

सरकार के द्वारा बराबर लाखों लाख के विज्ञापन अखबार में छाप कर प्रचार-प्रसार किया जाता है कि एम्बुलेंस के लिए 108 और 202 के अलावे और कितने नम्बर जारी किये जाते हैं कि फोन करें, आप के पास एम्बुलेंस पहुँच जाएगा. लेकिन जब गरीब बीमार पड़ते हैं तब ये तमाम सरकारी सयंत्र और दावे सरजमीन पर नजर नहीं आते हैं. और फिर तब इन पीड़ितों का एम्बुलेंस वही होता है जो आजादी के पूर्व हमारे देश में एम्बूलेंस के नाम से जाना जाता था- खाट और ठेला.
मधेपुरा के दूर दराज की बात छोड़ दें जिला मुख्यालय में बराबर गरीब तबके के मरीजों को ठेला पर लादकर सदर अस्पताल तथा निजी क्लिनिक ले जाते हुए देखा जाता है. अगर कोई रसूखदार व्यक्ति या फिर नेता जी के परिजन बीमार पड़ जाते है तो उच्चाधिकारी के पास फोन की घंटी घंन-घनाते ही एम्बुलेंस हाजिर हो जाता है. रसूखदार और नेता जी को जिस तरह एम्बुलेंस समय पर मिल जाता है अगर उसी तरह गरीब को भी मिल जाय तो इनकी भी जान बच जाएगी और नेता जी का वोट बैंक भी नही घटेगा. गरीबों के इस हालात को देखकर तरस आता है कि आखिर कब तक ये सिलसिला जारी रहेगा.
(नि.सं.)
‘खाट और ठेला है आज भी गरीबों का एम्बुलेंस’: गरीबों का ईलाज भगवान भरोसे
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 15, 2016
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