ये ढकोसलों का समाज है. ये संवेदनहीनता का समाज है. ये समाज उन व्यक्तियों से मिलकर बना है जिनका शरीर तो जिन्दा है, पर आत्मा मर चुकी है. ये समाज उन सफेदपोशों का है जो सामने तो सिद्धांत की बातें सच का नाटक करते हुए जोर-जोर से करते हैं, पर उनके अन्दर का काला निकल कर नालियों में बहता दिख जाता है.
मधेपुरा जिले के मुरलीगंज नगर पंचायत में मालपानी रोड में एक नाले में फेंकी गई एक चार-पांच महीने की नवजात बेटी भी इसी सभ्य कहे जाने वाले समाज का हिस्सा थी. सड़कर बह रही लाश में दुनियां की सबसे पवित्र मानी जाने वाली किसी ‘माँ’ और जिम्मेदारी का लबादा ओढ़े किसी बाप का हिस्सा था. पर नाले में इस मासूम को फेंकते समय न तो ‘माँ’ का कलेजा मुंह को आया और न ही बाप का कलेजा पसीजा. बेटी ही तो थी, जो माँ बनती है और जिनकी वजह से हमारा-आपका अस्तित्व है.
नाले में मरी पड़ी मासूम को देखकर लोग जमा होते रहे और तरह-तरह की बातें करते रहे. किसी ने एक बेटी को ‘नाजायज’ कहा तो किसी ने कहा कि ‘कुल के दीपक’ यानि बेटे की आश में माँ-बाप ने इसे मौत देकर अपनी जिन्दगी संवारनी चाही होगी. हो सकता है, जमा भीड़ में वो शख्स भी चुपचाप लोगों की प्रतिक्रियाएं सुन रहा हो, जिसे उस बच्ची की आत्मा ‘पापा-पापा’ कहकर पुकारती होगी. मधेपुरा टाइम्स के ‘सेव डॉटर, सेव फ्यूचर’ अभियान की ब्रांड अम्बेसडर ऋचा सिंह कहती है, ‘ऐसी तस्वीरें हताश करने वाली है. 21वीं सदी में हम मंगल पर रिसर्च कर रहे हैं, पर ऐसे लोग हमें कई शताब्दी पीछे धकेल दे रहे हैं. इस मासूम को नाले के हवाले करने वाले माँ-बाप को भी किसी ऐसी ही बेटी ने माँ बनकर जन्म दिया होगा. सदमे में हूँ. कब जगेगा हमारा समाज?’
बेटियां जननी है, सृष्टि है और ‘माँ’ का रूप. पर ‘माओं’ की ह्त्या इसी तरह होती रहेगी क्योंकि हमारी संवेदना मर चुकी है. खैर, चलिए सबूत बाकी नहीं बचा है, इस सभ्य समाज में कुत्तों के जबरे में जाकर बेटी का अंतिम संस्कार भी हो चुका है.
मधेपुरा जिले के मुरलीगंज नगर पंचायत में मालपानी रोड में एक नाले में फेंकी गई एक चार-पांच महीने की नवजात बेटी भी इसी सभ्य कहे जाने वाले समाज का हिस्सा थी. सड़कर बह रही लाश में दुनियां की सबसे पवित्र मानी जाने वाली किसी ‘माँ’ और जिम्मेदारी का लबादा ओढ़े किसी बाप का हिस्सा था. पर नाले में इस मासूम को फेंकते समय न तो ‘माँ’ का कलेजा मुंह को आया और न ही बाप का कलेजा पसीजा. बेटी ही तो थी, जो माँ बनती है और जिनकी वजह से हमारा-आपका अस्तित्व है.
नाले में मरी पड़ी मासूम को देखकर लोग जमा होते रहे और तरह-तरह की बातें करते रहे. किसी ने एक बेटी को ‘नाजायज’ कहा तो किसी ने कहा कि ‘कुल के दीपक’ यानि बेटे की आश में माँ-बाप ने इसे मौत देकर अपनी जिन्दगी संवारनी चाही होगी. हो सकता है, जमा भीड़ में वो शख्स भी चुपचाप लोगों की प्रतिक्रियाएं सुन रहा हो, जिसे उस बच्ची की आत्मा ‘पापा-पापा’ कहकर पुकारती होगी. मधेपुरा टाइम्स के ‘सेव डॉटर, सेव फ्यूचर’ अभियान की ब्रांड अम्बेसडर ऋचा सिंह कहती है, ‘ऐसी तस्वीरें हताश करने वाली है. 21वीं सदी में हम मंगल पर रिसर्च कर रहे हैं, पर ऐसे लोग हमें कई शताब्दी पीछे धकेल दे रहे हैं. इस मासूम को नाले के हवाले करने वाले माँ-बाप को भी किसी ऐसी ही बेटी ने माँ बनकर जन्म दिया होगा. सदमे में हूँ. कब जगेगा हमारा समाज?’
बेटियां जननी है, सृष्टि है और ‘माँ’ का रूप. पर ‘माओं’ की ह्त्या इसी तरह होती रहेगी क्योंकि हमारी संवेदना मर चुकी है. खैर, चलिए सबूत बाकी नहीं बचा है, इस सभ्य समाज में कुत्तों के जबरे में जाकर बेटी का अंतिम संस्कार भी हो चुका है.
रिपोर्ट: उदय चौधरी
मुरलीगंज
(सूचना: सिटिजन जर्नलिज्म के तहत आप भी अपने समाज और अगल-बगल हो रही झकझोर देने वाली घटनाओं की जानकारी हमें घटना से सम्बंधित स्पष्ट तस्वीरों के साथ भेज सकते हैं. कुछ आप लिखें, कुछ हम लिखेंगे. रिपोर्ट हमें हमारे ई-मेल:madhepuratimes@gmail.com पर या व्हाट्स-अप नं. 08521018888 पर भेज सकते हैं.)
अब भी फेंकी जा रही है नालों में बेटियां, मुरलीगंज में सड़कर बह रही एक बेटी का शव
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
September 11, 2016
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