पटना
: 350वें प्रकाशोत्सव के मौके पर कला,
संस्कृति एवं युवा विभाग द्वारा वृहद पैमाने पर आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रम के दौरान सोमवार को रविंद्र
भवन में हुआ कार्यक्रम मनमोहक रहा.
विभाग के मंत्री श्री शिवचंद्र राम प्रथम दर्शक के रूप में शामिल
हुए। कार्यक्रम में विभाग के प्रधान सचिव चैतन्य प्रसाद, अपर सचिव आनंद
कुमार,
संस्कृति निदेशक सत्यप्रकाश मिश्रा, अतुल वर्मा, संजय कुमार,
अरविंद महाजन, मोमिता घोष, राजकुमार झा और मीडिया प्रभारी रंजन सिन्हा भी
उपस्थित रहे।
इस
दौरान अपने संबोधन में कला, संस्कृति एवं युवा विभाग के मंत्री श्री शिवचंद्र राम ने कहा कि गुरू गोविंद सिंह की शिक्षा आज भी हमारे लिए प्रासंगिक है। उन्होंने कहा कि गुरू गोविंद सिंह जी ने देश और दुनिया को भेदभाव, ऊंच -नीच, जात - पात जैसी समस्यओं को नकार समाज में सद्भावना लाने
की कोशिश की। बिहार की धरती आज गुरू गोविंद सिंह जी जन्मदिवस पर 350वें
प्रकाशोत्सव को राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय स्तर का छह दिवसीय महोत्सव आयोजित कर गौरवान्वित महसूस कर रहा है।
कला
संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार और अनाद फाउंडेशन की ओर से 350वें प्रकाशोत्सव पर आयोजित शास्त्रीय संगीत के कार्यक्रम में प्रख्यात कलाकारों ने सोमवार को अपनी प्रस्तुति से पटना वासियों का दिल जीत लिया।
देस राज लखानी के दाढ़ी से कार्यक्रम का आगाज हुआ। इस दौरान परमिंदर सिंह
भरमा (अमृतसरी बाई) और पंडित अनिल चौधरी ने पखावज का सोलो गायन किया, जिसका साथ सारंगी पर घनश्याम सिसोदिया ने दिया। सितार पर मनु सीन और तबले पर पंडित मदन मोहन उपाध्याय ने तबले पर जबरदस्त तान छेड़ी। वहीं, जसवंत सिंह
जफर ने काव्य पाठ कर खूब तालियां बटोरी।
वहीं,
रविंद्र भवन के सभागार में 1 से 5 जनवरी तक आयोजित सांस्कृतिक उत्सव में
बिरहा गायन के साथ कार्यक्रम का आगाज हुआ, जिसे इलाहाबाद के सरोज सरगम ने प्रस्तुत किया। गुजरात के द्वारका से दया भाई नाकुम के साथ आए बच्चों के दल ने बेडा रास रचा कर मंत्रमुग्ध कर दिया। द्वारिका का यह परंपरागत
नृत्य खेतों से काम कर लौटने के बाद महिलाएं घर के कामों से मुक्त होकर
करती हैं। इसमें 12 महिलाओं का दल होता है, जो काठ से बने मंदिर को सर पर रखकर नृत्य करती है। उत्तर प्रदेश के महोबा से आए लखन लाल यादव ने दीवारी/पाईडंडा और सुरांगन पटना के जितेंद्र कुमार ने बिहार के स्थानीय
नृत्य की जोरदार प्रस्तुति दी।
मणिपुरी
मार्शल आर्ट थांगटा ने दर्शक दीर्घा में मौजूद सभी दर्शकों को दांतों तले उंगली दबवा दी, जिसे मणिपुर के एम इबोमचा सिंह ने प्रस्तुत किया। तो भारत
के दक्षिण राज्य केरल से जन्मी एक युद्ध कला कलरियापयट्टू की प्रस्तुति करेल के शहादुद्दीन (शिवा) ने दी। नर्तक और नर्तकियों के साथ होने वाले यह युद्ध कला केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक आदि में काफी प्रचलित है।
इसके
अलावा,
प्रेमचंद्र रंगशाला में सोमवार को आयोजित रंग-ए-बिहार कार्यक्रम सत नाम वाहे गुरू की ध्वनि से गूंज उठा। इस कार्यक्रम के अंतर्गत पहली प्रस्तुति मशहूर लोकगायक अजीत कुमार अकेला ने गुरू बाणी के जरिए दी। इसके
बाद मैथिली लोक गायिका रंजना झा और प्रिया राज के साथ लोक गायक राजू मिश्रा
और अमर आनंद ने भी अपने गीतों पर खूब वाहवाही बटोरी। उधर, भारतीय नृत्य कला मंदिर में सांस्कृतिक कार्यक्रमों की श्रृखंला में सोमवार को भी पूर्व
सांस्कृतिक क्षेत्र कोलकाता ने भारत- भारती का आयोजन किया। इस दौरान
ओडिशा से आए कलाकारों ने पारंपरिक आदिवासी नृत्य घुबकुडू से लोगों का ध्यान अपनी ओर खीचा। तो तमिलनाडू से आए कलाकारों ने थेरकुथू और बिहार के कलाकारों ने दीन भद्री की प्रस्तुति दी।
(कला संस्कृति एवं युवा विभाग, बिहार द्वारा मधेपुरा टाइम्स को प्रेषित रिपोर्ट)
‘350वें प्रकाशोत्सव के मौके पर गौरवान्वित महसूस कर रहा बिहार’
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 02, 2017
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