पंचायत चुनाव के परिणाम सामने आ रहे हैं और साथ ही सामने आ रहा है एक और सच.सरकार ने पंचायती राज में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ५०% सीटों को महिला क्षेत्र घोषित कर दिया है.शुरू में तो मुखिया बनने का सपना देख रहे लोगों को सरकार की इस घोषणा से झटका सा लगा था.पर कहते हैं न ‘जहाँ चाह, वहाँ राह’.फिर हो गयी बात बराबर. दबंगों और इच्छुक लोगों ने अपनी पत्नियों को मुखिया आदि पदों के लिए खड़ा करना शुरू किया.पंचायत के
लोगों ने जब प्रत्याशियों की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू किया तब इन पत्नियों के ‘पतियों’ ने समझाना शुरू किया कि अरे महिला सीट है, इसलिए इनको खड़ा किया जा रहा है,काम तो हम ही करेंगे. आपकी सेवा में कोई कमी नही होने दी जायेगी.लोगों को राबरी देवी और लालू यादव के उदाहरण देकर समझाया गया तो बात तुरंत ही माथे में सेट कर गयी. और फिर एक नया शब्द भी अस्तित्व में आया- ‘मुखियापति’(एमपी). यानी मुखिया यदि महिला हुई तो पति हुए ‘एमपी’.चुनाव के दौरान भी लोग भूल गए कि मुखिया प्रत्याशी है कौन, लोग पति और ‘छाप’ से ही याद रखने लगे. मजेदार दृश्य तो तब
उपस्थित होने लगा जब चुनाव परिणाम सामने आने लगे.जसे ही किसी महिला मुखिया प्रत्याशी की जीत की घोषणा हुई समर्थकों ने खुशी के मारे ‘एमपी’ (मुखियापति) को ही उठा लिया और फूल-मालाओं से लादकर ‘फलां बाबू, जिंदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए.मौके पर मौजूद जीत हासिल की हुई महिला प्रत्याशी की किसी ने सुधि नही ली.साफ़ बात है उम्मीद ‘एमपी’ से है मुखिया से नही, क्योंकि वे भलीभाँति जानते हैं कि ये महिला तो सिर्फ एक रबर स्टाम्प ही है.कमोबेश पूरे जिले का यही दृश्य है.
लोगों ने जब प्रत्याशियों की क्षमता पर प्रश्नचिन्ह लगाना शुरू किया तब इन पत्नियों के ‘पतियों’ ने समझाना शुरू किया कि अरे महिला सीट है, इसलिए इनको खड़ा किया जा रहा है,काम तो हम ही करेंगे. आपकी सेवा में कोई कमी नही होने दी जायेगी.लोगों को राबरी देवी और लालू यादव के उदाहरण देकर समझाया गया तो बात तुरंत ही माथे में सेट कर गयी. और फिर एक नया शब्द भी अस्तित्व में आया- ‘मुखियापति’(एमपी). यानी मुखिया यदि महिला हुई तो पति हुए ‘एमपी’.चुनाव के दौरान भी लोग भूल गए कि मुखिया प्रत्याशी है कौन, लोग पति और ‘छाप’ से ही याद रखने लगे. मजेदार दृश्य तो तब
उपस्थित होने लगा जब चुनाव परिणाम सामने आने लगे.जसे ही किसी महिला मुखिया प्रत्याशी की जीत की घोषणा हुई समर्थकों ने खुशी के मारे ‘एमपी’ (मुखियापति) को ही उठा लिया और फूल-मालाओं से लादकर ‘फलां बाबू, जिंदाबाद’ के नारे लगाने शुरू कर दिए.मौके पर मौजूद जीत हासिल की हुई महिला प्रत्याशी की किसी ने सुधि नही ली.साफ़ बात है उम्मीद ‘एमपी’ से है मुखिया से नही, क्योंकि वे भलीभाँति जानते हैं कि ये महिला तो सिर्फ एक रबर स्टाम्प ही है.कमोबेश पूरे जिले का यही दृश्य है.
एक उदाहरण प्रस्तुत है.मतगणना केन्द्र के बाहर हम भी खड़े थे.अचानक घोषणा हुई कि साहुगढ़ २ से रीना भारती विजयी हुई हैं.हमने नजरें चारों तरफ दौड़ाईं तो देखा कि लोग ‘अरविन्द यादव, जिंदाबाद’ के नारे लगाते हुए मुखियापति (एमपी) को फूल-मालाओं’ से लादे हुए हैं.मधेपुरा टाइम्स का कैमरा जैसे ही चमका, लोगों ने कहा, ‘अरे! ये नही जीते हैं,इनकी पत्नी को जीत हासिल हुई है.’ और फिर रीना भारती को सामने लाया गया, उन्हें भी मालाएं पहनाई गयीं तब जाकर ‘मुखिया’ और ‘एमपी’(मुखियापति) ने साथ-साथ विजयी मुद्रा में तस्वीरें खिचवाई.
जाहिर सी बात है जनता काम लेकर अधिकाँश महिला प्रतिनिधियों के पतियों के पास ही जाया करेंगे, मीटिंग भी पतियों के साथ ही होंगे. काम का निर्णय भी पति ही लिया करेंगे, पर कहने को तो होगा ही कि ५० प्रतिशत सीटों पर इस बार महिलाएं काबिज हैं.
‘एमपी’ ही हैं असली मुखिया !
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
May 24, 2011
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jaha mahila shit hai waha par mahila pratyashi se kam liya jaye, na ki unke hasbend se. han wo unse salah le sakti hai.
ReplyDeleteEs prakar mahilaye bhi aage bhadhegi.