जाने कहाँ गए वो जोश |
राकेश सिंह/०७ जून २०११
नगर परिषद के मुख्य पार्षद के विरूद्ध अविश्वास प्रस्ताव फिर से औंधे मुंह गिरा.विगत ५ मई २०१० के बाद यह लगातार दूसरी बार अविश्वास प्रस्ताव लाया गया था, चूंकि नियमानुसार एक अविश्वास प्रस्ताव के कम से कम एक वर्ष के बाद ही दूसरा अविश्वास प्रस्ताव लाया जा सकता है.पिछले साल के अविश्वास प्रस्ताव में भी अंत समय में कुछ वार्ड पार्षदों ने पुनर्विचार किया और मुख्य पार्षद की कुर्सी बच गयी.एक वर्ष के तुरंत ही बाद जिस तरह से कुल २६ में से १५ वार्ड पार्षदों ने अपने हस्ताक्षरयुक्त आवेदन से अविश्वास प्रस्ताव
लाने की मुहीम शुरू की थी,लगता था इस बार मुख्य पार्षद विजय यादव की कुर्सी नही बच पायेगी.पर मधेपुरा की राजनीति जानने वालों का मामना था कि १५ वार्ड पार्षद आवेदन दें या २५, वोटिंग के दौरान इनमे से कुछ पलट जाने में माहिर हैं. इस बार के अविश्वास प्रस्ताव में भी कुछ ऐसा ही हुआ.कुल मिलाकर मात्र १६ वार्ड पार्षद की मतदान में पहुंचे, जबकि नियमानुसार मुख्य पार्षद को पदच्युत करने के लिए २६ में से १४ पार्षदों को विरोध में मतदान करना था.मतदान हुआ और अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मात्र १२ वोट पड़े जबकि २ वोट अवैध हो गए.जो जोश प्रस्ताव लाने के समय पार्षदों में था, वो वोटिंग के समय काफूर हो गया.मुख्य पार्षद के विरोधी एक पार्षद बताते हैं कि पैसे की लालच में कुछ पार्षद अंत में बिक जाते हैं.
लाने की मुहीम शुरू की थी,लगता था इस बार मुख्य पार्षद विजय यादव की कुर्सी नही बच पायेगी.पर मधेपुरा की राजनीति जानने वालों का मामना था कि १५ वार्ड पार्षद आवेदन दें या २५, वोटिंग के दौरान इनमे से कुछ पलट जाने में माहिर हैं. इस बार के अविश्वास प्रस्ताव में भी कुछ ऐसा ही हुआ.कुल मिलाकर मात्र १६ वार्ड पार्षद की मतदान में पहुंचे, जबकि नियमानुसार मुख्य पार्षद को पदच्युत करने के लिए २६ में से १४ पार्षदों को विरोध में मतदान करना था.मतदान हुआ और अविश्वास प्रस्ताव के पक्ष में मात्र १२ वोट पड़े जबकि २ वोट अवैध हो गए.जो जोश प्रस्ताव लाने के समय पार्षदों में था, वो वोटिंग के समय काफूर हो गया.मुख्य पार्षद के विरोधी एक पार्षद बताते हैं कि पैसे की लालच में कुछ पार्षद अंत में बिक जाते हैं.
अगर ये बात सही है तो सबसे बड़ा सवाल तो ये उठता है कि क्या लोगों ने बिकाऊ और भ्रष्ट पार्षदों को ही चुन लिया है.हालांकि नगर परिषद का कार्यकाल शुरू होने के समय अफवाह का बाजार गर्म था कि मुख्य पार्षद बनने की दौड़ में शामिल लोगों ने अन्य पार्षदों को लाखों रूपये और मोटरसायकिल आदि देकर खरीदा था.पर बात सीधी है,ये लोकतंत्र है और जिसके पक्ष में ज्यादा मत होंगे, वही विजयी होगा.आरोप जो भी लगाया जाय पर वोटिंग के दौरान सच यही खुलकर आया कि मुख्य पार्षद विजय यादव की विरोधी ताकतें फिर से एक बार कमजोर साबित हुईं और विजय की ही विजय हुई.दूसरा सच ये भी है कि अब मात्र एक साल का कार्यकाल बचा हुआ है और अब इस कार्यकाल में और कोई अविश्वास प्रस्ताव नही लाया जा सकता.
डगरे के बैगन हैं मधेपुरा के अधिकाँश वार्ड पार्षद ?
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
June 07, 2011
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