीवन में निर्णायक मोड़ तब आया जब कई प्रयासों के बाद उनका जेएनयू में चयन
हो गया । उन्होंने वहाँ से एम.फिल. किया और हाल ही में पीएचडी भी जमा किया ।
जेएनयू के अंतरराष्ट्रीय अध्ययन संस्थान के अंतर्गत उन्होंने अफगानिस्तान के
ऊपर अपना रिसर्च वर्क किया है । उनके सुपरवाजर अम्बरीश ढाका रहे हैं । इस काम के
लिए उन्हें आईसीएसएसआर की डॉक्टरल फैलोशिप भी मिली । इस दौरान उन्होंने जम्मू और
कश्मीर, गोआ सहित कई जगह अपना शोध पत्र पढ़ा । उनके शोध पत्र
कई अंतरराष्ट्रीय शोध पत्रिकाओं में प्रकाशित भी हुए हैं । मुकेश की स्कूलिंग हिंदी मीडियम में हुई है लेकिन उनको सारा रिसर्च वर्क
अंग्रेजी में किया यह भी अपने आप में तारीफ योग्य है । उनके इलाके में इस तरह की
यह पहली पीएचडी है । गाँव के लोग उनकी इस उपलब्धि पर खुश हैं । जेएनयू को जिस
उद्देश्य के लिए बनाया गया था एक तरह से आज उसका उद्देश्य भी सफल हुआ ।
मुकेश राजनीति में भी रुचि रखते हैं । जेएनयू में उन्होंने एबीवीपी की तरफ से काउंसलर
का चुनाव भी लड़ा और हार गए । बाद में वे झेलम हॉस्टल के प्रेजिडेंट चुने गए ।
मुकेश प्रशासनिक सेवा की तैयारी में लगे हैं और इसी के माध्यम से समाज की सेवा
करना चाहते हैं ।
(Report: Shrimant Jainendra)
गर्व करें कोसी के इस लाल पर: कठिन परिस्थिति को मात देकर जेएनयू से की पीएचडी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 10, 2018
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