
मग़र मनुष्य तो सामाजिक प्राणी
है, Social Media ने बहुत जल्द समाज में अपना धाक जमाया. मगर
इसका भविष्य कितने दिनों का होगा?
मनुष्य सदा से अपनों के
प्यार का भूखा रहा है, समूह में रहा है और ये गुण तो उसके खून में
समाहित है.
अब फेसबुक खून तो नहीं बदल सकता, हाँ एक सदी के आपसी प्यार को एक सदी तक के लिए कमजोर जरुर
कर सकता है.

कई यूजर्स में बीमारी बनकर उभरा
फेसबुक जैसे सोशल नेट्वर्किंग साइट्स पर अब इस चिंताजनक बदलाव
की शुरुआत भी हो चुकी है और इस बिकाऊ दुनियां में उस प्यार, पसंद न पसंद की भी बोली लगाने लगी है. आज
के समय कोई निजी फोटो
Social Networking site पर
डालते ही नजर Like पर गड़ जाती है. बढ़ते Like के साथ लोग अनुमान लगाना शुरू करते है कि उन्हे समाज
में कितना प्यार मिल रहा है. कई फेसबुक यूजर्स को तो जबतक अधिक लाइक नहीं मिलते, उनका
दिल खोया-खोया सा रहता है. यानि वे ‘रिअल लाइफ’ की तुलना में ‘वर्चुअल लाइफ’ को ज्यादा
महत्त्व देने लगे हैं. अब चूंकि ये
बात तो इज्जत की है भाई, सो बहुत सी कम्पनियाँ इस सुविधा को देने में लग गयी कि आज जितना लाइक चाहे 100, 1000 या फिर 10000 वो मिल जायेगा और उसके एवज में कुछ
भुगतान करने होंगे.

फेसबुक पर मानसिक रूप से कमजोर लोग अपने रुतवा और रौब ज़माने के लिए काल्पनिक और सस्ती लोकप्रियता हासिल करने
के लिए ऐसे सुविधाओं का जम कर फायदा उठा रहे हैं. यही नहीं अब तो माँ-बाप और भगवान की कसम दे कर पोस्ट लाइक करने कहा जाता है.
देश भक्ति की सौगंध तो कभी हिन्दू-मुसलमान होने की प्रमाणिकता के लिए भी लाइक मांगे जाते है. कुछ
इज्जतदार लोग पब्लिकली लाइक नहीं मांगते तो मैसेज में गुप्त रूप से गुहार लगाते
नजर
आते है .

गूगल पर “Autoliker” लिख
कर सर्च करने से ही 4,48,000 से ज्यादा website नजर आते हैं. आप अंदाजा लगा सकते है कि कैसे यह लाखों रूपये का कारोबार बन चुका है. मगर वही बात, गुण तो गुण है. कही न कही उनमे असंतुष्टि की भावना रह ही जाती है. उनका दिल जानता है
कि ये
सैंकडों नकली लाइक उनके लिए
नहीं है और वे हीन भावना से ग्रसित होने
लगते है. वैसे भी बहुत ज्यादा लाइक वाले किसी फोटो को लाइक करने वालों की सूची एक बार देखें और इसमें यदि अजीबोगरीब नाम वाले बहुत से यूजर्स मिले तो समझिए लाइक फर्जी हैं.
बदलाव जरुरी है , मगर किस कीमत पर ? क्या मानव सभ्यता यूटर्न ले कर पुनः लोगों को जानवर बना रही है? सोचना होगा, यही सही समय है सोचने का, नहीं तो बेवजह इतने अच्छे मुद्दे पर इतना बड़ा पोस्ट
लिखने वाले
मेरे जैसे लोग भी कन्नी काटने लगेंगे. इस पोस्ट पर एक लाइक तो बनता हैं यार J
‘लाइक’ बिकता है बोलो खरीदोगे ???: फेसबुक यूजर्स में बढ़ता मानसिक दिवालियापन
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
December 02, 2014
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