मधेपुरा जिला मुख्यालय स्थित
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इतना हीं
नहीं लाखों की लागत से कारखाने में लगे सयंत्र को भी जंग खा रहा है. 08 वर्षों के बाद
भी सरकारी उपेक्षा का शिकार स्लीपर कारखाना आज तक चालू नहीं हो पा रहा है.
जानकारी
के अनुसार जहाँ सोन सैंड (बालू) देवघर के बालू खदान में से चलने के समय 1900 सीएफटी
दिया जाता है पर मधेपुरा जिले में सोन सैंड बालू पंहुचता है 8500 सेफ्टी. इस तरह काफी
मंहगा बालू होने के कारण ठीकेदार स्लीपर कारखाना के टेंडर प्रक्रिया में नहीं भाग
ले पा रहे हैं. जिस कारण आज तक करोड़ों की लागत से तैयार स्लीपर कारखाना धूल फांक रहा
है. ऐसे में टेंडर प्रक्रिया में किसी का भाग न लेने से सिस्टम और विभाग पर एक बड़ा
सवाल उठता है?
ऐसे में सवालों के कटघरे में खड़े हैं रेलवे के वरीय अधिकारी और
विभागीय मंत्रालय.
वहीँ हाल
में जिलाधिकारी मो. सोहैल ने कारखाना का निरीक्षण कर मधेपुरा राज्य सभा सदस्य
सांसद शरद यादव सहित रेलवे के वरीय अधिकारी से वार्ता कर कारखाना चालू कराने के
दिशा में पहल जरुर किये लेकिन आज तक पहल सफल नहीं हो सका है.
अहम् बात
यह भी है कि स्थानीय बे-रोजगार युवाओं को अब भी उम्मीद है कि कारखाना चालू होगा तो
रोजी-रोजगार के तलाश में बाहर भटकना नहीं पड़ेगा और यहीं रोजगार मुहैया होगा. हालाँकि
दुःख की बात तो ये भी है कि वर्षों से भरत पासवान नामक एक प्राइवेट गार्ड के सहारे
है स्लीपर कारखाना जो महज दो हजार रूपये की पगार लेकर कारखाना की पहरेदारी करते
हैं. खुद गार्ड को भी इस बात की चिंता सता रही है कि कीमती मशीनों को जंग खा रहा
है.
इस बाबत
समस्तीपुर डीआरएम आर.के. जैन ने बताया कि ये हेड कंट्रोल डिपार्टमेंट की
जिम्मेदारी है. वही बता पाएंगे कब तक चालू होगा. लेकिन मधेपुरा रेल स्लीपर कारखाना
के बारे में मुझे तो इतनी जानकारी जरुर है कि पिछले दिनों निविदा निकाली गयी, लेकिन
किसी ठीकेदार ने भाग नहीं लिया.
मधेपुरा स्लीपर कारखाना: कीमती मशीनों को वर्षों से खा रहा है जंग, सवालों के घेरे में रेलवे
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 25, 2017
Rating:
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