रूद्र नारायण यादव/१६ मार्च २०१०
आपने हाथ-पैर दुरुस्त वाले व्यक्ति को भी अक्सर स्वास्थ्य के प्रति झख मारते हुए देखा होगा.विकलांगों को तो देखकर बहुतों की आह निकल जाती है.पर ये सच है कि मनोबल अगर ऊँचा हो तो विकलांगता शायद ही आपकी प्रगति में बाधक होगा.बहुत से लोगों में भले विकलांगता के कारण उत्साह में कमी आ जाये,पर सिंघेश्वर प्रखंड के लरहा सतोखर के महेश कुमार मधुप के इरादों में विकलांगता कभी आड़े नही आई.कुदरत का खामियाजा भोग रहे महेश के पैर नहीं है. महेश ने विकलांगता के बावजूद पहले इतिहास से एम ए किया.मन नही भरा तो फिर संगीत से भी एम ए कर लिया.और अब पूरे गाँव के बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दे
रहे हैं.प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ महेश से संगीत की भी शिक्षा पाकर बच्चे तो निहाल हैं ही,अभिभावक भी इनकी तारीफ़ करते नही थकते.गाँव के बालेश्वर प्रसाद कहते हैं कि इस गाँव को महेश के रूप में वरदान मिला है.जहाँ गाँव के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक जानकारी के अभाव में बच्चों को सही शिक्षा देने में नाकाम हैं,वहीं महेश ने अपने जज्बे और जानकारी से गाँव में शिक्षा का अलख जगा रखा है.
रहे हैं.प्राथमिक शिक्षा के साथ-साथ महेश से संगीत की भी शिक्षा पाकर बच्चे तो निहाल हैं ही,अभिभावक भी इनकी तारीफ़ करते नही थकते.गाँव के बालेश्वर प्रसाद कहते हैं कि इस गाँव को महेश के रूप में वरदान मिला है.जहाँ गाँव के प्राथमिक विद्यालय के शिक्षक जानकारी के अभाव में बच्चों को सही शिक्षा देने में नाकाम हैं,वहीं महेश ने अपने जज्बे और जानकारी से गाँव में शिक्षा का अलख जगा रखा है.
महेश से ये पूछे जाने पर कि आप मुफ्त में क्यों पढ़ा रहे है,जब आपके पास इतने बच्चे पढ़ने आते हैं कुछ पैसे लेने से आपको तो अच्छी आमदनी हो सकती है,महेश कहते हैं शिक्षा बेचने और खरीदने की चीज नही होनी चाहिए.ज्ञान देने से आपका ज्ञान तो बढता ही है,साथ-साथ एक सभ्य समाज का भी निर्माण होता है.महेश के बारे में जानकर शायद मधेपुरा में शिक्षा का स्तर गिराने वाले शिक्षा माफियाओं को सदबुद्धि मिल सके.
शिक्षा का अलख जगा रहा एक विकलांग
Reviewed by मधेपुरा टाइम्स
on
March 16, 2011
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