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हाँ मै नारी हूँ !
तुम्हारी लेखनी ने संस्कृति के उत्कर्ष तक
मुझे पहुंचा दिया
धरती का प्राणी ही नहीं
देवी भी मुझे बना दिया
किन्तु,
तुमने मुझे बना दिया
पातळ की छाती को विदीर्ण करनेवाली
एक चीत्कार
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हाहाकार
अधरों पर आता है कभी शरद-प्रात
कभी पूस की सर्द रात
दर्पण में जब भी अपना चेहरा देखती हूँ
सीता की व्यथित परछाही
पलकों की कोर पर थरथरा जाती है..
मेरा आँचल चाँद तारों से नहीं
राहू केतु से भर जाता है
किन्तु नहीं अब नहीं....
हवा छू देने से नारी मैली नहीं होगी
नारी समझ गयी हाड मांस से बने इस
देह में कुछ भी नहीं जिससे
तुम बने ,वह बनी
प्रकृति कुसुमार बनी है..
देश की आज़ादी उसके अंतर में उतर गयी
घर बाहर को जगमगाती
परम्परा-अपरम्परा को ध्वस्त करती नारी
आज आगे बढ़ रही है....
-- डॉ शेफालिका वर्मा, नई दिल्ली
मै नारी हूँ, ये अपराध मेरा तो नहीं/// डॉ शेफालिका वर्मा
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 18, 2012
Rating:
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सशक्त और प्रभावशाली रचना.....
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