जिले में मैट्रिक परीक्षा में कदाचार का इतिहास
कितना पुराना है इसे ठीक से कोई बता नहीं सकता. पर आज भी अधिकाँश अभिभावक ये मानते
हैं कि परीक्षा में नक़ल वाजिब है और उनका ये तर्क है कि अच्छे अंक लाने के लिए ये
सब जरूरी है और मेरे एक के न करने से कदाचार थोड़े ही रुक जाएगा. तो क्यों न कदाचार
की बहती गंगा में नहा ही लिया जाय. और जिले के सभी 34 केन्द्रों के बाहर जमे
अभिभावकों की भीड़ अपने आप ही कुछ कह जाती है.
दो तरह के हैं अभिभावक: बाहर जमी भीड़ में अमूमन
एक परीक्षार्थी के कम से कम दो अभिभावक होते हैं. जो सीनियर होता है उसपर
मैनेजमेंट की जिम्मेवारी होती है और जो कम उम्र का छरहरा सा दीखता है उसका काम दौड़
कर पुर्जा पहुँचाना होता है. वहाँ जमे सिपाही और होमगार्ड के जवानों में से कई
दस-बीस रूपये लेकर खिड़की या इस मौके पर दीवाल की ईंट खिसकाकर बनाये गए छिद्र से अभिभावकों
को पुर्जा पहुँचाने की इजाजत देते हैं. मैनेजमेंट का भार लिए अभिभावक का मुख्य काम
ये देखना होता है कि उसके होनहार छात्र के पास सभी प्रश्नों के उत्तर पहुंच गए या
नहीं.
परीक्षार्थियों का गुस्सा उतरता
है अभिभावकों पर: अभिभावक यदि गंभीरता से अपनी जिम्मेवारी का निर्वाह नहीं
करते हैं तो परीक्षार्थी परीक्षा-कक्ष से बाहर निकल कर उनपर अपने गुस्सा का इजहार
करते हैं. सभी प्रश्नों के उत्तर पहुंचाने में नाकाम अभिभावकों पर परीक्षार्थी इन
शब्दों में भी नाराजगी निकालते हैं कि नहीं संभालता है तो आप क्यों आ गए ??
मॉब हो सकता है निगेटिव: केन्द्रों के बाहर जमी
भीड़ से केन्द्र पर तैनात वीक्षक और कर्मचारी खासे डरे रहते हैं. मधेपुरा में
परीक्षा के इतिहास को पलट कर देखा जाय तो कई बार अभिभावकों ने नक़ल रोकने पर तोड़-फोड़
तक को अंजाम दे दिया है क्योंकि उनका मानना है कि ‘चोरी हमारा जन्मसिद्ध अधिकार है’. मधेपुरा वीमेंस इंटर कॉलेज की
प्राचार्या जूली कुमारी साफ़ शब्दों में कहती है कि मॉब को कोई नहीं जानता है, मॉब
कभी भी निगेटिव हो सकता है.
मैट्रिक परीक्षा: मॉब कभी भी हो सकता है निगेटिव ???
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 14, 2013
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