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बांटे जा रहे पर्चे |
संवाददाता/30 अगस्त 2012
पिछले दस अगस्त को एक दैनिक अखबार में छपी खबर ‘‘कृष्ण भक्तों’ के दरवाजे पर गाय नहीं बोलेरो’ पर हुए हंगामे के बाद जहाँ खबर
से आहत लोगों ने रोषपूर्ण विरोध कर अखबार की प्रतियाँ अखबार के कार्यालय के समक्ष
आग के हवाले किया था, वहीँ अखबार प्रबंधन द्वारा आंदोलनकारियों की मांग को तरजीह
नहीं देने से अखबार के खिलाफ आंदोलन और तेज होता दीख रहा है.कृष्ण क्रान्ति संघ के
बैनर तले अखबार ‘दैनिक
हिन्दुस्तान’ के
विरोध में अब जिला और प्रखंड स्तर पर ‘कृष्ण भक्तों के नाम खुली चिट्ठी’ लोगों में बांटी जा रही
है.चिट्ठी के माध्यम से कहा जा रहा है कि सामाजिक सौहार्द, जातीय विद्वेष तथा पीत
पत्रकारिता के तहत धार्मिक संवेदनाओं को तहसनहस करने पर उतारू इस समाचार पत्र को
आज से ही पढ़ना बंद करें.
इसके साथ
ही संगठन अब प्रखंडों में नुक्कड़ सभा के माध्यम से भी लोगों से उक्त अखबार का
बहिष्कार करने का अनुरोध कर रही है.उधर इसी विवादित खबर को लेकर मधेपुरा के
न्यायालय में उक्त खबर को लिखने वाले संवाददाताओं और संपादकों के खिलाफ एक मुकदमा
भी दर्ज कराया गया है.
उधर विरोध
कर रहे कृष्ण क्रांति संघ का कहना था कि अखबार प्रबंधन यदि इस मामले पर जल्द हमारी
मांगों पर ध्यान नहीं देता है तो हम आंदोलन और भी तेज करेंगे और इसके सर्कुलेशन को
बुरी तरह प्रभावित कर देंगे.
दैनिक अखबार के खिलाफ नहीं थम रहा आक्रोश
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
August 30, 2012
Rating:

निश्चित ही प्रतिष्ठित समाचर पत्र के लिए जनमानस मे आक्रोश कतई ठीक नहीं है ऐसा प्रतीत होता है स्थानीय प्रभारी ऊपर के पदाधिकारी को अपने अहं को तुस्त करने के लिए गलत जानकारी दे रहे है / अन्यथा ये दुर्भगापूर्ण स्थिति नहीं होती /आखिरकार लोकतंत्र मे जनता सर्वोपरी होता है /
ReplyDeleteaalekh se bilkul hi ek khas jati or dharm ko aghat pahucha hai /log chok chorahe par trah trah ki bate karte hai jo samaj ke sohad ke liye thik nahi (मनोज कुमार मेहता )
ReplyDeleteन्यायलय मे अमूमन समाचार पत्र के खिलाफ केस स्वीकार नहीं होता है , इसका मतलब है छुद्र मानसिकता वाले संवाददाता ने अपने साथ -साथ समाचार पत्र की निस्पछ्ता पर प्रश्न चिन्ह लगा दिया है/ प्रबंधन को इस बारे मे निस्पछ्ता से सोचना चाहिए /
ReplyDeleteसमाचारपत्र समाज का आइना होता है जिसके निष्पछता पर आम आदमी सवाल नहीं करता है लेकिन १० अगस्त के आलेख को पढने के बाद ये लगने लगा है किअब पत्रकारिता का स्तर गिरने लगा है /कुछ संवाददाता ब्यक्तिगत द्वेष के आलोक मे रष्ट्रीय स्तर के दैनिक समाचार पत्र की निस्पछ्ता और गरिमा का बिलकुल ही ख्याल नहीं रख रहे है /क्या हम आजाद देश मे जी रहे है ?
ReplyDeleteऐना किया भाय रहल छे यो संपादक महोदय अपन कर्तव के निर्वहन निस्पछ्ता से करू जातिवाद नै करू आपण पद के गरिमा के खियाल करू ,बिबेक से कम करू धिर्त्राष्ट्र जोका नै करू /किया अहाँ दोसर महाभारत करवावे लिए तुलल छिये
ReplyDeletemujhe nahi lagta hai ki reporter kisi ke garima pe chot karna chahta tha...usne likha hai ki Madhepura mein gai ki sankhya ghat rahi rahi aur log bhainson ko pal rahe hain.kyunki bhains jyada doodh deti hai..logon ko dharmik karyon ke liye gai ka doodh aur gobar nahi mila raha hai..news ko lamba karne ke liye usne bina matlab "rome hai pope ka madhepura hai gope ka " jaisi purani baton ko dohraya...is news ka matlab kisi ki bhavna koa dukhana nahi lagta ..logon ko bina matlab ke uttejit nahi hona chahiye...
ReplyDeleteजनता जब सब तरफ से निराश हो जाती है तब मीडिया के शरण मे जाती है ,जब मीडिया पछ्पात करने लगी है तो ये जनता कहाँ जाएगी ?प्रबंधन मे बैठा आदमी की मानसिकता इतनी ओछी होगी कभी सोचा न था
ReplyDeleteab samajh me aane laga hai ki.......yadi aap ka khabar ptrkar ke jati samuh ke virudh hai to aap ki khabar hindustan me nahi chhapti hai manniye ptrkar samajh gaye honge.........
ReplyDeletejaruri nahi hai ki bucharkhana me gay ko krishna bhakt hi bechte hai .. hum gay ki puja karte hai.hamhare darwaje par bulero bhi hai gay mata bhi hai..is khabar se samjha ja skta hai ki bina pura sabut ke kya krishnabhakt hi gay ko bucharkane ke hawale karte news nahi chhapna chahiye....
bahut dukh hua...yadi rom pop ka madhepura gop hai to aapke paper ki
selling rom me hoti hai.....jati se prabhvit ho news nahi bana chihiye...ptrkar ko samaj me bahut smman se dekha jata hai..