सुनीता:पति ने छोड़ा तो रंजीत ने दिया सहारा |
|एमटी रिपोर्टर|
कहते हैं प्यार अंधा होता है.यह जात, धर्म, उम्र, परिस्थिति कुछ नहीं देखता है.मधेपुरा के सहुगढ़ के रंजीत और सुनीता का प्यार भी कुछ ऐसा ही है.जिसने सुना दांतों तले अंगुली दबा ली.गौरवगढ़,सहरसा की सुनीता की शादी करीब पन्द्रह वर्ष पूर्व साहुगढ़, नौलखिया के रमेश के साथ हुई.दो बच्चे भी हुए,पर सुनीता का पति जब कमाने पंजाब गया तो बदल गया.सुनीता को छोड़ वह पंजाब ही रहने लगा.बेटे ने पत्नी से किनारा किया तो सास-ससुर ने भी सुनीता पर जुल्म ढाना शुरू किया.इस बीच गाँव के ही उपेन्द्र यादव के १८ वर्षीय पुत्र रंजीत से सुनीता का ये दर्द देखा नहीं जा रहा था.उसने सुनीता को ढांढस बंधाना शुरू किया तो सुनीता भी उसके करीब आती गयी.पर सुनीता कोई भी अगला कदम उठाने से पहले एक बार अपने पति से बात कर लेना चाहती थी.रंजीत ने भी सहमति जताई और सुनीता को लेकर पंजाब उसे पति से मिलवाने चल दिया.पर पंजाब में पति ने सुनीता के साथ जो बर्ताव किया उससे सुनीता टूट सी गयी.पति ने सुनीता के साथ काफी मार-पीट की और उसके चरित्र पर भी कीचड़ उछाला.१८ वर्षीय रंजीत ३६ वर्षीया सुनीता को लेकर वापस आ गया और अपने परिवार के सामने उसे पत्नी के रूप में रखने की जिद कर बैठा.पिता उपेन्द्र यादव ने अपने एकलौते बेटे को लाख समझाया पर रंजीत की जिद के सामने उसे झुकना ही पड़ा.
सुनीता के साथ एक अत्यंत ही विषम परिस्थिति यह है कि दो बच्चे के जन्म के बाद उसका ऑपरेशन भी हो चुका है और अब वह माँ नहीं बन सकती.यानि रंजीत को पिता बनने के सुख से वंचित रहना पड़ेगा.पर रंजीत को इससे कोई फर्क पड़ता नहीं दीख रहा.वह तो सिर्फ सुनीता के दुःख को हर लेना चाहता है और सुनीता भी रंजीत के इस प्यार के सामने समर्पण कर चुकी है.सुनीता कहती है “अब मैं कहाँ जाउंगी, रंजीत को भले मैं बच्चे का सुख नहीं दे सकती,पर फिर भी वह तैयार है तो अब मैं उसके साथ ही रह रही हूँ.” रंजीत के पिता उपेन्द्र यादव कहते हैं, “रंजीत मेरा एकलौता बेटा है,उसकी खुशी में ही मुझे संतोष है”.और रंजीत सुनीता के बिना अपने को अधूरा मान रहा है.
अजब प्रेम की गजब कहानी
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
November 12, 2011
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aaj ke iss kalyug me v aisa hota h....i like it vry much...
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