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फ़िलहाल अगर हम आज की राजनीतिक स्थिति की बात करें तो बिहार बहुत ही अस्थिर दौर से गुजर रहा है. जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना कर नीतीश कुमार ने खुद की महान और बलिदानी छवि बिहार में पेश करने की कोशिश की,
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बेख़ौफ़ मांझी और मजबूर
नीतीश-लालू: मांझी के कई विवादित बयान पर नीतीश कुमार खामोश हैं, जबकि उनकी पार्टी में ही घमासान शुरू है. बेतुके बयानों और पार्टी
में उठे अन्तर्विवाद के बावजूद नीतीश के खामोशी का कारण स्पष्ट है कि नीतीश अगर मांझी
का विरोध करते हैं या जल्दबाजी में उन्हें कुर्सी से उतारने का फैसला लेते हैं तो उनकी
तैयार की गयी पिछड़ा, अति-पिछड़ा, दलित-महादलित
की खेती एक झटके में जीतन राम माँझी की रैयत बन सकती है. तभी तो शरद यादव को भी मांझी ने अपने बारे में
नसीहत ना देने की सलाह दे डाली और नीतीश जी फिर मुंह
में दही जमाये रह गए. नीतीश जी
की परेशानी का एक और भी कारण है कि इन अजीबोगरीब बयानबाजी के दौर में अपर कास्ट जदयू
से छिटक कर बीजेपी का रुख कर रही है. ऐसे में नीतीश जी का हर कदम मुसीबत और धर्मसंकट भरा हो
सकता है.
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महागठबंधन और जदयू की ही सरकार होने के कारण
नीतीश कुमार के पास इस आगामी विधानसभा चुनाव में वोट मांगने और विरोधी (सिर्फ बीजेपी) को पटकनी देने के लिए इसबार जंगलराज और कुशासन जैसे डायलॉग
भी नहीं होंगे.
मजबूरियां कॉंग्रेस की:
काँग्रेस की बात करे तो वो सेहत के दृष्टिकोण से नफा या नुकसान में बहुत फर्क देने
वाला नहीं है. मुसीबत तो राजद की बढ़ी हुई है महागठबंधन ने तो इस पार्टी के सीने पर भी ढ़ाई किलो मूंग
रख दी है. आरजेडी
भी मांझी और जेडीयू के बयानों का विरोध नहीं कर सकती है क्योंकि इस महागठबंधन के विचार
भी आरजेडी के घर से ही निकली थी. इसलिए मौन रहना इनके लिए मजबूरी है वैसे भी बीजेपी शुरू
से ही इस ‘महागठबंधन’ को ‘महाठगबंधन’ कह चुटकी लेते
आ रही है. वैसे
भी बीजेपी ‘महागठबंधन का मुखिया कौन
होगा?’ जैसे सवाल कर आरजेडी और जेडीयू
में कई बार भौंहे तनवा चुकी है. (क्रमश:)
रोज नए करवट लेती बिहार की राजनीति (भाग-1): कई नए चेहरे होंगे उजागर !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 30, 2014
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