बलात्कारियों से कैसा हो सलूक? दीमापुर की तरह फांसी नहीं हो सकती पर सुपौल की तरह सामाजिक बहिष्कार तो हो सकता है?

16 दिसंबर 2012 के निर्भया रेप-मर्डर कांड के बाद भी देश में बलात्कार की स्थिति में कोई सुधार नहीं हुआ और भले ही उन दोषियों को फांसी की सजा सुना दी गई हो, पर देश भर में इस मामले में कुछ सुधार हुआ हो, ऐसा कहीं से नहीं दीखता.
      16 दिसंबर की शर्मनाक घटना के बाद जब महिला संगठन सड़क पर उतरी तो उनके तख्तियों पर लिखी थी हैंग द रेपिस्ट. नागालैंड के दीमापुर में हजारों लोगों की भीड़ ने एक बलात्कार के आरोपी को जेल से निकाल कर उसकी हत्या कर डाली. क़ानून को हाथ में लेकर उनलोगों ने भले ही अपना आक्रोश निकाला हो, पर उस घटना को कहीं से सही नहीं ठहराया जा सकता है. भीड़ का ऐसा क़ानून जो जुर्म साबित होने से पहले ही सजा तयकर खुद दे डाले की भर्त्सना होनी चाहिए.
      कल अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस है और जाहिर है महिला सुरक्षा पर बड़े-बड़े कार्यक्रम भी होंगे, पर क्या समाज में कितना सुधार आ पायेगा कोई नहीं जानता.
      सुपौल में पिछले रविवार को एक महज चार साल की बच्ची के साथ दुष्कर्म कर उसकी हत्या कर देने की शर्मनाक घटना सामने आई तो फिर सुपौल सुलगते-सुलगते बचा. बलात्कार के आरोपी को भीड़ ने पकड़ कर पुलिस को सौंप दिया, पर समाज ने भी इसे गंभीरता से लिया. सुपौल जिले के छातापुर थाना क्षेत्र के चुन्नी वार्ड नंबर तीन की इस घटना के बाद समाज के लोगों ने मृत बच्ची का दाह-संस्कार बलात्कार के आरोपी की जमीन में कर दिया ताकि आरोपी का परिवार शर्म महसूस कर सके. साथ ही समाज ने एक बड़ा फैसला लेकर आरोपी के परिवार को समाज से बहिष्कृत भी कर दिया. आरोपी को सजा तो न्यायालय से मिलनी ही चाहिए. ऐसे मामले को रेयरेस्ट और द रेयर मानकर साबित होने पर आरोपी को फांसी पर लटकाना होगा ताकि कोई भी ऐसा करने से पहले बार-बार सोचे.
      बलात्कार का मुद्दा बड़ा है, सरकार और समाज को बड़े फैसले लेने होंगे. इसे हर हाल में रोकना होगा ताकि मानवता शर्मशार होने से बच सके.
बलात्कारियों से कैसा हो सलूक? दीमापुर की तरह फांसी नहीं हो सकती पर सुपौल की तरह सामाजिक बहिष्कार तो हो सकता है? बलात्कारियों से कैसा हो सलूक? दीमापुर की तरह फांसी नहीं हो सकती पर सुपौल की तरह सामाजिक बहिष्कार तो हो सकता है? Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on March 07, 2015 Rating: 5

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