टूट रहा गाँधी के सपनों का भारत: बदहाली के आंसू रो रहा है खादी ग्रामोद्योग केन्द्र

मधेपुरा जिले के पुरैनी प्रखंड मुख्यालय स्थित 80 के ही दशक में स्थापित खादी ग्रामोद्योग भंडार पुरैनी जो कभी बाजार की रौनक हुआ करता था अब अपनी बेबसी के आँसू बहा रहा है. कभी ग्राहकों की भीड़ से परेशान रहने वाले केन्द्र के संचालक हरिवंश नारायण सिंह अफसोस प्रकट करते हुए बताते हैं कि आधुनिकता की इस दौर में गाँधी के सपनों का भारत बदल चुका है. लोग पश्चिमी सभ्यता की ओर कूच कर रहे हैं और इतना ही नहीं लोग पाश्चात्य भेष-भूषा को ही पहनना पसन्द कर रहे हैं.
खादी भंडार पुरैनी की स्थापना 1980 के आसपास की गई थी और 19890 में खादी भंडार के लिए जमीन खरीद कर भवन निर्माण कराया गया. उस समय उक्त भंडार में कार्यरत कर्मचारियों की सँख्या 5 थी, लेकिन विभागीय सक्षम पदाधिकारी की उदासीनता के कारण अब कर्मचारी की सँख्या मात्र एक रह गई है. फलस्वरूप व्यवस्था में गिरावट आई है. बताते हैं कि आरम्भ में बुनकरों की अधिक सँख्या रहने के कारण उक्त खादी भंडार प्रतिवर्ष लगभग 50 लाख रूपये का कारोबार करता था, लेकिन सूत की अनुपलब्धता के कारण कारोबार पर प्रतिकूल असर पड़ा. ऐसी बात नही है कि सूत उपलब्ध है ही नहीं. सूत तो उपलब्ध है लेकिन वह तो पॉलिस्टर सूत है, जिसका उपयोग यहाँ के बुनकर नही किया करते हैं. यही वजह रहा है कि यहाँ के बुनकर पुस्तैनी पेशे से विमुख हो गए.
जानकारी मिली कि आरम्भ में खादी भंडार के द्वारा बुनकरों को धागा उपलब्ध कराया जाता था जिसे बुनकरों द्वारा वस्त्र तैयार कर खादी भंडार को दिया जाता था. उसके बदले बुनकरों को मजदूरी के तौर पर मात्र 30 रूपये प्रति जोड़ी धोती पर दिया जाता था. देखा जाय तो मिहनत के हिसाब से मजदूरी उपयुक्त नही थी. खादी भंडार पुरैनी के कर्मचारी हरीवंश नारायण सिंह ने बताया कि भंडार मे अभी भी वस्त्र उपलब्ध हैं लेकिन ग्राहकों का अभाव है.

सड़ रहा है अंबर चरखा: प्राप्त जानकारी के अनुसार रूई से सूत बनाने के लिए प्रखंड कार्यालय को सरकार द्वारा 19940 में सैकड़ों की सँख्या में अंबर चरखा उपलब्ध कराया गया था, लेकिन आज वह चरखा बूनकरों के बीच बाँटने के बजाय प्रखंड कार्यालय के छत पर सड़ रहा है. यह बताने को कोई पदाधिकारी सक्षम नही है कि किस विभाग से अंबर चरखा की आपूर्ति हुई थी लेकिन कूछ कर्मचारियों का मानना है ट्राईसम योजना के तहत चरखा की आपूर्ति हुई होगी. अगर बुनकरों के बीच चरखा बाँट दिया गया होता तो हो सकता था कि प्रखंड के नरदह गांव के बुनकरों का रोजगार ठप्प नही होता.
टूट रहा गाँधी के सपनों का भारत: बदहाली के आंसू रो रहा है खादी ग्रामोद्योग केन्द्र टूट रहा गाँधी के सपनों का भारत: बदहाली के आंसू रो रहा है खादी ग्रामोद्योग केन्द्र Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on February 27, 2015 Rating: 5

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