क्रिया और
प्रतिक्रिया हर घटना या विचार के दो पहलू हैं। जो लोग क्रिया करने में विश्वास
रखते हैं वे आम तौर पर प्रतिक्रिया से दूर रहते हैं। कई लोग क्रिया करने के बाद
प्रतिक्रिया का इंतजार करते हैं।
बहुत से लोग ऎसे हैं जो
क्रिया की बजाय जीवन भर प्रतिक्रिया में विश्वास रखते हैं। इन सभी किस्मों के
लोगों का क्रिया तथा प्रतिक्रिया से सीधा संबंध है। इन क्रियाओं और प्रतिक्रियाओं
का प्रत्यक्ष प्रभाव व्यष्टि और समष्टि दोनों पर पड़ता है। ये इनकी गतिविधियों को
तीव्र या धीमी करने में उत्प्रेरक की भूमिका अदा करते हैं।
व्यक्ति का जीवन क्रियाओं पर
निर्भर करता है और इस कर्मयोग के बारे में प्रतिक्रियाएं आना स्वाभाविक हैं लेकिन
आजकल क्रियाओं के बारे में प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने वाले लोगों की संख्या खूब
बढ़ती जा रही है।
इसका अर्थ यह नहीं कि लोग
ज्यादा ज्ञानवान और मेधावी अथवा जागरुक हो गए हैं, बल्कि
प्रतिक्रियाएं व्यक्त करने वालों में अधिकतर लोग मूर्ख, अज्ञानी और नकारात्मक अभिव्यक्ति वाले होते जा रहे हैं।
अपना इलाका हो या दूसरे कोई से
क्षेत्र, हर कहीं प्रतिक्रियावादी लोगों की भीड़ बढ़ती
ही जा रही है और अब हर मामले में प्रतिक्रिया जाहिर होने लगी है। पहले सार्वजनीन
विषय ही प्रतिक्रियाओं का केन्द्र हुआ करते थे लेकिन अब निजी जिन्दगी के भी कई
पहलुओं पर प्रतिक्रियाएं होने लगी हैं, चाहे वह प्रतिक्रिया
के विषय न भी हों।
आजकल क्रिया करने वाले लोगों
के मुकाबले प्रतिक्रिया करने वाले लोग ज्यादा संख्या में हैं। क्रिया करना कोई
चाहता नहीं, क्योंकि क्रिया करने में समय, श्रम, ऊर्जा और धन खर्च होता है जबकि
प्रतिक्रियाएं करने में कुछ भी खर्च नहीं होता और बतरस की मुख्य धारा के आस्वादन
का सुख तथा सुकून दोनों प्राप्त होने लगते हैं।
यही कारण है कि हर बाड़े से
लेकर सड़क-चौराहों तक प्रतिक्रिया करने वालों का रेला देखने को
मिल जाता है। हमारे
देश में सबसे ज्यादा सक्रिय कोई वर्ग है तो वह प्रतिक्रियावादियों का। ये
प्रतिक्रियावादी किसी भी रंग के परिधान अथवा झण्डे और टोपी वाले हो सकते हैं, पगड़ी या साफे वाले भी, या फिर नंगे या अधनंगे भी।

जो प्रतिक्रियाओं को ही जीवन
का लक्ष्य मान लेता है उसके लिए फिर न परिधानों का महत्त्व रह जाता है, न रंगों और रसों का। प्रतिक्रिया करने का अर्थ ही है कि आदमी ने अपनी
सम्पूर्णता को तहेदिल से स्वीकार कर लिया है और उसके लिए अब जीवन में कुछ भी अर्जन
करना शेष नहीं रह गया है, चाहे बात ज्ञानार्जन की हो या अनुभवार्जन, या फिर और किसी को प्राप्त करने की।
वह जमाना बीत गया जब
प्रतिक्रिया वही व्यक्त करता था जो उस क्षेत्र या विषय विशेष में महारत रखता था और
उससे संबंधित हर विषय पर पकड़ मजबूत थी। उस जमाने में जो प्रतिक्रिया व्यक्त करता
था वह खुद भी क्रियाओं के दौर से गुजरता था और उसके बारे में पूरी जानकारी और
ज्ञान प्राप्ति के बाद ही वह प्रतिक्रिया के क्षेत्र में उतरता था। आज हालात उलटे हो गए हैं।
अब कोई भी व्यक्ति कर्मयोग
करना चाहता नहीं, बल्कि कर्म किए बगैर, ज्ञान शून्यता और बौद्धिकता बखानने मात्र के लिए प्रतिक्रियाओं को हथियार
मानकर आगे बढ़ना चाहता है। संसार भर में सर्वाधिक प्रतिक्रियावादी वे ही लोग हैं जो
कर्म से मुँह फेरते रहे हैं, हराम की खाने के आदी हैं, नाकारा और निकम्मे बने हुए हैं और दुनिया के किसी काम के नहीं, अज्ञानी और मूर्ख हैं तथा नकारात्मक चिंतन से भरे-पूरे हैं।
जो लोग अच्छे काम कर रहे हैं, समाज सेवा और रचनात्मक गतिविधियों से जुड़े हुए हैं और सकारात्मक सोच के
साथ निष्काम सेवा के मार्ग को अपनाये हुए दिन-रात कर्मयोग को अंगीकार कर चुके हैं, उनके लिए उनके कर्म और व्यक्तित्व दोनों ही सार्वजनिक स्वरूप ग्रहण कर
लेते हैं और इस कारण उनके प्रत्येक कर्म और व्यवहार पर प्रतिक्रियाओं का आना सहज
स्वाभाविक है।
लेकिन सच्चे कर्मयोगियों और
निरपेक्ष समाजसेवियों को चाहिए कि वे अपने कर्मयोग में लगे रहें और प्रतिक्रियाओं
की परवाह न करें। किन्तु प्रतिक्रियाओं से निकले सारतत्व से सीखें और जहाँ कहीं
कमी हो, वहाँ अपने में सुधार लाने का प्रयत्न जरूर
करें।
कर्मयोग में जहाँ निरपेक्षता
और शुचिता होती है वहाँ बेबुनियाद प्रतिक्रियाओं का कोई महत्त्व नहीं रह जाता
क्योंकि जहाँ कर्म में शुद्धता होगी वहाँ प्रतिक्रियाओं का कोई नकारात्मक प्रभाव
नहीं रहेगा बल्कि ये प्रतिक्रियाएं हमारे लिए प्रचार-प्रसार में मददगार ही सिद्ध
होंगी।
यों देखा जाए तो
प्रतिक्रियाएं करने वाले कुछ लोग ही बौद्धिकता और आलोचना के माध्यम से अपनी
अभिव्यक्ति करते हैं जबकि प्रतिक्रियाएं ही करने वाले अधिकतर लोगों के पास अपने
स्वार्थों के अलावा कोई काम-धाम होता ही नहीं बल्कि कइयों की तो आजीविका ही बन
जाता है प्रतिक्रिया करने का काम। कई तो इसी के जरिये कमा खाते हैं।
इसलिए जहाँ तक संभव हो
मूर्खों, नालायकों, उठाईगिरों और
निकम्मे लोगों द्वारा की जाने वाली प्रतिक्रियाओं के प्रति बेपरवाह रहें और
कर्मयोग के आदर्शों को साकार करते रहें। ऎसे प्रतिक्रियावादी लोगों से प्रभावित
होकर अपने कर्म की धाराओं
का रुख मोड़ना, न्यूनता ला देना अथवा बंद करने का विचार नहीं करना चाहिए क्योंकि संसार
में जो भी श्रेष्ठ कर्म हैं उनका मूल्यांकन श्रेष्ठ लोग ही कर सकते हैं, निकम्मे और पुरुषार्थहीन लोग कभी नहीं। ऎसे लोगों से किसी भी प्रकार का
वाद-विवाद भी हमारी कर्मधाराओं के प्रवाह पर विपरीत प्रभाव डालने वाला होता है।
जहाँ प्रतिक्रिया करने वालों
की हरकतों या उनके अस्तित्व को स्वीकारा जाएगा वहीं अवसाद होगा, अन्यथा कुछ नहीं हो सकता। इसलिए जीवन में जहाँ कहीं कोई प्रतिक्रिया हो, उसके प्रति ध्यान न दें। क्रियाओं के फल की कामना का त्याग हो जाने पर
प्रतिक्रियाएं अपने आप आनी बंद हो जाती हैं।
- डॉ. दीपक आचार्य (9413306077)
मूर्खों और निकम्मों की हरकतों पर प्रतिक्रिया व वाद-विवाद न करें
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 31, 2012
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