आधी आबादी का ये कैसा सच: ताड़ी बेच रही हैं बच्चियां

 |मुरारी कुमार सिंह|16 अक्टूबर 2013|
बिहार में आधी आबादी का एक सच परदे के पीछे भी है. सरकार जहाँ महिलाओं के समग्र विकास के दावे कर रही है वहीं आज भी लाखों बच्चियां मजदूरी कर और भीख मांगकर अपने परिवार के लिए रोटी की जुगाड़ में लगी है.
      बिहार में मंदिरों के आसपास जहाँ कई छोटी लड़कियां भीख मांगते नजर आती है वहीं कभी-कभी लड़कियों को ऐसा काम करते भी देखा जाता है जिसे देखने के बाद विकास की कहानी झूठी लगने लगती है. सहरसा जिले के सोनबरसा कचहरी रेलवे स्टेशन पर इन दिनों कई बच्चे ताड़ी बेचने को विवश हैं. इनमें कई छोटी बच्चियां भी हैं जिनके खेलने-खाने और स्कूल या आंगनबाड़ी केन्द्र जाने की उम्र है. इनके परिवार का पेट वैसे लोगों की बदौलत ही चल रहा है जो ताड़ी पीते हैं.
      गहराई से जाने पर हमें पता चलेगा कि ऐसी लड़कियों के पिता अपने परिवार के पेट की आग बुझाने के लिए दिल्ली और पंजाब में मजदूरी करते हैं और माँ खेतों में. घर के खर्च का भार उठाना इनकी मजबूरी है वर्ना परिवार दाने-दाने को मुंहताज हो जाएगा और इनके परिवार का कोई सदस्य नाथो की तरह ही भूख की भेंट चढ़ जाएगा. सच तो यह है कि कागजों पर इनके लिए कई योजनाएं हैं जिनमें इनका नाम भी है, पर वे सरकारी तंत्र के पोसे हुए बिचौलियों के विकास के लिए हैं और इन बच्चियों के नन्हे हाथों में खिलौने की बजाय ये ताड़ी की बोतलें नहीं हैं बल्कि बिहार के विकास का असली दस्तावेज है.
आधी आबादी का ये कैसा सच: ताड़ी बेच रही हैं बच्चियां आधी आबादी का ये कैसा सच: ताड़ी बेच रही हैं बच्चियां Reviewed by मधेपुरा टाइम्स on October 16, 2013 Rating: 5

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