तेरी खुशियों की खातिर लड़ेंगे सबों से ....कुछ ऐसे ....
तुम तकते रहती मेरी राह
और मैं तेरे लिए भागता आता....
थका हुआ सा मैं तेरे बाहों को
तकिया बना फिर सोता.... कुछ ऐसे.....
आँखे खुलते ही तेरे चेहरे को देख
मेरी लबो पर आती मुस्कान......... कुछ ऐसे.....
हाँ, सच मे घरौंदा था ये मेरा
शुष्क मिटटी का बना
मेरे ही आंसूओं से ये बहता चला गया.....
मगर तेरे बिना मेरी जिंदगी क्या होगी,
.बस डरता हूँ.... कुछ ऐसे
--संदीप सांडिल्य,मधेपुरा
तेरी खुशियों की खातिर....
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
April 17, 2011
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