राकेश सिंह और रूद्र ना० यादव/१७ जुलाई २०११
बिहार में भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए कार्यरत विजिलेंस की भूमिका संदेह के घेरे में है.कुछ मामलों में विजिलेंस की कार्यशैली को देखकर प्रतीत होता है कि यहाँ भी बहुत कुछ ‘मैनेज’ होता है.बीते सप्ताह पटना हाई कोर्ट ने भी विजिलेंस के डीआईजी और गया रेंज के डीआईजी से जवाब-तलब में पूछा कि आखिर कैसे बड़े-बड़े रिश्वतखोर कुछ ही दिनों में छूट जाते हैं?बिहार में भ्रष्टाचार के खिलाफ यह कैसी मुहीम चल रही है कि अधिकारी रिश्वत लेने के आरोप में पकड़े जाते हैं और विजिलेंस द्वारा चार्जशीट दाखिल नही करने पर वे छूट जाते हैं?
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अपने विभाग के सहायक अभियंता मनीष कुमार सिंह और कनीय अभियंता रामजी सिंह से
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सूत्रों का मानना है कि विजिलेंस के पदाधिकारी भी भ्रष्टाचारियों के द्वारा अब आसानी से मैनेज किये जा रहे हैं.शायद यहाँ ये बात लागू हो रही है कि दुनियां में हर कोई बिकता है,बोली लगाने वाला चाहिए. वैसे भी एक बात लगभग तय है कि छोटे कस्बों समेत राज्य की राजधानी पटना तक लगभग हर विभाग में पहले की तरह ही रिश्वतखोरी का बोलबाला है.सूत्र बताते हैं कि पटना के महालेखाकार का कार्यालय में तो प्रतिदिन कई लाख रूपये रिश्वत काम कराने के नाम पर लिए जाते हैं.कुछ का तो मानना है कि रिश्वत का रेट इस सरकार में ऊँचा जाने लगा है.ऐसा शायद इसलिए कि यदि पकड़े गए तो विजिलेंस को भी तो मैनेज करना पड़ेगा.कहते हैं जब साबुन ही गन्दा हो जाय तो साफ़ किस चीज से करें?जानकारों का मानना है कि विजिलेंस में भी सरकार से जुड़े वही पदाधिकारी नियुक्त किये जाते हैं जो दूसरे विभागों में काम कर चुके हैं और उस समय इनकी ईमानदारी संदेह से परे नही रहे थे.ये बात सभी जानते हैं कि लगी लत जल्दी छूटती नही है.इसी समाज के लोग होने के कारण उन्हें सम्बन्धियों और अपनों की पैरवी भी सुननी पड़ सकती है.कहीं-कहीं तो विजिलेंस द्वारा हप्ता-वसूली की बात भी सामने आ जाती है.
ऐसे में सरकार को चाहिए कि बाहर के ईमानदार पदाधिकारी की नियुक्ति ही ऐसे संवेदनशील पदों के लिए की जाय.वर्ना सुप्रीम कोर्ट की उस तीखी टिप्पणी पर सरकार को विचार करना चाहिए जिसमे उसने केन्द्र सरकार से ये पूछा था कि जब सरकार रिश्वतखोरी नही मिटा सकती है तो क्यों नही अलग-अलग कामों के लिए रेट निर्धारित कर देती है?
बिहार में विजिलेंस की भूमिका हो रही संदेहास्पद !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
July 17, 2011
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