बेटियां आसमान छू रही है और कोसी की बेटियां भी अपना दमखम पूरे देश को दिखा रही है. महिला सशक्तिकरण की श्रेणी में पहले भारत के #100 Women Achievers के लिए चुने जाने पर सरकार द्वारा सम्मानित करने के लिए भारत के राष्ट्रपति द्वारा राष्ट्रपति भवन में आगामी 22 जनवरी को दोपहर के स्वागत भोजन पर आमंत्रित कर कोसी को एक बार फिर से बेटियों पर गर्व करने का अवसर प्रदान किया. आज दिन में सुपौल जिले के सरायगढ़ भपटियाही प्रखड के मध्य विद्यालय सरायगढ़ की प्रखंड शिक्षिका बबीता कुमारी आज सहरसा रेलवे स्टेशन से पुरबिया एक्सप्रेस से अपने माता-पिता और पति बलराम सिंह यादव के साथ दिल्ली के लिए रवाना हो गई. बबीता की उपलब्धियों से उत्साहित आज कई संगठन और शुभचिंतक उन्हें विदा करने सहरसा स्टेशन पहुंचे.
विशेष जानें बबीता कुमारी के बारे में: संघर्ष से पाई सफलता: तेरह वर्ष में बबीता की शादी और पंद्रह वर्ष में मां बनने बाद बबीता ने मैट्रिक की परीक्षा पास की. स्कूली जीवन के काल से ही साक्षरता के क्षेत्र में जुड गयी. वर्ष 2005 में जब वह शिक्षिका बनी तब बबीता ने शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोडने का काम किया. इसके लिए उन्हें वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना के तहत जिले के बेस्ट अक्षर दूत का पुरस्कार से नवाजा गया. वही उन्हें 29 मार्च 2011 को राज्य स्तर पर आयोजित अक्षर बिहार योजना के तहत सम्मानित किया गया. वर्ष 2011 में मानव संसाधन विकास विभाग बिहार द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘सपनों को लगे पंख’ में बबीता की जीवन की संधर्ष गाथा को जीवनी के तौर पर अपवाद शीर्षक देकर सहेजा गया. इतना ही नही वे योग शिक्षिका व लेखिका की भी भूमिका निभायी है. वर्ष 2012 में शिक्षा विभाग बिहार सरकार द्वारा बिहार के सौ वर्ष पुरे होने पर ‘शतक के साक्षी’ नामक पुस्तक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों हुआ, जिसमें बबीता द्वारा लिखे लेख मे जिले के तीन बुजुर्गों की जीवनी को शामिल किया गया. इस उल्लेखनीय कार्य के लिए बबीता का नाम बिहार के 20 प्रमुख लेखकीय टीम में शामिल किया गया. इसके लिए उन्हें 10 हजार राशि प्रोत्साहन के रूप में दिया गया.
बबीता कहती है कि लगातार मिल रहे सम्मानों ने उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ा दी है. कहती है शि़क्षा की मुहिम को गरीब, दलित, शोषित, पीडित व कमजोर वर्गों के उत्थान तक पहुंचाना चाहती हूँ. पुरस्कारों की राशि को भी बबिता कोसी से विस्थापित परिवार के शिक्षा से वंचित नौनिहालों को शिक्षा के मुख्य धारा में जोडने में खर्च करना चाहती हूं. सम्मानों का श्रेय माता पिता व पति को देती है.
विशेष जानें बबीता कुमारी के बारे में: संघर्ष से पाई सफलता: तेरह वर्ष में बबीता की शादी और पंद्रह वर्ष में मां बनने बाद बबीता ने मैट्रिक की परीक्षा पास की. स्कूली जीवन के काल से ही साक्षरता के क्षेत्र में जुड गयी. वर्ष 2005 में जब वह शिक्षिका बनी तब बबीता ने शिक्षा से वंचित बच्चों को शिक्षा के मुख्य धारा से जोडने का काम किया. इसके लिए उन्हें वर्ष 2009 में मुख्यमंत्री अक्षर आंचल योजना के तहत जिले के बेस्ट अक्षर दूत का पुरस्कार से नवाजा गया. वही उन्हें 29 मार्च 2011 को राज्य स्तर पर आयोजित अक्षर बिहार योजना के तहत सम्मानित किया गया. वर्ष 2011 में मानव संसाधन विकास विभाग बिहार द्वारा प्रकाशित पुस्तक ‘सपनों को लगे पंख’ में बबीता की जीवन की संधर्ष गाथा को जीवनी के तौर पर अपवाद शीर्षक देकर सहेजा गया. इतना ही नही वे योग शिक्षिका व लेखिका की भी भूमिका निभायी है. वर्ष 2012 में शिक्षा विभाग बिहार सरकार द्वारा बिहार के सौ वर्ष पुरे होने पर ‘शतक के साक्षी’ नामक पुस्तक का विमोचन तत्कालीन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के हाथों हुआ, जिसमें बबीता द्वारा लिखे लेख मे जिले के तीन बुजुर्गों की जीवनी को शामिल किया गया. इस उल्लेखनीय कार्य के लिए बबीता का नाम बिहार के 20 प्रमुख लेखकीय टीम में शामिल किया गया. इसके लिए उन्हें 10 हजार राशि प्रोत्साहन के रूप में दिया गया.
बबीता कहती है कि लगातार मिल रहे सम्मानों ने उनकी जिम्मेदारी और भी बढ़ा दी है. कहती है शि़क्षा की मुहिम को गरीब, दलित, शोषित, पीडित व कमजोर वर्गों के उत्थान तक पहुंचाना चाहती हूँ. पुरस्कारों की राशि को भी बबिता कोसी से विस्थापित परिवार के शिक्षा से वंचित नौनिहालों को शिक्षा के मुख्य धारा में जोडने में खर्च करना चाहती हूं. सम्मानों का श्रेय माता पिता व पति को देती है.
मधेपुरा टाइम्स के अभियान ‘सेव डॉटर, सेव फ्यूचर’ की ब्रांड एम्बेसडर और गत वर्ष गणतंत्र दिवस के अवसर पर राष्ट्रपति भवन में महामहिम की
ओर से चाय पर आमंत्रित रही मिस बॉलिवुड दिवा ऋचा सिंह ने मधेपुरा
टाइम्स की ओर से बबीता जी को इन शब्दों में शुभकामनाएं दी है, “"Congrats on your
fabulous victory. You are different from others. We are proud of ur
achievement, welldone, keep up the good work…congrts again.”
(वि.सं.)
ऐसी बेटी पर भला किसे न हो गर्व?: सुपौल की बबिता चली राष्ट्रपति की मेजबान बनने
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
January 17, 2016
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