राकेश सिंह/२७ अक्टूबर २०११
जिले में खिलाड़ियों की मदद के लिए कोई निधि नहीं है,ये बात तो सोनी राज के मामले में खुल कर सामने आ ही गयी थी.मधेपुरा की एथलेटिक्स चैम्पियन जया भारती का तो कहना है कि प्रशासन में बैठे लोगों में इनकी कोई कुछ सुनता ही नहीं है.
मधेपुरा की जया भारती ने सितम्बर २०१० में पूर्णियां में हुए महिला महोत्सव में ४०० मीटर की दौड़ में जब स्वर्ण पदक जीता तो मधेपुरा के लोगों की इस खिलाड़ी से काफी उम्मीदें जग गयी.२०१० में ही ग्रामीण खेलकूद प्रतियोगिता में पटना में जया ने सिल्वर प्राप्त किया.इससे पहले वर्ष २००९ में विद्यालय खेलकूद प्रतियोगिता,सिवान में भी जया सेकेण्ड मेडल प्राप्त कर चुकी है.
पिता अशोक सिंह की नौकरी छूटी तो फिर लग न सकी.परिवार की माली हालत अत्यंत ही दयनीय है.जया बताती है कि नेशनल प्रतियोगिता आगरा के लिए जब उसे कैम्प के लिए पटना जाना था तो उसे पैसे की काफी दिक्कत थी.जिला प्रशासन के पास उसने मदद के लिए हाथ फैलाया था,पर प्रशासन की तरफ से कोई मदद नहीं मिली थी.(सुनें जया को इस वीडियो में)जिले में खिलाड़ियों को उपेक्षित करना जिला प्रशासन के लिए बहुत ही सामान्य बात है.वैसे भी जया की बदनसीबी इतनी आसानी से कम नहीं होने वाली है.पिता की नौकरी के सिलसिले में जया जब सुशासन के मुख्यमंत्री के पास गुहार लगाने गयी थी तो जब मुख्यमंत्री दरबार में जया को फटकार लगाई गयी(पढ़ें:मुख्यमंत्री दरबार में मिली फटकार:आहत है खिलाड़ी) तो जिला प्रशासन अगर मधेपुरा के खिलाड़ियों को उपेक्षित रखता है तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं.
एथलेटिक्स चैम्पियन है प्रशासनिक उपेक्षा का शिकार
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
October 27, 2011
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क्रिकेट में तो बिहार पीछे चला ही गया है , अगर सरकार की यही उदासीनता रही तो और भी खेल का क्रिकेटिया हाल होगा | खास कर लडकियां, बिहार में मैदान और मैदान के बाहर भी विरोधियों से लड़ती है,उन्हें तो और भी प्रोत्साहन की जरुरत है | बिहार सरकार लगातार सुशासन का दावा करती है ,पर एक अहम् सवाल यह है कि क्या खेल कि बेहतरी सुशासान में नहीं आता ? जया भारती कि उपेक्षा ये साबित करती है कि सरकार खेल के प्रति अगंभीर है |
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