रोज नए करवट लेती बिहार की राजनीति (भाग-1): कई नए चेहरे होंगे उजागर !

बिहार में अगले एक साल में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और सभी राजनितिक पार्टियाँ इस अखाड़े में अपनी मजबूत पकड़ बनाने के लिए कमर कसने लगी है. रणनीति और आंकड़ों का विश्लेषण भी सफ़ेद कुर्तों पर छाने लगा है, गठबंधन और महागठबंधन का प्रयोग और आजमाइश तो उपचुनाव से ही शुरू हो गया. खैर, ये सब चुनावी रंग तो हर बार के चुनाव में कमो-बेश देखने को मिल ही जाते हैं. मगर 2015   में  होने वाले विधानसभा चुनाव में बिहार की स्थिति बड़ी ही दिलचस्प और राजनीति के नए चेहरे को उजागर कर देने वाली होने की उम्मीद है. 

      फ़िलहाल अगर हम आज की राजनीतिक स्थिति की बात करें तो बिहार बहुत ही अस्थिर दौर से गुजर रहा है. जीतन राम मांझी को मुख्यमंत्री बना कर नीतीश कुमार ने खुद की महान और बलिदानी छवि बिहार में पेश करने की कोशिश की, लेकिन आज वो इस फैसले से कितने खुश होंगेये तो उनका दिल ही समझ रहा होगा. बिहार की गद्दी मिलने के बाद से जीतन राम मांझी खुद को बिना रिमोट से चलने वाला मुख्यमंत्री साबित करने में लग गए और फिर राजगद्दी का आनंद भी समझने लगे. ऐसे में वे अपनी पार्टी जदयूऔर नीतीश कुमार की परवाह कम व खुद की परवाह ज्यादा करने लगे. मांझी को अपनी पकड़ अपने बिरादरों पर मजबूती से करने के लिए ऊँची जाति को खुद से दूर करने में कोई संकोच नहीं है, क्यूंकि राजगद्दी पर विराजमान होने के लिए वे पिछड़ों और दलितों की शक्ति को एक मात्र सहारा समझते हैं.
    
बेख़ौफ़ मांझी और मजबूर नीतीश-लालू: मांझी के कई विवादित बयान पर नीतीश कुमार खामोश हैं, जबकि उनकी पार्टी में ही घमासान शुरू है. बेतुके बयानों और पार्टी में उठे अन्तर्विवाद के बावजूद नीतीश के खामोशी का कारण स्पष्ट है कि नीतीश अगर मांझी का विरोध करते हैं या जल्दबाजी में उन्हें कुर्सी से उतारने का फैसला लेते हैं तो उनकी तैयार की गयी पिछड़ा, अति-पिछड़ा, दलित-महादलित की खेती एक झटके में जीतन राम माँझी की रैयत बन सकती है. तभी तो शरद यादव को भी मांझी ने अपने बारे में नसीहत ना देने की सलाह दे डाली और नीतीश जी फिर मुंह में दही जमाये रह गए. नीतीश जी की परेशानी का एक और भी कारण है कि इन अजीबोगरीब बयानबाजी के दौर में अपर कास्ट जदयू से छिटक कर बीजेपी का रुख कर रही है. ऐसे में नीतीश जी का हर कदम मुसीबत और धर्मसंकट भरा हो सकता है. 
      महागठबंधन और जदयू की ही सरकार होने के कारण नीतीश कुमार के पास इस आगामी विधानसभा चुनाव में वोट मांगने और विरोधी (सिर्फ बीजेपी) को पटकनी देने के लिए इसबार जंगलराज और कुशासन जैसे डायलॉग भी नहीं होंगे.

मजबूरियां कॉंग्रेस की: काँग्रेस की बात करे तो वो सेहत के दृष्टिकोण से नफा या नुकसान में बहुत फर्क देने वाला नहीं है. मुसीबत तो राजद की बढ़ी हुई है महागठबंधन ने तो इस पार्टी के सीने पर भी ढ़ाई किलो मूंग रख दी है. आरजेडी भी मांझी और जेडीयू के बयानों का विरोध नहीं कर सकती है क्योंकि इस महागठबंधन के विचार भी आरजेडी के घर से ही निकली थी. इसलिए मौन रहना इनके लिए मजबूरी है वैसे भी बीजेपी शुरू से ही इस महागठबंधनको महाठगबंधनकह चुटकी लेते आ रही है. वैसे भी बीजेपी महागठबंधन का मुखिया कौन होगा?’ जैसे सवाल कर आरजेडी और जेडीयू में कई बार भौंहे तनवा चुकी है. (क्रमश:)
रोज नए करवट लेती बिहार की राजनीति (भाग-1): कई नए चेहरे होंगे उजागर ! रोज नए करवट लेती बिहार की राजनीति (भाग-1): कई नए चेहरे होंगे उजागर ! Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on November 30, 2014 Rating: 5

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