महर्षि वेद व्यास की महान कृति महाभारत, श्रीमद्भागवतगीता व
पुराण हमारे संस्कार और मानवीय मूल्यों को युगों-युगों तक
समृद्ध और संपोषित करते रहेंगे। मधेपुरा स्थित वेद व्यास महाविधालय में आयोजित महिर्षि वेद व्यास जयंती समारोह 2013 का उद्घाटन करते हुए बिहार सरकार
के पूर्व मंत्री कृपानाथ पाठक ने समारोह में मौजूद विद्वतजनों को संबोधित करते हुए कहा। उन्होंने कहा कि
वर्तमान भारतीय संस्कृति के जन्मदाता मूलरूप से महर्षि वेद व्यास ही
हैं। उनके द्वारा रचित महाग्रंथ हमारा
धार्मिक ही नहीं राजनीतिक एवं सांस्कृतिक मार्ग भी प्रशस्त करता है। हमारे लौकिक जीवन की प्रत्येक समस्याओं का
समाधान गीता में है तथा महाभारत ज्ञान का
भंडार है।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि- बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डा. रामदेव प्रसाद ने कहा कि महर्षि व्यास कालजयी व्यक्तित्व हैं। भारतीय साहित्य और संस्कृति का दो-तिहाई अवदान अकेले महर्षि व्यास का है। उन्होंने अपनी रचना से भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित किया।
समारोह में कोसी अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ को ‘महर्षि व्यास शिखर सम्मान- 2013’ से सम्मानित करते हुए उन्हें अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह व पाग भेंट किया गया। वेद व्यास महाविधालय के संस्थापक डा. रामचन्द्र मंडल ने श्री शलभ को कोसी अंचल का साहित्यक वटवृक्ष कहा तथा इनके साहित्यिक अवदान को रेखांकित किया। यह सम्मान पूर्व मंत्री कृपानाथ पाठक के करकमलों द्वारा दिया गया। गत वर्ष यह सम्मान मैथिली साहित्यकार श्री मायनन्द मिश्र को दिया गया था। श्री शलभ ने कहा कि हजारों वर्ष से आती अनेक विदेशी जातियां भारतीय महासागर में बूंद-बूंद की तरह विलीन होती चली गयी, यहाँ शक, हूण, किरात, कुशान, पह्लव, द्रविड़ आदि जातियां आती गयी और हमारी विशाल सांस्कृतिक महासागर में तिरोहित होती चली गयीं यही कारण है कि - इरान, मिस्र, रोमा सब मिट गये जहाँ से / कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी । हमारे दोनों महाग्रंथ रामायण और महाभारत के कारण हमारा सांस्कृतिक धरातल इतना अधिक शक्तिशाली विशाल और विस्तृत हो गया है तथा हममें समन्वय की इतनी अधिक क्षमता आयी है कि सारे संसार को ही हम कुटुम्ववत समझने लगे हैं।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डा. भूपेन्द्र ना. यादव ‘मधेपुरी’ ने कहा कि सम्पूर्ण भारत में महर्षि वेद व्यास के नाम पर कोई विश्वविधालय नहीं है लेकिन मधेपुरा का यह महाविधालय उस महान महर्षि के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए प्रगतिपथ पर अग्रसर है, इसका सारा श्रेय इसके संस्थापक डा. रामचन्द्र मंडल को है। श्री मधेपुरी ने आगत श्रोताओं एवं मंचासीन साहित्यकारों को साधूवाद किया।
समारोह की अध्यक्षता डा. केएन ठाकुर ने तथा स्वगतभाषण प्रो. आलोक कुमार ने किया। अन्य वक्ताओं में टी. कालेज मधेपुरा के प्राचार्य डा. सुरेश प्रसाद यादव, एलएमएस महावि. वीरपुर के प्राचार्य डा. जयनारायण मंडाल, प्रो. नीलू रानी, प्रो. शचीन्द्र महतो, डा. ललन प्र. अद्री, डा. त्रिवेणी प्रसाद, सीताराम मेहता, अरविन्द श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर नृत्य व संगीत का आकर्षक आयोजन भी हुआ जिसका संचालन डा. रामचन्द्र प्र. मंडल ने किया, जिसमें - अनामिका, दीपमाला, श्वेताप्रिया, शिवानी, मनीषा, निशा व काजल ने अपनी धारदार प्रस्तुति से समारोह को यादगार बना दिया। समारोह का अन्य आकर्षण महर्षि वेद व्यास की प्रतिमा का अनावरण, शोभा यात्रा, सामुहिक भोज व वृक्षारोपन कार्यक्रम भी रहा।
इस अवसर पर मुख्य अतिथि- बिहार संस्कृत शिक्षा बोर्ड के अध्यक्ष डा. रामदेव प्रसाद ने कहा कि महर्षि व्यास कालजयी व्यक्तित्व हैं। भारतीय साहित्य और संस्कृति का दो-तिहाई अवदान अकेले महर्षि व्यास का है। उन्होंने अपनी रचना से भारत को विश्वगुरु के रूप में प्रतिस्थापित किया।
समारोह में कोसी अंचल के वरिष्ठ साहित्यकार हरिशंकर श्रीवास्तव ‘शलभ’ को ‘महर्षि व्यास शिखर सम्मान- 2013’ से सम्मानित करते हुए उन्हें अंगवस्त्र, प्रतीक चिन्ह व पाग भेंट किया गया। वेद व्यास महाविधालय के संस्थापक डा. रामचन्द्र मंडल ने श्री शलभ को कोसी अंचल का साहित्यक वटवृक्ष कहा तथा इनके साहित्यिक अवदान को रेखांकित किया। यह सम्मान पूर्व मंत्री कृपानाथ पाठक के करकमलों द्वारा दिया गया। गत वर्ष यह सम्मान मैथिली साहित्यकार श्री मायनन्द मिश्र को दिया गया था। श्री शलभ ने कहा कि हजारों वर्ष से आती अनेक विदेशी जातियां भारतीय महासागर में बूंद-बूंद की तरह विलीन होती चली गयी, यहाँ शक, हूण, किरात, कुशान, पह्लव, द्रविड़ आदि जातियां आती गयी और हमारी विशाल सांस्कृतिक महासागर में तिरोहित होती चली गयीं यही कारण है कि - इरान, मिस्र, रोमा सब मिट गये जहाँ से / कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी । हमारे दोनों महाग्रंथ रामायण और महाभारत के कारण हमारा सांस्कृतिक धरातल इतना अधिक शक्तिशाली विशाल और विस्तृत हो गया है तथा हममें समन्वय की इतनी अधिक क्षमता आयी है कि सारे संसार को ही हम कुटुम्ववत समझने लगे हैं।
धन्यवाद ज्ञापन करते हुए डा. भूपेन्द्र ना. यादव ‘मधेपुरी’ ने कहा कि सम्पूर्ण भारत में महर्षि वेद व्यास के नाम पर कोई विश्वविधालय नहीं है लेकिन मधेपुरा का यह महाविधालय उस महान महर्षि के पदचिन्हों का अनुसरण करते हुए प्रगतिपथ पर अग्रसर है, इसका सारा श्रेय इसके संस्थापक डा. रामचन्द्र मंडल को है। श्री मधेपुरी ने आगत श्रोताओं एवं मंचासीन साहित्यकारों को साधूवाद किया।
समारोह की अध्यक्षता डा. केएन ठाकुर ने तथा स्वगतभाषण प्रो. आलोक कुमार ने किया। अन्य वक्ताओं में टी. कालेज मधेपुरा के प्राचार्य डा. सुरेश प्रसाद यादव, एलएमएस महावि. वीरपुर के प्राचार्य डा. जयनारायण मंडाल, प्रो. नीलू रानी, प्रो. शचीन्द्र महतो, डा. ललन प्र. अद्री, डा. त्रिवेणी प्रसाद, सीताराम मेहता, अरविन्द श्रीवास्तव ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
इस अवसर पर नृत्य व संगीत का आकर्षक आयोजन भी हुआ जिसका संचालन डा. रामचन्द्र प्र. मंडल ने किया, जिसमें - अनामिका, दीपमाला, श्वेताप्रिया, शिवानी, मनीषा, निशा व काजल ने अपनी धारदार प्रस्तुति से समारोह को यादगार बना दिया। समारोह का अन्य आकर्षण महर्षि वेद व्यास की प्रतिमा का अनावरण, शोभा यात्रा, सामुहिक भोज व वृक्षारोपन कार्यक्रम भी रहा।
महर्षि वेद व्यास भारतीय संस्कृति के संस्थापक और संवाहक थे..
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 23, 2013
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