घैलाढ मघेपुरा :- वैदिक शिवलिग के खोजकर्ता सह सीओ धैलाढ सतीश कुमार ने धैलाढ प्रखंड स्थित श्रीनगर गांव में 3000 वर्षं पुराना धरोहर पर शोध कर उनके महात्म्य को बताया ।
मधेपुरा जिला मुख्यालय से करीब 25 किमी उत्तर पश्चिम दिशा में अवस्थित श्रीनगर में स्थापित कला का जीता जागता दस्तावेज़ जहाँ काले बैशाल्ट पत्थर की देवी देवताओं का प्रतिमा, निखूत नक्कासी और शिलापट आज भी दर्शनीय है । ऐतिहासिक और धार्मिक
महत्व के अनुसार मधेपुरा में बिहार का प्रसिद्ध देवाधिदेव महादेव का शिव मंदिर सिंहेश्वर स्थान प्रसिद्ध हैं।लेकिन मंदिर एवं उनके इर्द गिर्द का कोई पुख्ता प्राचीनता का पुरातात्विक साक्ष्य नहीं हैं ।
परन्तु 3000 साल पुराना धरोहर धैलाढ के श्रीनगर में हैं । श्रृंगी ऋषि का वर्णन धार्मिक ग्रन्थ
में भी हैं। किदवंती एवं पौराणिक कथा के अनुसार विभांडक ऋषि के आयुर्वेदाचार महर्षि श्रृंगीऋषि का आश्रम था । जिसमे हजारों छात्र विद्या
अध्ययन किया करते थे ।
महाभारत के वन पर्व के 110 वे,111 वे तथा 113 वे अध्यायो में कौशिकी प्रसंग वर्णन किया गया हैं । वारह पुराण में वणिंत श्रृगेश्वर को ही सिंहेश्वर/
श्रीनगेश्वर माना गया। वारह पुराण के अध्याय 206 के अनुसार एक बार आदिदेव महादेव छद्मबेष धारण कर यहीं छिप गया था। तब असुरो ने उनके अनुपस्थिति में काफी हलचल मचाया । ब्रम्हा, विष्णु, और इन्द्र ने काफी खोजबीन कर हिरण के रुप में महादेव को पहचान लिया । उनसे वापस चलने के लिए काफी विनती की । लेकिन वे जाने मे असमर्थता व्यक्त किया। इस पर तीनो देवताओ ने बल पूर्वक हिरण को सिंह पकड कर ले जाना चाहा।लिहाजा उनका सिंह तीन भागो में विभक्त हो गया। सिंगवाला भाग जहाँ गिरा वही श्रृगेश्वर अथांत सिंहेश्वर कहलाया।
लेकिन
श्रृगीनगर का उपभ्रंश श्रीनगर माना जाता हैं । वर्तमान में यह स्थल 12 फीट उंचा टिला हैं , इसके इर्द गिर्द उत्तर गुप्त कालीन हर्ष वर्धन समकालीन बंगाल बिहार के शासक मोर्यकालीन बैशाल्ट चट्टान का बना ध्वंश मंदिर का चौखट, चबूतरा जमीनदोज हैं । बैशाल्ट पत्थर से ही निर्मित
धडियाल कै दो जबडा का एक मुख हैं ।
जिसके बीचो बीच एक इंच व्यास का नाली लगा है।इसके द्वारा गर्भ गृह में चढाए जल का निकासी होता है ।मंदिर का मुख्य स्तम्भ 64×20×11 इंच का हैं।उपरी चौखट 84 इंच और चौखट का ऊचाई 57 इंच है ।मंदिर में 8 वी सदी का उमा महेश्वर की प्रतिमा लगी हैं । यह पाल कालीन विक्रमशीला विश्व विद्यालय के समकालीन कला का अद्वितीय नमूना हैं । जटाजटधारी शिव के बाये जांघ पर पार्वती ललिता सन मुद्रा में कमलासन पर बैठी है । शिव के पैर नंदी पर और उमा के पैर सिंह पर विराजमान हैं।उमा के बाये हाथ दर्पण और शिव के बाये हाथ में त्रिशूल धारण किए हैं । प्रतिमा के ऊपर दो सेविका का नक्कासी है, निसंदेह यह प्रतिमा कोशी प्रमंडल की एक अलग पहचान हैं। चौखट पर प्रोटो देवनागरी लिपि में एक अभिलेख खुदा है। यह लिपि 1200 वर्षं पुरानी है।परिसर में बिखरे ईट (200 ई) से लेकर पाल काल तक की है । आसपास काला मृदभाण्ड मिलने से प्राचीनता बैद्धिक कालीन हो जाती हैं।
इतिहासकार सतीश कुमार का मानना है, कि हर्षवर्धन समकालीन गोरवंश के राजा शशांग गोर ने मंदिर बनवाया था । विद्या ललित कला अकादमी के सदस्य श्री ज्योतिष चन्द्र शर्मा विद्यावाचस्पति ने बताया कि शशांक गोर ने अपने शासन काल के दौरान अंगप्रदेश में 108 शिव मंदिर बनबाया था । काला मृडभान मिलने से यह वैदिक कालीन सभ्यता का विस्तार मधेपुरा तक मिलने का अनुमान है ।खोज जारी है इसके परिसर में कई एकड के फैले एक बहुत बडा तालाब भी है । जिसे लोग आज भी शिवगंगा कहते हैं । वही एक और तालाब का भी अवशेष है । जिसे लोग हरसिल के नाम से पुकारते हैं । दूसरा तालाब जिसका अस्तित्व आज भी कायम है । इस गुप्त कालीन बैशाल्ट पत्थर का बने मंदिर के भग्नावशेष को आज भी शोधार्थी और पर्यटन स्थल के रुप में विकसित किया जा सकता है ।
मौके प्रमुख सुमन देवी, जीप प्रतिनिधि बीके आर्यन, पूर्व प्रमुख सिया शरण यादव, महेन्द्र यादव, दिनेश फौजी, पूर्व मुखिया बैधनाथ यादव, अरुण कुमार, उपेन्द्र यादव ने काफी सराहना की हैं।साथ ही सूबे मुखिया नितिश कमार से उक्त स्थल का खुदाई कर पर्यटन स्थल के रुप विकसित करने की मांग की ।
(रिपोर्ट: लालेंद्र कुमार)
(रिपोर्ट: लालेंद्र कुमार)
मधेपुरा में 3000 वर्ष पुरानी ऐतिहासिक धरोहर, शिव की एक और नगरी के संकेत
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 22, 2016
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